तरंग गति तथा ध्वनि (Wave Motion and Sound)
तरंग गति तथा ध्वनि (Wave Motion and Sound)
तरंग गति तथा ध्वनि (Wave Motion and Sound)
तरंग किसी माध्यम में उत्पन्न एक प्रकार का विक्षोभ (disturbance) है, जो बिना अपना स्वरूप बदले तथा कण की वास्तविक गति के किसी विशेष माध्यम में एक निश्चित वेग से आगे बढ़ता है। माध्यम में विक्षोभ के आगे बढ़ने की इस प्रक्रिया को तरंग गति कहते हैं। माध्यम या निर्वात् में तंरग गति के कारण ऊर्जा, दाब आदि का स्थानान्तरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक किया जाता है।
तरंगों के प्रकार (Types of Waves)
तरंगें मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं
(i) यान्त्रिक अथवा प्रत्यास्थ तरंगें (Mechanical or Elastic Waves) वे तरंगें, जिनके संचरण के लिए भौतिक माध्यम अति आवश्यक है, यान्त्रिक तरंगें अथवा प्रत्यास्थ तरंगें कहलाती हैं । जैसे वायु में ध्वनि तरंगें, जल में गिरे पत्थर के कारण उत्पन्न तरंगें, रस्सी में दोलनों के द्वारा उत्पन्न तरंगें, आदि।
(ii) वैद्युत चुम्बकीय अथवा अप्रत्यास्थ तरंगें (Electromagnetic or Inelastic Waves) वे तरंगें हैं, जिनके संचरण के लिए माध्यम की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है, वैद्युत चुम्बकीय या अप्रत्यास्थ तरंगें कहलाती हैं। जैसे दृश्य प्रकाश तरंगें, पराबैंगनी किरणें, ऊष्मीय तरंगें, रेडियो तरंगें, X-तरंगें, y-तरंगे, आदि ।
(iii) पदार्थ तरंगें (Matter Waves) ये तरंगें मुख्य रूप से आधुनिक तकनीकी में प्रयुक्त होती हैं, परन्तु ये बहुत अपरिचित हैं। ये तरंगें इलेक्ट्रॉनों, प्रोटॉनों तथा अन्य मूल कणों के साथ सम्बद्ध होती हैं।
यान्त्रिक तरंगों के प्रकार (Types of Mechanical Waves)
यान्त्रिक तरंगें दो प्रकार की होती हैं
1. अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal Waves)
जब किसी तरंग में माध्यम के कण तरंग के चलने की दिशा में ही कम्पन करते हैं तो उत्पन्न तरंग अनुदैर्ध्य तरंग कहलाती है। इस प्रकार की तरंगें ठोस, द्रव, गैस तीनों ही माध्यमों में उत्पन्न होती हैं। वायु में ध्वनि इन्हीं तरंगों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती है। ये तरंगें माध्यम कणों द्वारा सम्पीडन एवं विरलनों के फलस्वरूप संचरित होती हैं।
उदाहरण तार की एक लम्बी स्प्रिंग के सिरे को किसी दीवार से बाँधकर तथा दूसरे सिरे को हाथ से पकड़कर आगे पीछे करने पर स्प्रिंग का प्रत्येक चक्कर स्प्रिंग की लम्बाई के अनुदिश कम्पन करने लगता है। जिससे स्प्रिंग में अनुदैर्ध्य तरंगें संचरित होने लगती हैं।
इस स्थिति में, स्प्रिंग के चक्कर (लपेटन) कुछ स्थानों पर सामान्य अवस्था की अपेक्षा पास-पास तथा कुछ स्थानों पर दूर-दूर होते हैं। जिन स्थानों पर चक्कर पास-पास होते हैं उन स्थानों को संपीडन (compression) कहते हैं तथा जिन स्थानों पर चक्कर दूर-दूर हैं उन स्थानों को विरलन (rarefaction) कहते हैं।
संपीडन वाले स्थान पर माध्यम का दाब एवं कणों का घनत्व अधिक होता है जबकि विरलन वाले स्थान पर माध्यम का दाब एवं कणों का घनत्व कम होता है।
उदाहरण वायु में चलने वाली ध्वनि तरंगें, हुक से लटके एक स्प्रिंग के सिरे से बाट बाँधकर; खींचकर स्प्रिंग में उत्पन्न तरंगें, जल के अन्दर चलने वाली तरंगें आदि अनुदैर्ध्य प्रकृति की होती हैं। जब एक अनुदैर्ध्य तरंग वायु से गुजरती है तो वायु का घनत्व लगातार बदलता रहता है।
2. अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves)
जब किसी तरंग में माध्यम के कण तरंग के चलने की दिशा के लम्बवत् कम्पन करते हैं तो उत्पन्न तरंग अनुप्रस्थ तरंग कहलाती है। ये तरंगें केवल उन ठोसों तथा द्रवों की सतह पर ही उत्पन्न की जा सकती हैं, जिनमें दृढ़ता होती है। ये तरंगें गैसों में उत्पन्न नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि गैसों में दृढ़ता नहीं होती है। ये तरंगें द्रवों में केवल उनके तल पर उत्पन्न हो सकती हैं, द्रवों के अन्दर नहीं।
उदाहरण प्रकाश एक अनुप्रस्थ तरंग है। परन्तु यह यान्त्रिक तरंग नहीं है।
जब हम डोरी के एक सिरे को किसी हुक से बाँधकर, इसके दूसरे सिरे को ऊपर नीचे अथवा डोरी की लम्बाई के लम्बवत् इधर-उधर हिलाते है तो डोरी में उसकी लम्बाई की दिशा में तरंगे संचरित होने लगती हैं। लेकिन डोरी के कण डोरी की लम्बाई के लम्बवत् कम्पन करने लगते हैं। अतः डोरी में उत्पन्न तरंगें अनुप्रस्थ तरंगें कहलाती हैं।
◆ जब तालाब के शान्त जल में पत्थर फेंकते हैं तो अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न होती हैं। तालाब में पत्थर फेंकने से उत्पन्न अनुप्रस्थ तरंग के जल-सतह से उठे हुए भाग को श्रृंग (crest) तथा जल सतह से दबे हुए भाग को गर्त (trough) कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, अनुप्रस्थ तरंग का एक भाग शृंग, माध्यम में शून्य की अशान्त रेखा के ऊपर तथा इसी तरंग का दूसरा भाग गर्त, शून्य की अशान्त रेखा के नीचे होता है।
एक अनुप्रस्थ तरंग का विस्थापन – दूरी ग्राफ (Graphical Representation of a Transverse Wave)
एक अनुप्रस्थ तंरग का विस्थापन – दूरी ग्राफ नीचे दिया गया है।
तरंग गति से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ (Some Important Definitions Related to Wave Motion)
तरंग गति से सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं
(i) तरंगदैर्ध्य (Wavelength) किन्हीं दो निकटवर्ती (क्रमागत) शृंगों अथवा दो निकटवर्ती गर्तों के बीच की दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है अथवा दो क्रमागत संपीडनों अथवा दो क्रमागत विरलनों के बीच की दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है। अर्थात् तरंगदैर्ध्य, तरंग द्वारा तय की गयी न्यूनतम दूरी होती है, जिसमें ध्वनि तरंग की पुनरावृत्ति होती है।
तरंगदैर्ध्य को ग्रीक अक्षर 2 (लैम्डा) से प्रदर्शित करते हैं तथा इसका SI मात्रक मीटर होता है।
(ii) आवृत्ति (Frequency) कम्पन करने वाले किसी कण द्वारा 1 सेकण्ड में किए गए कम्पनों की संख्या को उस कण की आवृत्ति (n या f) कहते हैं। इसमें कम्पनों की संख्या प्रति सेकण्ड घटित होती है। यदि हम सम्पीडन या विरलन में प्रति सेकण्ड गुजरने वाले कम्पनों को गिने तब हमें तरंग की आवृत्ति प्राप्त होती है। तरंग की आवृत्ति स्थिर होती है तथा यह विभिन्न पदार्थों से गुजरने पर कभी-भी बदलती नहीं है। इसे ग्रीक शब्द v न्यू (nu) से भी प्रदर्शित करते हैं। इसका SI मात्रक हर्ट्ज होता है। जिसका नाम हैनरिच रूडोल्फ हर्ट्ज के नाम पर रखा गया। इन्होंने प्रकाश वैद्युत प्रभाव (photoelectric effect) की खोज की थी।
अतः 1 हर्ट्ज = 1 कम्पन प्रति सेकण्ड
1 किलो हर्ट्ज = 1000 हर्ट्ज
(iii) आवर्त्तकाल (Time Period) किन्हीं दो निकटवर्ती सम्पीडन या विरलन का एक स्थिर बिन्दु से गुजरने में लगा समय तरंग का आवर्तकाल कहलाता है। दूसरे शब्दों में, कम्पन करने वाले किसी कण द्वारा 1 कम्पन पूरा करने में लिए गए समय को उस तरंग कण या तरंग का आवर्तकाल (T) कहते हैं। इसका SI मात्रक सेकण्ड होता है।
एक तरंग का आवर्तकाल, आवृत्ति का व्युत्क्रम होता है।
आवर्तकाल = 1/आवृत्ति या आवृत्ति = 1/आवर्तकाल
(iv) आयाम (Amplitude) कम्पन करने वाले किसी कण की मध्यमान स्थिति के एक ओर के अधिकतम विस्थापन को उस तरंग कण या तरंग का आयाम कहते हैं। यह तरंग के आकार को बताता है। इसे a से प्रदर्शित करते हैं। इसका SI मात्रक मीटर होता है।
तरंग का आयाम तथा किसी वस्तु में उत्पन्न कम्पनों का आयाम समान होता है।
(v) चाल (Speed) एक सेकण्ड में तरंग द्वारा चली गई दूरी को तरंग की चाल कहते हैं। परिस्थितियों के अन्तर्गत ध्वनियों की चालों की सभी आवृत्तियाँ बराबर होती हैं। इसे से प्रदर्शित करते हैं। इसका SI मात्रक मीटर प्रति सेकण्ड होता है।
ध्वनि तरंगें (Sound Waves)
ध्वनि तरंगें यांत्रिक तरंग हैं। इसका दैनिक जीवन में अत्यधिक लाभ है। ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है। जिसके कानों पर पड़ने से सुनने की संवेदना उत्पन्न होती हैं, सामान्यतः वायु के माध्यम में अनुदैर्ध्य तरंग ध्वनि तरंग कहलाती है। ध्वनि तरंगें निर्वात् में नहीं चल सकती हैं।
संगीतिक ध्वनियों की विशेषताएँ (Characteristics of Sound Waves)
संगीतिक ध्वनियों की चार विशेषताएँ होती हैं
(i) प्रबलता (Loudness) प्रबलता ध्वनि का वह लक्षण है, जिसके आधार पर कोई ध्वनि कान को धीमी या तेज सुनाई पड़ती है जब कोई ध्वनि हमें धीमी सुनाई पड़ती है तो प्रबलता कम होती है, जबकि तेज सुनाई पड़ने वाली ध्वनि की प्रबलता अधिक होती है। यदि ध्वनि तरंगों के आयाम छोटे हैं, तब ध्वनि धीमी या मृदु होगी और यदि ध्वनि तरंगों के आयाम बहुत बड़े हैं, तब ध्वनि अधिक या असहज होगी। ध्वनि की प्रबलता व्यवहारतः डेसीबल (dB) में मापी जाती है। यह हमारे कानों की सुग्राहिता पर निर्भर करती है। इसका SI मात्रक वाट / मीटर होता है। उदाहरण एक ही तीव्रता की ध्वनि एक सामान्य व्यक्ति के लिए काफी प्रबल होगी, किन्तु एक बहरे व्यक्ति के लिए प्रबलता शून्य ही होगी।
(ii) तारत्व (Pitch or Sharpness ) ध्वनि का तारत्व उसकी आवृत्ति पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे ध्वनि-स्रोत की आवृत्ति बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उत्पन्न ध्वनि का तारत्व बढ़ता जाता है तथा ध्वनि पतली अथवा तीक्ष्ण होती जाती है। इसके विपरीत जैसे-जैसे ध्वनि-स्रोत की आवृत्ति कम होती जाती है, वैसे-वैसे उत्पन्न ध्वनि का तारत्व घटता जाता है तथा ध्वनि मोटी (grave) या सपाट (flat) होती जाती है।
(iii) गुणता (Quality or Timbre) गुणता ध्वनि का वह लक्षण है, जिसके आधार पर दो भिन्न-भिन्न वाद्य यंत्रों द्वारा उत्पन्न की गई समान आवृत्ति एवं समान तीव्रता की ध्वनियों में भी अन्तर प्रतीत होता है। एकल आवृत्ति की ध्वनि को टोन कहते हैं, तथा अनेक आवृत्तियों के मिश्रण से उत्पन्न ध्वनि को स्वर (note) कहते हैं। ये हमारे कानों को सुनने मे सुखद लगते हैं। जबकि शोर कानो को कर्कश लगता है। अच्छी गुणवत्ता का संगीत कानों के लिए सुखद होता है। मे उदाहरण यदि हारमोनियम, सितार और सारंगी से समान आवृत्ति की ध्वनियाँ उत्पन्न की जाएँ, तो उन्हें सुनते ही हमें उनके उत्पादन स्रोत का ज्ञान हो जाता है।
(iv) तीव्रता (Intensity) किसी एकांक क्षेत्रफल से, प्रत्येक सेकण्ड में प्रवाहित ध्वनि ऊर्जा की मात्रा, ध्वनि तीव्रता कहलाती है। प्रबलता तथा तीव्रता समान पद नहीं है। परन्तु ये एक-दूसरे से सम्बंधित होते हैं, इसका SI मात्रक वाट/मी2 होता है।
उदाहरण जब दो ध्वनियाँ, जिनकी तीव्रताएँ समान हैं, फिर भी हम एक को दूसरे की अपेक्षा अधिक प्रबल ध्वनि के रूप में सुन सकते हैं, क्योंकि हमारे कान इसके लिए अधिक संवेदनशील होते हैं।
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल (Speed of Sound in Different Media)
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल भिन्न-भिन्न होती है। ध्वनि की चाल उस माध्यम के गुणों पर निर्भर करती है, जिससे यह होकर गुजरती है। यह माध्यम के तापमान पर निर्भर करती है। यदि माध्यम के ताप में वृद्धि हो जाए, तब ध्वनि की चाल में भी वृद्धि होती है। 22°C पर वायु में ध्वनि की चाल 324 मी/से तथा 25°C पर 341 मी/से होती है।
ध्वनि की चाल पर भौतिक राशियों का प्रभाव (Effects of Physical Parameters on Speed of Sound)
ध्वनि की चाल निम्न भौतिक पैमाने द्वारा प्रभावित होती है
(i) दाब का प्रभाव (Effect of Pressure) ताप समान होने पर गैस में ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(ii) ताप का प्रभाव (Effect of Temperature) गैसों में ध्वनि की चाल, गैस के परमताप के वर्गमूल के समानुपाती होती है। अतः
(iii) आर्द्रता का प्रभाव (Effect of Humidity) नमीयुक्त वायु का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है। अतः नमीयुक्त वायु में ध्वनि की चाल शुष्क वायु की तुलना में बढ़ जाती है। यही कारण है कि बरसात के मौसम में सीटी की आवाज बहुत दूर तक सुनाई देती है।
(iv) वायु का प्रभाव (Effect of Wind) यदि वायु चल रही है, तब ध्वनि की चाल बदलती रहती है। यदि ध्वनि की चाल बढ़ रही है, तो यह दर्शाती है कि ध्वनि तरंगों के संचरण की दिशा में वायु बहती रहती है।
(v) आवृत्ति अथवा तरंगदैर्ध्य का प्रभाव (Effect of Frequency or Wavelength) गैस में ध्वनि की चाल पर आवृत्ति अथवा तरंगदैर्ध्य का कोई प्रभाव नहीं होता है अर्थात् विभिन्न आवृत्तियों की ध्वनि तरंगें वायु में समान चाल से चलती हैं, किन्तु भिन्न-भिन्न आवृत्तियों की संगत तरंगदैर्ध्य भिन्न-भिन्न होती हैं। यदि वायु में भिन्न-भिन्न आवृत्तियों की ध्वनि तरंगें भिन्न-भिन्न चाल से चलती होती, तो हम आरकैस्ट्रा (orchestra) का आनन्द नहीं उठा सकते थे।
◆ एक विशेष माध्यम में ध्वनि की चाल माध्यम के जड़त्वीय गुण तथा प्रत्यास्थता पर निर्भर करती है।
ध्वनि बूम (Sonic Boom)
जब कोई पिण्ड ध्वनि की चाल से अधिक तेजी से गति करता है तब उसे पराध्वनिक चाल से चलता हुआ कहा जाता है। गोलियाँ, जेट-वायुयान, रॉकेट आदि प्रायः पराध्वनिक चाल से चलते हैं। जब ध्वनि उत्पादक स्रोत ध्वनि की चाल से अधिक तेजी से गति करते हैं, तो ये वायु में प्रघाती तरंगें उत्पन्न करते हैं। इन प्रघाती तरंगों में बहुत अधिक ऊर्जा होती है। इस प्रकार की प्रघाती तरंगों से सम्बद्ध वायुदाब में परिवर्तन से एक बहुत तेज और प्रबल ध्वनि उत्पन्न होती है जिसे ध्वनि बूम कहते हैं। पराध्वनिक वायुयान से उत्पन्न इस ध्वनि बूम में इतनी मात्रा में ऊर्जा होती है कि यह खिड़कियों के शीशों को तोड़ सकती है और यहाँ तक कि भवनों को भी क्षति पहुँचा सकती हैं तथा इनके द्वारा उत्पन्न शोर से हमारे कानों को बहुत तेज दर्द होता है।
गैसों में अनुदैर्ध्य तरंगों या ध्वनि की चाल : न्यूटन सूत्र (Speed of Longitudinal Waves or Sound in Gases: Newton Formula)
सर्वप्रथम न्यूटन ने गणना द्वारा यह सिद्ध किया कि यदि किसी गैस का आयतनात्मक प्रत्यास्थता गुणांक B तथा घनत्व d हो तो, उस गैस में अनुदैर्ध्य तरंगों की चाल
लाप्लास का संशोधन (Laplace’s Correction)
लाप्लास का संशोधन न्यूटन की धारणा को गलत सिद्ध करता है। लाप्लास के अनुसार, “जब अनुदैर्ध्य तरंगें किसी गैसीय माध्यम में चलती हैं, तो माध्यम के किसी बिन्दु पर सम्पीडन तथा विरलन की स्थितियाँ एकान्तर-क्रम में उत्पन्न होती हैं। ये सम्पीडन एवं विरलन इतनी शीघ्रता से होते हैं, कि सम्पीडन के समय उत्पन्न ऊष्मा माध्यम से बाहर नहीं जा पाती और न ही विरलन के समय लुप्त हुई ऊष्मा माध्यम के अन्दर ही आ पाती है। इसके अतिरिक्त गैसें ऊष्मा की कुचालक होती हैं, इसलिए भी ऊष्मा का यह आदान-प्रदान सम्भव नहीं है अर्थात् गैसों में यांत्रिक अनुदैर्ध्य तरंगों अर्थात् ध्वनि का चलना एक रुद्घोष्म प्रक्रम (adiabatic process) होता है। इस प्रकार ध्वनि-संचरण के समय ऊष्मा की मात्रा स्थिर होती है, परन्तु ताप बदल जाता है (क्योंकि सम्पीडन के समय ताप बढ़ता है तथा विरलन के समय ताप घटता है)।
ध्वनि का परावर्तन (Reflection of Sound)
प्रकाश की भाँति ध्वनि भी एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम के पृष्ठ पर टकराने पर पहले माध्यम में वापस लौट आती है। इस प्रक्रिया को ध्वनि का परावर्तन कहते हैं। ध्वनि का परावर्तन भी प्रकाश के परावर्तन की तरह होता है। ध्वनि के परावर्तन के लिए चिकने तथा चमकदार पृष्ठ (जैसे शीशे) की आवश्यकता नहीं होती है, यह किसी भी सतह से परावर्तित हो सकती है। किन्तु ध्वनि की तरंगदैर्ध्य अधिक होने के कारण इसका परावर्तन बड़े आकार के पृष्ठों जैसे दीवारों, पहाड़ों, पृथ्वी तल, आदि, से अधिक होता है,
प्रतिध्वनि (Echo)
जब हम किसी बड़े हॉल में चिल्लाते या ताली बजाते हैं, तो हमे कुछ समय (अल्प) पश्चात् वही ध्वनि फिर सुनाई देती है। इसलिए, सुनाई देने वाली इस ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते हैं। प्रतिध्वनि कुछ नहीं है, परन्तु परावर्तित ध्वनि के बाद इसे सुना जा सकता है। इसलिए ध्वनि की पुनरावृत्ति के कारण ध्वनि का परावर्तन प्रतिध्वनि कहलाता है। हमारे मस्तिष्क में ध्वनि की संवेदना लगभग 0.1 सेकण्ड तक बनी रहती है अतः स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.1 सेकण्ड का समयअन्तराल अवश्य होना चाहिए। ध्वनि के स्रोत तथा अवरोधक के बीच की न्यूनतम दूरी 17.2 मी होती है। यह दूरी वायु (माध्यम) के ताप के साथ बदल जाती है, क्योंकि ताप के साथ ध्वनि के वेग में भी परिवर्तन होता है। ध्वनि के बार-बार परावर्तन के कारण हमें एक से अधिक प्रतिध्वनियाँ भी सुनाई दे सकती हैं। बादलों के गड़गड़ाहट की ध्वनि कई परावर्तक पृष्ठों; जैसे बादलों तथा भूमि से बार-बार परावर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं।
प्रतिध्वनियों द्वारा समुद्र की गहराई, वायुयान की ऊँचाई, सुदूर स्थित पहाड़ की दूरी आदि ज्ञात कर सकते हैं।
अनुरणन (Reverberation)
किसी हॉल में ध्वनि स्रोत को बन्द करने के बाद भी ध्वनि का कुछ देर तक सुनाई देना अनुरणन कहलाता है। बादलों का गर्जन अनुरणन का एक उदाहरण है। ध्वनि उत्पादन बन्द करने के बाद जितने समय तक प्रतिध्वनि सुनाई देती है वह समय अनुरणन काल कहलाता है। किसी हॉल में अनुरणन काल का मान हॉल के आयतन तथा इसमें उपस्थित कुछ अवशोषक पदार्थ के क्षेत्रफल पर निर्भर करता है।
ध्वनि के परावर्तन के विभिन्न उपयोग (Uses of Multiple Reflection of Sound)
ध्वनि का परावर्तन विभिन्न यन्त्रों, जैसे मेगाफोन, हॉर्न, स्टेथोस्कोप तथा ध्वनि हॉल में उपयोग होता है। ये उपकरण ध्वनि तंरगों के कई परावर्तन के लिए उपयोग किये जाते हैं।
(i) मेगाफोन या लाउडस्पीकर (Megaphone and Horn) हॉर्न तथा शहनाई जैसे वाद्य यन्त्र, सभी इस प्रकार बनाए जाते हैं, कि ध्वनि सभी दिशाओं में फैले बिना केवल एक विशेष दिशा में ही जाती है। इन यन्त्रों में एक नली का आगे का खुला भाग शंक्वाकार होता है। यह स्रोत से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों को बार-बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर आगे की दिशा में भेज देता है।
(ii) स्टेथोस्कोप (Stethoscope) यह एक चिकित्सा यन्त्र है, जिसका उपयोग डॉक्टरों द्वारा शरीर के अन्दर, मुख्यतः हृदय तथा फेफड़ों में, उत्पन्न होने वाली ध्वनि को सुनने के काम में लाया जाता है। स्टेथोस्कोप में रोगी के हृदय की धड़कन की ध्वनि, बार-बार परावर्तन के कारण डॉक्टर के कानों तक पहुँचती है।
(iii) ध्वनि बोर्ड (Sound Board) सम्मेलन कक्षों तथा सिनेमा हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती हैं, जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाए, कभी-कभी वक्राकार ध्वनि-पट्टों को मंच के पीछे रख दिया जाता है जिससे कि ध्वनि, पट्ट से परावर्तन के पश्चात् समान रूप से पूरे हॉल में फैल जाए
ध्वनि तरंगों का अपवर्तन (Refraction of Sound Waves)
जब ध्वनि तरंगें एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं, तो उनका अपवर्तन हो जाता है तब यह घटना ध्वनि तरंगों का अपवर्तन कहलाती है अर्थात् वे अपने पथ से विचलित हो जाती हैं। ध्वनि तरंगों का अपवर्तन वायु की भिन्न-भिन्न परतों का ताप भिन्न-भिन्न होने के कारण होता है।
◆ गर्म वायु में ध्वनि की चाल, ठण्डी वायु की अपेक्षा अधिक होती है, इसलिए ध्वनि तरंगें जब गर्म वायु से ठण्डी वायु में या ठण्डी वायु से गर्म वायु में संचरित होती हैं, तो अपने मार्ग से विचलित हो जाती हैं।
श्रव्यता का परिसर (Range of Hearing)
मनुष्य के कानों द्वारा औसत आवृत्ति परिसर के सुनने की सुग्राहिता को श्रव्य परिसर कहते हैं। मनुष्य में ध्वनि की श्रव्यता का परिसर लगभग 20 Hz से 20000 Hz तक होता है । पाँच वर्ष तक के बच्चे तथा कुछ जन्तु जैसे कुत्ते 25000 Hz की तक ध्वनि सुन सकते हैं। जैसे-जैसे व्यक्तियों की आयु बढ़ती जाती है, उनके कान उच्च आवृत्तियों के लिए कम सुग्राही होते जाते हैं।
अपश्रव्य तरंगें इन्फ्रासाउण्ड (Infrasonic Waves of Infrasound)
वे अनुदैर्ध्य यान्त्रिक तरंगें, जिनकी आवृत्तियाँ 20 हर्ट्ज, के नीचे होती हैं, अपश्रव्य तरंगें कहलाती हैं। ये तरंगें मनुष्य को सुनाई नहीं देती हैं। ये तरंगें बहुत बड़े आकार के स्रोतों के कम्पन करने से उत्पन्न होती हैं। ये तरंगें भूकम्प के समय, ज्वालामुखी विस्फोट व हेल, हाथी, गैंडा प्राणियों द्वारा (5 हर्ट्ज तक की ध्वनि) उत्पन्न होती हैं। इसलिए भूकम्प आने से पहले जानवर सुरक्षित स्थानों पर चले जाते है। इसका कारण यह है कि भूकम्प कम आवृत्ति की अपश्रव्य तरंगे उत्पन्न करतें हैं, इसलिए मुख्य तरंगों के शुरू होने से पहले जानवर सर्तक होकर सुरक्षित स्थानों को चले जाते हैं। ये तरंगें साँपों द्वारा भी सुनी जा सकती हैं।
पराश्रव्य तरंगें या अल्ट्रासाउण्ड (Ultrasonic Waves or Ultrasound)
वे अनुदैर्ध्य यान्त्रिक तरंगें, जिनकी आवृत्तियाँ 20000 हर्ट्ज से ऊँची होती हैं, पराश्रव्य तरंगें या पराध्वनि (ultrasound) कहलाती हैं। इन तरंगों को गाल्टन की सीटी तथा दाब वैद्युत प्रभाव की विधि द्वारा क्वार्ट्ज के क्रिस्टल के कम्पनों से उत्पन्न कर सकते हैं। मनुष्यों द्वारा इन तरंगों को नहीं सुना जा सकता है। कुत्ते पराश्रव्य तरंगों की 50000 हर्ट्ज तक की आवृत्ति परास को सुन सकते हैं। इसलिए पुलिस द्वारा कुत्तों का उपयोग जासूसी में किया जाता है। बन्दर, चमगादड़, बिल्ली, डोलफिन मछली, पॉरपॉइज भी पराश्रव्य ध्वनि को सुन सकते हैं तथा चमगादड़ द्वारा 120000 हर्ट्ज तक की आवृत्तियों को सुना जा सकता है। चमगादड़, बिल्लियाँ, कुत्ते, पॉरपॉइज जैसे कुछ प्राणी, कुछ पक्षी तथा कुछ कीट भी पराश्रव्य तरंगें उत्पन्न करते हैं।
श्रवण सहायक युक्ति (Hearing Aid )
जिन लोगों को कम सुनाई देता है, उन्हें इस यन्त्र की आवश्यकता होती है। यह बैट्री से चलने वाली एक इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है। इसमें एक छोटा-सा माइक्रोफोन, एक एम्प्लीफायर व स्पीकर होता है। जब ध्वनि माइक्रोफोन पर पड़ती है, तो वह ध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर देता हैं। एम्प्लीफायर इन विद्युत संकेतों को प्रवर्धित कर देता है। ये संकेत स्पीकर द्वारा ध्वनि तरगों में परिवर्तित कर दिए जाते हैं। जिससे ये ध्वनि तरगें कान के डायफ्राम पर आपतित होती हैं तथा व्यक्ति को ध्वनि साफ सुनाई देती है।
अल्ट्रासाउण्ड के अनुप्रयोग (Applications of Ultrasound)
अल्ट्रासाउण्ड उच्च आवृत्ति की तरंगें हैं। अल्ट्रासाउण्ड अवरोधों की उपस्थिति में भी एक निश्चित पथ पर गमन कर सकती हैं। उद्योगों तथा चिकित्सा के क्षेत्र में पराध्वनियों का विस्तृत रूप से उपयोग किया जाता है।
अल्ट्रासाउण्ड से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं
(i) अल्ट्रासाउण्ड प्रायः उन भागों को साफ करने में उपयोग की जाती हैं जिन तक पहुँचना कठिन होता है; जैसे—सर्पिलाकार नली, विषम आकार के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक अवयव, आदि। जिन वस्तुओं को साफ करना होता है, उन्हें साफ करने वाले मार्जन विलयन में रखते हैं और इस विलयन में अल्ट्रासाउण्ड तरंगें भेजी जाती हैं। उच्च आवृत्ति के कारण, धूल, चिकनाई तथा गंदगी के कण अलग होकर नीचे गिर जाते हैं। इस प्रकार वस्तु पूर्णतया साफ हो जाती है।
(ii) अल्ट्रासाउण्ड संसूचक एक ऐसा यन्त्र है, जो अल्ट्रासाउण्ड तरंगों का उपयोग करके मानव शरीर के आन्तरिक अंगों का प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए काम में लाया जाता है। इस संसूचक से रोगी के अंगों; जैसे यकृत, पित्ताशय, गर्भाशय, गुर्दे, आदि का प्रतिबिम्ब प्राप्त किया जा सकता हैं। यह संसूचक को शरीर की असमान्यताएँ, जैसे पित्ताशय तथा गुर्दे में पथरी तथा विभिन्न अंगों में अर्बुद ( ट्यूमर) का पता लगाने में सहायता करता है। इस तकनीक में अल्ट्रासाउण्ड तरंगें शरीर के ऊतकों में गमन करती हैं तथा उस स्थान से परावर्तित हो जाती हैं जहाँ ऊतक के घनत्व में परिवर्तन होता है।
इसके पश्चात् इन तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित किया जाता है, जिससे कि उस अंग का प्रतिबिम्ब बना लिया जाए। इन प्रतिबिम्बों को मॉनीटर पर प्रदर्शित किया जाता है या फिल्म पर मुद्रित कर लिया जाता है। इस तकनीक को अल्ट्रासोनोग्राफी (ultrasonography) कहते हैं।
अल्ट्रासोनोग्राफी का उपयोग गर्भ काल में भ्रूण की जाँच, इसके जन्मजात दोषों तथा इसकी वृद्धि की अनियमितताओं का पता लगाने में किया जाता है।
(iii) अल्ट्रासाउण्ड का उपयोग गुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए भी किया जा सकता है। ये कण बाद में मूत्र के साथ बाहर निकल जाते हैं। अल्ट्रासाउण्ड तरंगों को हृदय के विभिन्न भागों से परावर्तित करा कर हृदय का प्रतिबिम्ब बनाया जाता हैं। इस तकनीक को इकोकार्डियोग्राफी (echocardiography) कहा जाता है।
(iv) इसका उपयोग समुद्र की गहराई, झील, आदि ज्ञात करने में किया जाता है।
(v) इसका उपयोग पनडुब्बी तथा हिमखण्डों आदि का पता लगाने में किया जाता है।
सोनार (SONAR)
सोनार (SONAR) शब्द Sound Navigation And Ranging से बना है। सोनार एक ऐसी युक्ति है, जिसमें जल में स्थित पिण्डों की दूरी, जल के अन्दर मछलियों के समुदाय, शत्रुओं की पनडुब्बी आदि का पता लगाने में पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किया जाता हैं। इसमें अपश्रव्य द्वारा पानी के अन्दर वस्तुओं की दूरी, दिशा तथा चाल को ज्ञात किया जाता है। सोनार में एक प्रेषित्र तथा एक संसूचक होता है और इसे किसी नाव या जहाज में लगाया जाता है। पराश्रव्य तरंगों का सोनार में उपयोग किया जाता है, क्योंकि
(i) इन तरंगों की आवृत्तियाँ अधिक तथा तरंगदैर्ध्य बहुत कम होती है। इसी कारण इनका उपयोग समुद्र की गहराई ज्ञात करने तथा जल के अन्दर स्थित चट्टानों, घाटियों, पनडुब्बियों, हिम शैल (प्लावी बर्फ), डूबे हुए जहाज आदि की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
(ii) इन तरंगों की तुलना जहाज के इंजन के शोर या जहाज पर अन्य शोर से नहीं की जा सकती है, क्योंकि मनुष्यों द्वारा इन तरंगों को सुना नहीं जा सकता हैं।
चमगादड़ द्वारा पराध्वनियों का उपयोग (Use of Ultrasonic Waves by Bats)
चमगादड़ गहन अंधकार में अपने भोजन को खोजने के लिए उड़ते समय पराध्वनि तरंगें उत्सर्जित करता है तथा परावर्तन के पश्चात् इनका संसूचन करता है। चमगादड़ द्वारा उत्पन्न उच्च तारत्व के पराध्वनि स्पन्द, अवरोधों या कीटों से परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों तक पहुँचते हैं। इन परावर्तित पुनः स्पन्दों की प्रकृति से चमगादड़ को पता चलता है, कि अवरोध या कीट कहाँ पर है और यह किस प्रकार का है। पॉरपॉइज मछलियाँ भी अंधेरे में संचालन व भोजन की खोज में पराध्वनि का उपयोग करती हैं।
तरंगों का अध्यारोपण (Superposition of Waves)
जब किसी माध्यम में एक बिन्दु पर बहुत सी तरंगें आपस में मिलती हैं, तो वह तंरगों का अध्यारोपण कहलाता है। तरंगों के अध्यारोपण के फलस्वरूप एक नये प्रकार का भौतिक प्रभाव प्रदर्शित होता है।
तरंगों के अध्यारोपण का सिद्धान्त (Principle of Superposition of Waves)
इस सिद्धान्त के अनुसार, जब दो या दो से अधिक तरंगें माध्यम में एक-साथ संचरित होती हैं तो माध्यम के किसी बिन्दु पर कण का परिणामी विस्थापन अलग-अलग तरंगों के कारण उत्पन्न विस्थापनों के सदिश योग के बराबर होता है, इसे अध्यारोपण का सिद्धान्त कहते हैं ।
इस सिद्धान्त का परिणाम तीन घटनाओं अप्रगामी तरंगों, विस्पन्द तथा व्यतिकरण पर आधारित है।
अप्रगामी तरंगें (Standing Waves or Stationary Waves)
जब दो समान आयाम तथा समान आवृत्ति की प्रगामी तरंगें किसी बद्ध माध्यम (bounded medium) में एक ही परन्तु विपरीत दिशाओं में गति करती हैं, तो उनके अध्यारोपण से माध्यम में एक नई प्रकार की तरंग प्राप्त होती है, जो माध्यम में स्थिर प्रतीत होती है। यह तरंग अप्रगामी तरंग कहलाती है। चाल से अप्रगामी तरंग के संचरण पर माध्यम के कुछ बिन्दु हमेशा स्थिर अवस्था में रहते हैं तथा इन बिन्दुओं पर कण का परिणामी आयाम शून्य होता है, इन्हें निस्पन्द (nodes) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जहाँ माध्यम के कुछ अन्य बिन्दुओं पर विस्थापन का परिणामी आयाम अधिकतम होता है, तब इन बिन्दुओं को प्रस्पन्द (antinodes) कहते हैं।
अप्रगामी तरंगों की विशेषताएँ (Characteristics of Standing Waves)
(i) किन्हीं दो क्रमागत निस्पन्दों अथवा प्रस्पन्दों के बीच की दूरी λ / 2 होती है। एक निस्पन्द तथा उसके पास वाले प्रस्पन्द के बीच की दूरी सदैव λ / 4 होती है।
(ii) अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंगों में निस्पन्दों पर दाब एवं घनत्व परिवर्तन अन्य बिन्दुओं की अपेक्षा अधिकतम होता है, जबकि प्रस्पन्दों पर दाब घनत्व में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
(iii) निस्पन्दों को छोड़कर माध्यम के सभी कण कम्पन करते हैं, परन्तु कणों का कम्पन-आयाम भिन्न-भिन्न होता है। प्रस्पन्दों पर कम्पन-आयाम अधिकतम तथा निस्पन्दों पर शून्य होता है।
(iv) दो क्रमागत निस्पन्दों के बीच के सभी कण एक ही कला में कम्पन करते हैं अर्थात् सभी कण साथ-साथ अपनी अपनी अधिकतम विस्थापन की स्थिति में पहुँचते हैं तथा साथ-साथ ही अपनी साम्यावस्था (equilibrium position) से गुजरते हैं।
(v) किसी भी निस्पन्द के दोनों ओर के कण सदैव विपरीत कला (phase) में कम्पन करते हैं।
(vi) निस्पन्द माध्यम को खण्डों (segment) में बाँटते हैं। इन खण्डों को लूप अथवा अधर खण्ड कहते हैं। एक लूप अथवा दो क्रमागत निस्पन्दों के बीच सभी बिन्दु समान कला में कम्पन करते हैं अर्थात् ये सभी कण एकसाथ ही अपनी-अधिकतम विस्थापनों की स्थितियों पर पहुँचते हैं।
(vii) अप्रगामी तरंगों में, यदि अवयव तरंगों के आयाम बराबर नहीं है, तब निस्पन्दो के परिणामी आयाम, कम (परन्तु शून्य नहीं) होंगे। इसलिए कुछ ऊर्जा निस्पन्दों की सभी जगहों से गुजरेगी तथा आंशिक रूप से खड़ी हो जायेगी।
डोरी में अनुप्रस्थ अप्रगामी तरंगें (Transverse Standing Waves in a String)
जब किसी तनी हुई डोरी को उसकी लम्बाई के लम्बवत् बीच में से थोड़ा-सा खींचकर छोड़ दिया जाता है, तब डोरी एक खण्ड में कम्पन करने लगती है। डोरी के स्थिर सिरों पर निस्पन्द (IN) तथा बीच में प्रस्पन्द (A) बनता है, इस दशा में डोरी से उत्पन्न स्वरक को मूल-स्वरक (fundamental modes of vibration) कहते हैं। यदि मूल-स्वरक की इस स्थिति में तरंगदैर्ध्य ^ हो तथा डोरी की लम्बाई L हो, तो
L = λ1 / 2 अथवा λ1 = 2L
ऑर्गन पाइप में अप्रगामी तरंगें (Standing Waves in Organ Pipe)
ऑर्गन पाइप एकसमान व्यास की लकड़ी अथवा धातु की बनी एक लम्बी नली होती है। जिसमें गैस अथवा वायु की उपस्थिति में ध्वनि उत्पन्न की जाती है। इसकी दीवारें पूर्णतः दृढ़ तथा इसका व्यास लम्बाई की अपेक्षा बहुत छोटा होता है।
ऑर्गन पाइप दो प्रकार के होते हैं
(i) बन्द ऑर्गन पाइप (Closed Organ Pipe) वे बेलनाकार पाइप जो एक सिरे पर बन्द तथा दूसरे सिरे पर खुले होते हैं, बन्द ऑर्गन पाइप कहलाते हैं।
(ii) खुला ऑर्गन पाइप (Open Organ Pipe) वे बेलनाकार पाइप जो दोनों सिरों पर खुले होते हैं, खुले ऑर्गन पाइप कहलाते हैं।
बन्द ऑर्गन पाइप में वायु-स्तम्भ वायु- स्तम्भ के कम्पन्न (Vibrations of Air Column in Closed Organ Pipes)
बन्द ऑर्गन पाइप एक सिरे से बन्द तथा दूसरे सिरे से खुले होते हैं। जब बन्द पाइप के खुले सिरे पर धीरे से फूँक मारते हैं, तो पाइप के अन्दर वायु में अनुदैर्ध्य तरंग खुले सिरे से बन्द सिरे की ओर चलती हैं तथा बन्द सिरे से परावर्तित होती हैं। अतः वायु-स्तम्भ में विपरीत दिशाओं में दो अनुदैर्ध्य तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो अध्यारोपित होती हैं तथा अप्रगामी तरंगें उत्पन्न करती हैं। अतः पाइप के खुले सिरे पर सदैव अधिकतम आयाम का प्रस्पन्द तथा बन्द सिरे पर सदैव न्यूनतम आयाम का निस्पन्द बनता है।
कम्पनों के मूल स्तम्भ नीचे दर्शाये गये हैं, जहाँ बन्द सिरे पर निस्पन्द तथा खुले सिरे पर प्रस्पन्द होता है। यदि, L लम्बाई के बन्द ऑर्गन पाइप के खुले सिरे पर क्रमागत बढ़ते दाब से फूँक मारें तब पाइप में केवल विषम संनादी उत्पन्न होते हैं ।
खुले ऑर्गन पाइप में वायु-स्तम्भ के कम्पन (Vibrations of Air Column in Open Organ Pipe)
खुले ऑर्गन पाइप में बेलनाकार पाइप के दोनों सिरे खुले होते हैं। दोनों सिरों पर खुले पाइप के एक सिरे पर जब हम धीरे से फूँक मारते हैं तो वायु-स्तम्भ में अनुदैर्ध्य तरंगें, सम्पीडन तथा विरलन के रूप में इस सिरे से पाइप के दूसरे सिरे की ओर चलती हैं। दूसरा सिरा खुला होने के कारण एक मुक्त परिसीमा की भाँति व्यवहार करके इस तरंग को परावर्तित कर पहले सिरे की ओर भेज देता है।
पहला सिरा भी खुला होने के कारण एक मुक्त परिसीमा की भाँति व्यवहार करके इसे परावर्तित कर पुनः दूसरे सिरे की ओर भेज देता है। इस प्रकार वायु स्तम्भ में दो समरूप अनुदैर्ध्य तरंगें विपरीत दिशाओं में चलने लगती हैं, जिनके अध्यारोपण से वायु-स्तम्भ में अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं, क्योंकि पाइप दोनों सिरों पर खुला है। अतः दोनों सिरों पर सदैव प्रस्पन्द बनते हैं।
यदि L लम्बाई के खुले ऑर्गन पाइप के खुले सिरे पर क्रमागत बढ़ते क्रम में फूँक मारें तब पाइप में सम एवं विषम दोनों प्रकार के संनादी उत्पन्न होते हैं ।
संगीतिक अथवा सुस्वर ध्वनि तथा शोर (Musical Sound and Noise)
जो ध्वनि हमारे कानों को सुखद अथवा प्रिय प्रतीत होती है, संगीतिक ध्वनि कहलाती है। इस प्रकार की ध्वनि किसी वस्तु की निश्चित आवृत्ति के नियमित कम्पन्नों द्वारा उत्पन्न होती है। उदाहरण स्वरित्र द्विभुज, वायलिन, तबला, हारमोनियम, बाँसुरी से उत्पन्न ध्वनियाँ आदि ।
जो ध्वनियाँ हमारे कानों को अप्रिय एवं कर्कश प्रतीत होती हैं, शोर कहलाती हैं। वे सभी ध्वनियाँ जो संगीतिक ध्वनियाँ नहीं हैं, शोर की श्रेणी में आती हैं। इस प्रकार की ध्वनियाँ वस्तुओं के अनियमित कम्पन द्वारा उत्पन्न होती हैं तथा इनकी कोई निश्चित आवृत्ति नहीं होती है। उदाहरण हथौड़े से पीटने की आवाज, टिन के डिब्बे को डण्डे से मारने पर उत्पन्न ध्वनि, आदि।
संगीतिक स्केल (Musical Scale)
जब कई स्वर किसी विशेष क्रम में इस प्रकार लिए जाते हैं कि उनका संयुक्त प्रभाव कानों को मधुर लगे तो स्वरों के इस मेल को संगीत कहते हैं। संगीत में सरसता तथा लय (melody and rythm) लाने के लिए कुछ स्वरों को क्रमागत बढ़ती हुई आवृत्ति के अनुरूप एक श्रेणी में रख देते हैं एवं इनके मध्य एक नियत अन्तराल होता हैं। स्वरों की यह श्रेणी संगीतिक स्केल कहलाती है। संगीतिक स्केल में न्यूनतम आवृत्ति के स्वर को आरम्भ स्वर (key tone) कहते हैं।
संगीतिक स्केल कई प्रकार के होते हैं
(i) विटोनी स्केल (Diatomic Scale) द्विटोनी स्केल को भारतीय पद्धति में ‘सरगम’ कहते हैं। इस पैमाने में 8 स्वर होते हैं। सरगम को न्यूनतम आवृत्ति के स्वर अर्थात् पहले स्वर को मूल स्वर अथवा आरम्भक स्वर (key note) तथा उच्चतम आवृत्ति के स्वर अर्थात् अन्तिम स्वर को अष्टक (octave) कहते हैं। अष्टक की आवृत्ति मूल स्वरक की दोगुनी होती है। सात प्राकृतिक स्वरों का कोई भी क्रम द्विटोनी स्केल में बदल जाता हैं, तब द्विटोनी मूल रूप से डाइटोमिक जिनियस में बदल जाती है। संगीत सिद्धान्त में आधुनिक दीर्घ तथा लघु स्केल द्विटोनी होते हैं। हारमोनियम तथा पियानों इस स्केल पर आधारित हैं।
(ii) संस्कारित स्केल (Tempered Scale) द्विटोनी स्केल के दोष को दूर करने के लिए, द्विटोनी स्केल के स्वरान्तरालों में कुछ अन्तर इस प्रकार कर देते हैं कि किसी भी स्वर को प्रारम्भिक स्वर मानने पर, नई आवृत्तियाँ लगभग द्विटोनी स्केल की आवृत्तियों के बराबर रहें। इस विधि को संस्कार कहते हैं तथा प्राप्त नए स्केल को संस्कारित स्केल कहते हैं।
विस्पन्द (Beats)
जब लगभग समान आवृत्ति की दो ध्वनि तरंगें एकसाथ उत्पन्न की जाती हैं तो परिणामी ध्वनि तरंग की तीव्रता समय के साथ बढ़ती तथा घटती है। ध्वनि की तीव्रता में यह परिवर्तन विस्पन्दों की परिघटना कहलाती है। दो क्रमागत विस्पन्दों के बीच समयान्तराल विस्पन्द काल (beat period) कहलाता है। तथा प्रति सेकण्ड विस्पन्दों की संख्या विस्पन्द आवृत्ति (beat frequency) कहलाती है तथा दो ध्वनि स्रोतों की आवृतियों में अन्तर परिणामी विस्पन्द की आवृत्ति के बराबर होता है।
डॉप्लर प्रभाव (Doppler’s Effect)
जब किसी ध्वनि स्रोत तथा श्रोता के बीच आपेक्षित गति होती है तब श्रोता द्वारा सुनी गई ध्वनि की आवृत्ति, स्रोत की आवृत्ति से भिन्न होती है। ध्वनि स्रोत की आवृत्ति में होने वाले इस परिवर्तन की घटना को डॉप्लर प्रभाव कहते हैं तथा श्रोता के द्वारा सुनी गई आवृत्ति को आभासी आवृत्ति ( apparent frequency) कहते हैं। डॉप्लर प्रभाव का मूल कारण ध्वनि स्रोत तथा श्रोता के बीच होने वाली आपेक्षिक गति (relative motion) है। इसमें तीन स्थितियाँ सम्भव हैं
(i) जब स्रोत गतिमान तथा श्रोता स्थिर हो ।
(ii) जब श्रोता गतिमान तथा स्रोत स्थिर हो ।
(iii) जब स्रोत तथा श्रोता दोनों गतिमान हों।
डॉप्लर प्रभाव के उपयोग (Uses of Doppler’s Effect)
(i) इसका उपयोग वायु में उड़ते विमान के वेग का अनुमान लगाने में किया जाता है।
(ii) राडार स्टेशन से वायु में उड़ते विमान की ओर राडार तरंगें भेजी जाती हैं तथा विमान से परावर्तित होकर लौटने वाली तरंगें स्टेशन पर प्राप्त की जाती हैं।
(iii) स्टेशन से विमान की और भेजी गई तथा विमान से स्टेशन पर प्राप्त की गई तरंगों की आवृत्तियों के अन्तर से विमान के वेग की गणना की जा सकती है।
(iv) जल के भीतर चलती पनडुब्बी का वेग ज्ञात किया जा सकता है।
(v) तारों तथा गैलेक्सियों की गति का अनुमान लगाया जाता है।
ध्वनि तरंगों का व्यतिकरण (Interference of Sound Waves)
जब दो समान आवृत्ति व आयाम की दो ध्वनि तरंगें एक साथ किसी माध्यम में एक बिन्दु पर पहुँचती हैं, तो उस बिन्दु पर ध्वनि ऊर्जा का पुनर्वितरण हो जाता है। इसे ध्वनि का व्यतिकरण कहते हैं। जब ध्वनि की तीव्रता अधिकतम होती है तब व्यतिकरण संपोषी (constructive) तथा जब ध्वनि की तीव्रता न्यूनतम होती है, तो यह व्यतिकरण विनाशी (destructive) कहलाता है।
ध्वनि तरंगों का विवर्तन (Diffraction of Sound Waves)
जब ध्वनि के मार्ग में कोई अवरोध आ जाता है, तो ये तरंगें उससे मुडकर हमारे कान तक पहुँचती हैं। इसी को ध्वनि तरंगों का विवर्तन कहते हैं । विवर्तन के लिए जरूरी है, कि अवरोधों का आकार ध्वनि की तरंगदैर्ध्य के तुलनीय ( comparable) होना चाहिए।
विद्युत चुम्बकीय तरंगें (Electromagnetic Waves)
वे तरंगें, जिनके संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है, विद्युत चुम्बकीय या अयांत्रिक तरंगें कहलाती हैं। विद्युत चुम्बकीय तरंगें, AC परिपथ में धारा के लगातार बदलने पर फैलती या उत्सर्जित होती हैं। प्रकाश तरंगें, गामा किरणें, ऊष्मा तरंगें, रेडियो तरंगें आदि विद्युत चुम्बकीय तरंगों के उदाहरण हैं। जब गतिमान इलेक्ट्रान उच्च परमाणु संख्या की धातु लक्ष्य द्वारा अचानक रोका जाता है, तब विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न होती हैं तथा वैद्युत चुम्बकीय तरंगों को X-किरणें भी कहते हैं।
प्रकाश एक विद्युत चुम्बकीय तरंग है तथा निर्वात् या वायु माध्यम में इसका वेग लगभग 3 × 108 मी/से होता है।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के गुण (Characteristics of Electromagnetic Waves)
(i) विद्युत चुम्बकीय तरंगें त्वरित आवेश द्वारा उत्पन्न होती हैं।
(ii) इन तरंगों के प्रसार के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।
(iii) मुक्त स्थान में ये तरंगें प्रकाश की चाल 3×108 मी/से से चलती हैं।
(iv) ये तरंगें वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा परिवर्तित नही होती हैं।
(v) ये तरंगें अन्य तरंगों की भाँति ऊर्जा तथा संवेग से युक्त होती हैं तथा संवेग के साथ विद्युत चुम्बकीय तरंगों पर लगा दाब विकिरण दाब कहलाता है।
विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम (Electromagnetic Spectrum)
तरंगों का आवृत्ति या तरंगदैर्ध्य के क़म में वर्गीकरण, विद्युत चुम्बमकीय स्पेक्ट्रम कहलाता है।
भूकम्प (Earthquake)
भूकम्प, पृथ्वी की सतह के नीचे कम्पन या लोच अथवा किसी स्टेशन पर पटरियों के समायोजन के दोलनों के कारण होता है तथा भंयकर भूकम्प आमतौर पर दोलनों में अचानक रूकावट उत्पन्न होने वाले दोषों के कारण होता है। भूकम्प की तीव्रता के परिमाण को मापने के लिये रिऐक्टर पैमाने का उपयोग किया जाता है, जो भूकम्प द्वारा दी गई ऊर्जा की मात्रा को संकेतिक करता है। इस पैमाने का आविष्कार चार्ल्स एफ. रिऐक्टर ने किया था । भूकम्प तरंगें या सिस्मिक तरंगे मापने के यन्त्र को सिस्मोग्राफ (seismograph) कहते हैं। भूकम्प तरंगों द्वारा किसी क्षेत्र को क्षतिग्रस्त करने से पहले, उस क्षेत्र के वातावरण में रेडॉन गैस की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, जोकि भूकम्प की स्रोत अर्थात् नाभि कहलाती है। भूकम्प तरंगे नाभि की दिशा से चलती हैं, जोकि पृथ्वी की सतह के नीचे स्थित होती है तथा पृथ्वी सतह का वह क्षेत्र, जो केन्द्र के ऊपर स्थित है, भूकम्प का उपकेन्द्र कहलाता है।
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