ट्रांसजेनिक (Transgenic) फसलें क्या हैं? यह प्रौद्योगिकी किस प्रकार भारतीय कृषि को प्रभावित करेगी?

ट्रांसजेनिक (Transgenic) फसलें क्या हैं? यह प्रौद्योगिकी किस प्रकार भारतीय कृषि को प्रभावित करेगी?

(43वीं BPSC/2001)
 उत्तर – जैव-तकनीक (Biotechnology) का विकास कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हुआ है जो हमारे जीवन स्तर को सुधारने के साथ ही अनेक समस्याओं के समाधान में व्यापक रूप से सहायक है। कृषि क्षेत्र में जैव-तकनीक ने अनेक क्रांतिकारी सुधारों को लाया, उनमें ट्रांसजेनिक फसल भी एक है। ट्रांसजेनिक फसलों को पराजीनी फसल भी कहते हैं। इन फसलों के प्राकृतिक जीन में वांछित गुण या गुण समूहों वाले पौधे का जीन कृत्रिम तरीकों (रिकंबीनेंट – डी. एन. ए. तकनीक ) द्वारा मिला दिया जाता है अथवा इनकी मूल संरचना में परिवर्तन कर दिया जाता है। इस तकनीकी के प्रयोग से प्राप्त ट्रांसजेनिक फसल उच्च उत्पादकता, रोग/कीट प्रतिरोधक क्षमता वाले होते हैं। राष्ट्रीय कृषि प्रौद्योगिकी परियोजना के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने कुछ फसलों के ट्रांसजेनिक किस्म तैयार करने के लिए तीन चरणों में वैज्ञानिक शोध मिशन शुरू किया है। प्रथम चरण में धान, अरहर एवं कपास को कीड़ों से बचाने के लिए बैसिलस थुरिनजिएन्सिस (B.T.Bacillus Thuringiensis) नामक जीवाणु से प्राप्त जीन डाले जाएंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार B.T. जीवाणु में पाये जाने वाले जीन जहरीले प्रोटीन बनाते हैं जिन्हें खाकर हानिकारक कीड़ों के लार्वा तुरंत मर जाते हैं। मिशन के दूसरे चरण में लोबिया, सोयाबीन और मटर जैसे फसलों के खास जीन कपास, धान, अरहर जैसे फसलों में डाला जाएगा। सोयाबीन और मटर आदि में कुछ ऐसे जीन होते हैं जो नुकसानदेह कीड़ों को मारने वाली प्रोटीन बनाते हैं। मिशन के तीसरे चरण में विभिन्न किस्मों के वांछित जीनों को इकट्ठा करके किसी एक किस्म में डाला जाएगा। इससे एक आदर्श प्रजाति प्राप्त होगी। इस तकनीक को पिरामिडिंग तकनीक का नाम दिया गया है।
ट्रांसजेनिक फसलें भारतीय कृषि के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुए हैं। वांछित जीन फसलों में डालकर फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादकता को बढ़ाया जा रहा है। यदि सही मायने में ट्रांसजेनिक फसलों का प्रयोग सफल रहा तो फसलों में कीटों से प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने से कीटनाशकों के प्रयोग में कमी आएगी जिससे कृषि लागत कम होगी एवं पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी।
• ट्रांसजेनिक ( पराजीनी) फसल
> इनमें फसलों के प्राकृतिक जीन में वांछित गुण या गुण समूहों वाले पौधे का जीन कृत्रिम तरीके (रिकंबीनेंट-D.N.A तकनीक) द्वारा मिला दिया जाता है अथवा इनकी मूल संरचना में परिवर्तन कर दिया जाता है।
• ट्रांसजेनिक फसलों की विशेषता
> ट्रांसजेनिक फसल उच्च उत्पादकता एवं रोग/कीट प्रतिरोधक क्षमता युक्त होते हैं।
> इन फसलों के उपयोग से कृषि लागत एवं पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है।
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