मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या अभिप्राय है?
मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या अभिप्राय है?
अथवा
मनोविज्ञान की प्रायोगिक विधि के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए ।
उत्तर— प्रयोगात्मक विधि (Experimental Methods )— प्रयोगात्मक विधि मनोविज्ञान की सर्वाधिक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण विधि है। विभिन्न शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन एक नियन्त्रित वातावरण में करना और उनका गुणात्मक तथा मात्रात्मक रूप से विवेचन करना ही इस विधि की प्रमुख विशेषता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग वुण्ट ने सन् 1879 में किया था ।
(i) एंजिल के अनुसार, “प्रयोग के अन्तर्गत किसी विषय का निरीक्षण नियंत्रित अवस्थाओं में किया जाता है ताकि हम जान सकें कि किन कारकों का प्रभाव प्राप्त परिणाम पर पड़ रहा है। “
(ii) जहोदा के शब्दों में, “नियन्त्रित परिस्थितियों में किए गए निरीक्षण ही प्रयोग है । “
(iii) कैस्टिंयर के शब्दों में, “प्रयोग के मूलाधार स्वतंत्र चर में परिवर्तन का आश्रित चर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन है।”
प्रयोगात्मक विधि के गुण (Merits of Experimental Methods)— प्रयोगात्मक विधि की उपयोगिता को देखते हुए वुडवर्थ महोदय कहते हैं, ‘‘प्रयोग ने मनोविज्ञान को पूर्ण बना दिया है।” इसके निम्न गुण हैं—
(1) वैज्ञानिक विधि– यह विधि वैज्ञानिक तथा वस्तुनिष्ठ है क्योंकि इस विधि द्वारा प्राप्त परिणाम वैध और विश्वसनीय होते हैं । इस विधि में कार्यों और कारणों का अध्ययन जितनी शुद्धता से किया जाता है उतना दूसरी किसी विधि में नहीं किया जाता है।
(2) पुनरावृत्ति– इस विधि का एक गुण है पुनरावृत्ति क्योंकि इस विधि में प्रयोग के आधार पर प्राप्त निष्कर्ष को और अधिक सत्य और विश्वसनीय बनाने हेतु प्रयोग को पुनः दोहराया भी जा सकता है।
(3) नियन्त्रित वातावरण– इस विधि द्वारा अध्यापक दक्षतापूर्वक अपने शिक्षार्थियों की मानसिक और भौतिक दशाओं का पता लगाता है और बच्चों को उचित तथा नियंत्रित वातावरण प्रदान करता है ।
(4) प्रमाणीकरण– इस विधि में प्रयोगकर्त्ता किसी दूसरी परिस्थिति में किए गये प्रयोगों के आधार पर प्राप्त निष्कर्षों की जाँच किसी अन्य परिस्थिति में आसानी से दूर कर सकता है तथा इसमें दोनों के ही निष्कर्ष समान होते हैं। यही इस विधि की प्रामाणिकता है ।
(5) अन्तः निरीक्षण एवं बाह्य निरीक्षण का संकलन – इस विधि में वस्तुनिष्ठ तथा आत्मनिष्ठ दोनों प्रकार के आँकड़ों के आधार पर निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं अतः विषयी से अन्तर्निरीक्षण रिपोर्ट लेकर यह देखा जाता है कि यह रिपोर्ट प्रयोज्य के वस्तुनिष्ठ आँकड़ों के अनुरूप है या नहीं। इसी सन्दर्भ में टिचेनर ने कहा है, “प्रयोग मात्र बाह्य निरीक्षण एवं अन्तः निरीक्षण को नियंत्रण में लाने की एक निपुण रीति है।”
प्रयोगात्मक विधि के दोष (Demerits of Experimental Methods)—इस विधि के दोष निम्न हैं—
(1) लम्बी एवं महँगी विधि– इस विधि में बहुत समय लगता है। इस विधि को प्रयोग करने में व्यय भी बहुत अधिक होता है।
(2) प्रयोगकर्त्ता के साथ सहयोग की कमी– कभी-कभी प्रयोज्य (विषयी) प्रयोगकर्ता के साथ पूरा-पूरा सहयोग नहीं करते हैं।
इतने सारे दोष होने के बाद भी प्रयोगात्मक विधि अनुसंधान की सर्वोत्तम विधि स्वीकारी जाती है। इस सम्बन्ध में स्किनर महोदय का कहना है, कि कुछ अनुसंधानों के लिए प्रयोगात्मक विधि को बहुधा सर्वोत्तम विधि समझा जाता है।
(3) नियंत्रण की कठिनाई– वास्तविक रूप में विषयी की मानसिक स्थिति को पूर्ण रूप से नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति की मानसिक स्थिति पर अनेक आन्तरिक एवं बाह्य दशाओं का प्रभाव पड़ता है। इन बाह्य दशाओं को तो एक सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है किन्तु आन्तरिक दशाओं को नियंत्रित करना अत्यन्त कठिन होता है।
(4) सभी प्रयोग मनुष्यों पर सम्भव नहीं– इस विधि में सभी प्रकार के प्रयोग मनुष्यों पर सम्भव नहीं है । अतः इसी जगह पर इसकी उपयोगिता कम हो जाती है। इसके अलावा कई प्रकार की मानसिक क्रियाओं, जैसे अचेतन मानसिक क्रियाओं का अध्ययन प्रयोगशाला में सम्भव भी नहीं है ।
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