स्वामी सहजानन्द और किसान सभा आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्वामी सहजानन्द और किसान सभा आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखिए।
( 65वीं BPSC/2020 )
उत्तर- बिहार में किसानों की समस्याओं के समाधान एवं उनके संगठित करने के उद्देश्य से 1923 में मुंगेर में किसान सभा का गठन किया गया। इस सभा का गठन मो. जुबैर एवं श्रीकृष्ण सिंह ने किया था। परंतु किसान आंदोलन को निर्णायक मोड़ स्वामी सहजानंद ने दिया। उन्होंने मार्च 1928 में किसान सभा की औपचारिक स्थापना की। 1929 में इस सभा की गतिविधियां काफी बड़े पैमाने पर आरंभ हुईं। नवंबर 1929 में स्वामी सहजानंद की अध्यक्षता में प्रांतीय किसान सभा की स्थापना हुई। इसी वर्ष सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी बिहार यात्रा कर किसानों में चेतना जगाने का काम किया।
किसान आंदोलन की लोकप्रियता से जमींदारों की चिंताएं बढ़ गईं जिसके फलस्वरूप सरकार पर दबाव डालने की कोशिश प्रारंभ हुई। इसी उद्देश्य से एक राजनीतिक दल, यूनाइटेड पॉलिटिकल पार्टी की स्थापना की गई।
किसान सभा द्वारा 1933 में एक जांच कमिटी का गठन किया गया जिसने किसानों की दयनीय दशा के प्रति ध्यान आकर्षित करने का काम किया। 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती एवं महासचिव प्रो. एन. जी. रंगा थे। इन्होंने किसानों की समस्याओं के प्रति कांग्रेस का ध्यान आकृष्ट कराने का प्रयास किया। जवाहरलाल नेहरू ने भी किसान सभा के इन प्रयासों का समर्थन किया।
1936 तक किसान सभा की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हो चुकी थी एवं इसके सदस्यों की संख्या अब लगभग 2ऋ लाख थी। 1937 के चुनावों के पूर्व कांग्रेस एवं किसान सभा के बीच समझौता हुआ और कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में किसानों की समस्याओं पर चर्चा की। लेकिन चुनावों में जीत के बाद कांग्रेसी मंत्रिमंडल का किसान सभा के नेताओं के साथ मतभेद हो गया, क्योंकि किसानों की समस्याओं के प्रति मंत्रिमंडल की कोई रुचि नहीं थी।
इन परिस्थितियों में किसानों ने प्रत्यक्ष कार्रवाई का रास्ता अपनाया। बड़हिया टाल के इलाके के किसानों द्वारा जमींदारी उन्मूलन की मांग को लेकर वृहत आंदोलन आरंभ हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कांग्रेस की उदासीनता के कारण किसान आंदोलन का नेतृत्व साम्यवादियों के हाथों में चला गया। स्वयं स्वामी सहजानंद ने भी साम्यवाद में कुछ रुचि दिखाई।
अत: बिहार में किसान आंदोलन 1947 के बाद लगभग चलता रहा जिसमें स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपने नेतृत्व से ओज डाल दिया। सरकार एवं कांग्रेस की रुचि न लेने के बावजूद किसान आंदोलन का फायदा बिहार के किसानों को मिला।
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