विगत कई वर्षो से बाढ़ एवं सूखे की स्थिति ने बिहार के उन्नयन एवं समृद्धि को लगातार प्रभावित किया है। इस प्रकार के दुर्घटना प्रबंधन में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी की भूमिका की विशिष्ट उदाहरण के साथ विवेचना कीजिए ।

विगत कई वर्षो से बाढ़ एवं सूखे की स्थिति ने बिहार के उन्नयन एवं समृद्धि को लगातार प्रभावित किया है। इस प्रकार के दुर्घटना प्रबंधन में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी की भूमिका की विशिष्ट उदाहरण के साथ विवेचना कीजिए ।

उत्तर – ‘बिहार में बाढ़’ और ‘बिहार का शोक-कोसी’ जैसे भयाक्रांतक कहावतों से उत्तरी बिहार के लोगों को हर साल जूझने की नियति बन गई है। एक कृषि प्रधान देश में बिहार मुख्य रूप से कृषि पर आश्रित राज्य है। खासकर 2000 में बिहार के दक्षिणी हिस्से को काट कर झारखंड के रूप में एक अलग राज्य बनाए जाने के बाद ज्यादातर उद्योग-धंधे झारखंड में चले गए। बिहार के बंटवारे से बिहार में जो जमीन बची उसका 2/3 भाग बाढ़ से प्रभावित रहता है जबकि लगभग 20% क्षेत्र सूखाग्रस्त है। हिमालय की तलहटी में बसे उत्तरी बिहार की मिट्टी बहुत उपजाऊ है लेकिन हर साल 2/3 भूभाग पर आने वाली बाढ़ सिर्फ फसलों को ही तबाह नहीं करती बल्कि यहां की जिंदगी को भी झकझोर जाती है। नदियों के तटबंध टूटने से फसलों को भारी नुकसान होता है। बाढ़ प्रबंधन सुधार सहायता केंद्र (FMISC) का मानना है कि पिछले 40 वर्षों के दौरान उत्तरी बिहार के मैदानी इलाकों में सबसे ज्यादा बाढ़ दर्ज की गई है। साल 1978, 1987, 1998, 2004 और 2007, 2008, 2011, 2013, 2015, 2017 और 2019 में बिहार सबसे ज्यादा बाढ़ से प्रभावित रहा है। बिहार के मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, शिवहर, सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा, कटिहार, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, बेतिया, मोतिहारी और बेगूसराय जैसे जिले अक्सर बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित रहते हैं। दूसरी तरफ दक्षिणी बिहार में जहां सूखे की समस्या है वहां नहरों की कमी और बरसाती नदियों के पानी का सही नियमन नहीं होने की वजह से कृषि नहीं हो पाती है। राज्य का करीब 1/4 भाग में ही नहरों से सिंचाई होती है। समूचे बिहार में नहरों का जाल बिछाकर सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही नकदी और कम समय में तैयार होने वाली फसलों का उत्पादन किया जाए, जिससे किसानों की मेहनत सूखे या बाढ़ के पानी में न बहने पाए। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस इलाके में जल संपदा की कोई कमी नहीं है, हर साल मानसून के तीन महीने में इतना पानी बारिश और बाढ़ की वजह से आ जाता है कि अगर इसका प्रबंधन ठीक से किया जाए तो इस इलाके में कभी जल संकट की स्थिति नहीं बनेगी और बाढ़ का खतरा भी कम हो जायेगा।
बिहार में नदियों का जाल बिछा हुआ है। उत्तरी बिहार में बहने वाली अधिकतर नदियों में वर्षभर जल रहता है। बाढ़ की समस्या उत्तरी बिहार की सबसे बड़ी और गम्भीर समस्या है इस प्राकृतिक आपदा से करोड़ों रुपये की फसलों एवं मवेशियों तथा कृषि का नुकसान होता है। उत्तरी बिहार की सबसे बड़ी समस्या है – गंगा के उत्तरी मैदान में बाढ़ के कारण हिमालय से बहने वाली अनेक नदियां, जिसमें घाघरा, बागमती, कोसी, महानन्दा आदि प्रमुख हैं।
बाढ़ अनुश्रवण तथा प्रबंधन के चरण: बाढ़ अनुश्रवण प्रक्रिया में बाढ़ – पूर्व की स्थिति, बाढ़ के दौरान की स्थिति, उसके बाद की सभी स्थितियों को शामिल करना जरूरी है। बिहार में जल प्रबन्धन पर ध्यान देते हुए राष्ट्रीय सिंचाई नीति बनाये जाना जरुरी है। बेसिन पर आधारित मास्टर प्लान तैयार करना तथा निर्माणाधीन सिंचाई परियोजनाओं की प्राथमिकता का निर्धारण करना भी आवश्यक है ।
•  बाढ़ पूर्व की गतिविधियां
> उन नदी-स्थलों को चिह्नित करना जहाँ बाढ़ के कारण मानव जीवन तथा उसकी आर्थिक गतिविधियां निरन्तर बाधित होती हो ।
> प्रत्येक चयनित नदी-स्थल पर बाढ़ के पानी के जमे रहने की अवधि तथा स्थल को चिन्हित करना।
> बाढ़ की अवधि तथा समय का निर्धारण |
> बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की वस्तुओं के आर्थिक महत्व का निर्धारण।
> बाढ़ के एक नियत स्तर पर क्षति – संभाव्यता का निर्धाण तथा पूर्वानुमान करना।
> मानवीय अवस्थिति, वास, निर्माण, संरचना के महत्व के दृष्टिकोण से जलस्तर के खतरों के प्रति सतर्कता बरतना।
•  बाढ़ के दौरान अपेक्षित गतिविधियां
> मौसम विज्ञान संबंधी हाइड्रो-मीटिओरोलॉजिकल नेटवर्क कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि प्रबंधन के सभी स्तरों पर ससमय सूचना – संचार जारी हो सके।
> उपग्रहीय चित्रों का उपयोग कर बाढ़ – ग्रस्त तथा अन्य तरह से आक्रांत भू-भाग का मानचित्रण करना।
•   बाढ़पश्चात् अपेक्षित गतिविधियां
> बाढ़ की वजह से हुई क्षति का जमीनी, हवाई तथा उपग्रहीय सर्वेक्षण कार्य करना ।
> सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण तथा उनका मानचित्रण करना।
> भावी बाढ़ से होने वाली क्षति को रोकने के उपायों को सुझाना।
• बाढ़ से पहले की गतिविधियों के लिए
> जी.आई.एस. बाढ़ के पहले की गतिविधियों तथा बाढ़ आपदा एवं जोखिम निर्धारण के लिए उपयोगी है। यह वस्तुतः बड़े पैमाने पर आंकड़ा प्रबंधन में काम में आता है ।
> बाढ़ के दौरान गतिविधियों के तहत इवैकुएशन रूटों की योजना बनाना ताकि आकस्मिक कार्यों के लिए एक संचालन केन्द्र की रूपरेखा बनाई जाय ताकि बाढ़ चेतावनी पद्धति की रूपरेखा सभी सम्बद्ध आँकड़ों समेत तैयार की जा सके। बाढ़ राहत के आलोक में भी जी. पी. एस. अर्थात् ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम के साथ मिलकर जी. आई. एस. काफी उपयोगी सिद्ध होता है ताकि खोज एवं बचाव कार्यक्रमों के तहत पहुँच से बाहर के क्षेत्रों में आक्रान्त जनजीवन की समस्या का समाधान किया जा सके । बाढ़ पश्चात् गतिविधियों में क्षति- सूचनाओं के संग्रहण, जनसंख्या – आँकड़ों का संकलन तथा संरचना निर्माण हेतु स्थल – मूल्यांकन में भी जी. आई. एस. पद्धति उपयोगी है।
बिहार में बाढ़-प्रबंधन आधारित जी. आई. एस. के साथ प्रयोगः  बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति कोषांग के अनुसार भारत में, बिहार सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र है। जिसमें उत्तर बिहार की 76% आबादी निरन्तर बाढ़ से आक्रान्त है। नेपाल से सटे बिहार का मैदानी भाग हिमालय से निकलने वाली नदियों का जलग्रहण क्षेत्र है। हिमालय के नेपाल – क्षेत्र में भारी वर्षा के कारण घाघरा, बूढ़ी गंडक, बागमती, भूतही बलान, कमला, कोशी तथा महानन्दा में जल प्रवाह बढ़ जाता है, जिसका असर मैदानी हिस्से पर पड़ता है।
आज आपदा से निपटने के अभियान से अधिक जरूरत है – आपदा की तैयारियों में सुधार की। इसके लिए संस्थागत संरचना में बहुआयामी सूचना तंत्र का विकास अन्यतम आवश्यक है ताकि पूर्वानुमान तथा भविष्यवाणियों के आधार पर त्वरित कार्रवाई की जा सके। इसके लिए अत्याधुनिक तकनीक के तहत उपग्रह संवेदी-तंत्र, ज्योग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम, इंटरनेट आदि संस्थापित किए जाने चाहिए। फ्लड मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम सेल (FMISC) अर्थात् बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति कोषांग की स्थापना से बिहार के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में प्रबंधन तथा नियंत्रण हेतु प्रभावी सहायता मिली है।
बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति कोषांग (FMISC ) : विभाग के अन्तर्गत बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति कोषांग (FMISC) विश्व बैंक संपोषित संरचना है। इसे चार चरणों में विकसित किए जाने की योजना है। प्रथम चरण का कार्य प्रक्रियाधीन है। तदनुसार उत्तर बिहार के सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र जो कि पश्चिम में बूढ़ी गंडक नदी से पूरब में कोशी नदी तक के बीच स्थित पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, सुपौल, सहरसा तथा खगड़िया को समाहित किए हुए लगभग 26000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तारित है।
बाढ़ प्रबंधन सूचना पद्धति अर्थात् एफ.एम.आई.एस. मानचित्रों तथा प्रतिवेदनों के स्वरूप में विभिन्न तरह की सूचनाएँ प्रसारित करता है। इसके तहत फ्लड बुलेटिन, मंथली ई – बुलेटिन, बाढ़ के कारण ग्राम स्तर तक के प्रभावित भौगोलिक भू-भाग के आँकड़ें, ग्राम स्तर तक के बाढ़ मानचित्र, आई. एम. डी. द्वारा जारी बाढ़ पूर्वानुमान, नेपाल क्षेत्र में वर्षापात के आंकड़े, बाढ़-तीव्रता के मानचित्र, बाढ़ आवृत्ति तथा अवधि के मानचित्र संबंधी सूचनाएं बिहार सरकार के एफ. एम.आई.एस.सी. के वेबसाइट पर जारी करते रहना चाहिए है। इसका वेबसाइट एड्रेस इस प्रकार है- http:// fmis.bin.nic.in/ प्रमुख सरकारी तंत्र अर्थात् मुख्यमंत्री से लेकर बाढ़ प्रबंधन से जुड़े सभी इकाईयों को उपलब्ध उक्त सूचनाएं बाढ़ प्रबंधन तथा राहत हेतु कारगर रणनीति अपनाने के लिए काफी उपयोगी सिद्ध होती है।
बिहार में सूखे की समस्या एवं निदानः बिहार का मध्य भाग पटना, नालन्दा, जहानाबाद, औरंगाबाद, गया, नवादा तथा मुंगेर में अक्सर 100 सेमी. से कम वर्षा होती है जिससे इन इलाकों में सूखाग्रस्त होने की सम्भावना बनी रहती है। गंगा के दक्षिणी मैदान की भूमि ढालयुक्त और पथरीली है, वहां की मिट्टी भी छिछली है जिससे भूमिगत जल नहीं जा पाता और जल तेजी से बह जाता है। इस क्षेत्र में वनों की अतिशय कटाई से मिट्टी की नमी में कमी हो गई है जिससे कृषि प्रभावित होती है। बिहार में दक्षिणी बिहार के कैमूर, रोहतास, गया, औरंगाबाद, नवादा, मुंगेर, जमुई, शेखपुरा, लखीसराय, भागलपुर, पटना, नालन्दा और जहानाबाद के कुछ इलाके एवं टाल क्षेत्र सूखा पीड़ित हैं। बिहार का 20% क्षेत्र सूखाग्रस्त है। दक्षिणी मैदान में बरसाती नदियां सोन, पुनपुन, हरीहर, किऊल आदि मुख्य हैं। लेकिन ये पर्याप्त सिंचाई के साधन नहीं बन पाते। बिहार में कृषि सिंचाई हेतु पहले परम्परागत सिंचाई जैसे तालाबों नदियों आदि द्वारा सिंचाई की जाती थी लेकिन अब सिंचाई के अन्य माध्यमों जैसे बोरिंग, ट्यूवेल, नलकूपों एवं नहरों द्वारा सिंचाई से यहां का भू-जल स्तर में कमी आई है। राज्य में लगातार गिरते भू-जल स्तर की वजह से सूखे की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है।
इन समस्याओं के समाधान हेतु सरकार द्वारा बनाई गयी राष्ट्रीय जल नीति के अनुसार बाढ़ एवं सूखे को प्रबंधित किया जा सकता है जिससे सरकार द्वारा पूर्व तैयारी, जैसे विकल्पों के साथ ही प्राकृतिक जल विकास प्रणाली को दुरूस्त करने हेतु आधुनिक मशीनों के प्रयोग एवं जल विकास की सही दिशा एवं स्थिति का पता लगाने हेतु भारतीय उपग्रहों का प्रयोग किया जाना चाहिए। सूखे से निपटने के लिए विभिन्न कृषि कार्य नीतियों को विकसित कर मृदा एवं जल में सुधार के लिए स्थानीय, अनुसंधान एवं वैज्ञानिक संस्थाओं से प्राप्त वैज्ञानिक जानकारी से जल और भूमि आदि के प्रबंधन की व्यवस्था की जा सकती है।
भौगोलिक सूचना पद्धति अर्थात् जी. आई. एस. आपदा प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है। दरअसल, प्रभावी प्रबंधन हेतु सूचना काफी मायने रखती है। आपदा प्रबंधन से जुड़े व्यक्यिों के लिए सही समय पर सही सूचना का होना नितांत आवश्यक है। बाढ़, भूकम्प, तूफान, भू-स्खलन, दावानल, अकाल जैसी किसी भी आपदा के सन्दर्भ में हर तरह की सूचनाओं के लिए मानचित्र तथा भौतिक स्थितियों का ज्ञान आवश्यक है। सामान्य तौर पर जी.आई. एस. आपदा प्रबंधन में उसकी तैयारी, उससे निपटने, संभलने तथा उसके समाधान आदि के लिए उपयोगी है।
• बिहार में सूखाग्रस्त क्षेत्र होने के कारण –
> मानसून की अनिश्चितता एवं परिवर्तनशीलता।
>  दक्षिणी बिहार की अधिकतर नदियों का बरसाती होना ।
> जल प्रबन्धन में जल संग्रहण पर ध्यान केन्द्रीत नहीं करना ।
> जल प्रबन्धन और बांध बनाकर जल संग्रह की इच्छा शक्ति का अभाव।
• सूखा से निपटने के लिए उपाय
> अधिक से अधिक वनीकरण को प्रोत्साहन देना चाहिए ।
> दक्षिण बिहार की नदियों पर बांध बनाने चाहिए।
> जल प्रबन्धन के अन्तर्गत जल भण्डारण, बेसीन लिस्टिंग या क्रम में तालाब बनाना।
> भूमिगत जल को कम-से-कम उपयोग में लाना तथा उसके निकट जलाशय बनाना।
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