जनसंख्या में बहुमुखी वृद्धि एवं अ-योजना के फलस्वरूप असंगत कचरा उत्पन्न हुआ है। विभिन्न प्रकार के कचरे की विवेचना कीजिए। इस समस्या को देश किस प्रकार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सहायता से दूर कर सकता है ? विस्तार से इसका वर्णन कीजिए।

जनसंख्या में बहुमुखी वृद्धि एवं अ-योजना के फलस्वरूप असंगत कचरा उत्पन्न हुआ है। विभिन्न प्रकार के कचरे की विवेचना कीजिए। इस समस्या को देश किस प्रकार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सहायता से दूर कर सकता है ? विस्तार से इसका वर्णन कीजिए।

अथवा
भारत में जनसंख्या वृद्धि की स्थिति को स्पष्ट करें
अथवा
अ – योजना के कारण कचरे की समस्या पर प्रकाश डालें
अथवा
कचरे के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करें
अथवा
कचरा प्रबंधन हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग पर चर्चा करें।
उत्तर- जनसंख्या में बहुमुखी वृद्धि का अर्थ जनसंख्या में चर घातांक की वृद्धि से है। 10000 वर्ष पूर्व कृषि की खोज से पहले पृथ्वी पर लगभग 5 मिलियन लोग रहते थे, जो सभी शिकारी – संग्रहकर्ता थे । कृषि और मानव बस्तियों के आगमन के साथ ही जनसंख्या वृद्धिदर आरम्भ गई। 14वीं शताब्दी तक जनसंख्या बढ़कर 500 मिलियन हो गई । वैज्ञानिक और औद्योगिक क्रांति आने तक यह स्थिर रही। 1850 के आस-पास चर घातांक की जनसंख्या वृद्धि आरम्भ हुई।
अब हम प्रत्येक 12-13 वर्षों में जनसंख्या में 1 विलियन लोग जोड़ रहे हैं, किन्तु आगामी दशकों में वृद्धि दर के गिरने की सम्भावना है। किन्तु शून्य वृद्धि दर सम्भवतः शताब्दी के अन्त तक प्राप्त की जा सकेगी। 2050 तक पृथ्वी पर लगभग 9.7 विलियन लोग होंगे। इतनी जनसंख्या स्वंय पृथ्वी की क्षमता से बहुत होगी।
इस प्रकार वृद्धि ने असंगत कचरा को तीव्र गति से बढ़ाया है। एक अनुमान के अनुसार भारत के 7935 शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 37 करोड़ 70 लाख लोगों के कारण प्रतिदिन 1 लाख 70000 टन ठोस कचरा पैदा होता है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक जब शहरों में 59 करोड़ नागरिक हो जाएंगे और आबादी बढ़ने से शहरों की सीमाएं समाप्त हो जाएंगी तो शहरी अपशिष्ट का प्रबन्धन करना मुश्किल हो जाएगा।
• सरकार की पहल
भारतीय नीति आयोग ने स्मार्ट सिटी एवं स्वच्छ भारत परियोजना के अन्तर्गत हाल ही में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट की विशाल समस्या से निपटने के लिए एक त्रिवर्षीय एजेण्डा तैयार किया है। जिसमें 7 वर्ष की रणनीति एवं 15 वर्ष की दूरदर्शिता अवधि तय की गई है। इसके लिए महानगरों में कचरे से ऊर्जा तैयार करने और उपनगरों एवं अर्द्धशहरी इलाकों में अपशिष्ट से खाद निर्माण को प्रस्तावित किया गया है। नीति आयोग द्वारा वेस्ट टू एनर्जी कार्पोरेशन स्थापित करने का सुझाव प्रदान किया है। यह निगम 2019 तक 100 स्मार्ट शहरों में अपशिष्ट से ऊर्जा निर्माण के संयन्त्रों को स्थापित करेगा।
• जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न विभिन्न प्रकार के कचरे
जनसंख्या से बहुमुखी वृद्धि ने इतना असंगत कचरे को जन्म दिया है, जिससे इस सौर मण्डल में कुछ भी अछूता नहीं रह पाया है। चाहे वह आकाश हो या महासागर अथवा पर्वत श्रृंखला सभी स्थानों पर जनसंख्या वृद्धि ने कचरा को पैदा किया है। जिससे अनेक समस्याओं का आगमन हुआ है। कचरे को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है
1. घरेलू कचरा : मल-जल, डिटर्जेंट, गंदगी, ग्रीन संदूषित जल, घरेलू कचरा और पैकेजिंग सामग्री, फर्नीचर, कार्यालयी उपकरणों आदि से उत्पन्न कचरा घरेलू कचरे की श्रेणी में आता है।
2. औद्योगिक कचरा : सभी प्रकार की फैक्ट्रीयों से ठोस और बहिस्त्राव के रूप में औद्योगिक कचरा उत्पन्न होता है। वधशाला, शराब बनाने की फैक्ट्री, चर्म उद्योग, वस्त्र उद्योग, पेपर और इस्पात मिल और अधिकांश रसायनिक उद्योग, निर्माण उद्योग, आदि से उत्पन्न होता है।
3. प्लास्टिक कचरा : प्लास्टिक से बनी विभिन्न वस्तुएं (बोतल, पॉलीथीन, प्लेट – ग्लास आदि) इस्तेमाल के बाद फेक दी जाती है और ये भूमि और समुद्र हर स्थान पर मौजूद होती हैं।
4. कृषि कचरा : फसलों और जानवरों से उत्पन्न जैविक कचरा, फसल अवशेष, उर्वरकों और कीटनाशकों वाले खेतों से सिंचाई जल आदि से कृषि कचरा उत्पन्न होता है।
5. खाद्य प्रसंस्करण और पके भोजन से कचरा : इस श्रेणी में होटलों और रेस्त्राओं से बचा भोजन, जैविक ठोस और तरल कचरा जो खाद्य प्रसंस्करण ईकाईयों से उत्पन्न होता है, शामिल हैं।
6. वायोमेडिकल कचरा : अस्पतालों और निदान शालाओं से उत्पन्न रक्त, रोगयुक्त अंग, जहरीली दवाई आदि बायोमेडिकल कचरे के अन्तर्गत आता है।
7. ई-कचरा : खराब पड़े विद्युतीय व इलेक्ट्रानिक उपकरण से जनित एक नये प्रकार का कचरा, ई-कचरा कहलाता है।
8. रेडियोधर्मी कचरा : परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और परमाणु हथियारों के निर्माण से उत्पन्न रेडियोधर्मी कचरा जो हजारों वर्षों तक सक्रिय रहता है। यह काफी खतरनाक होता है।
•  विज्ञान एवं प्रौद्योगिक से कचरा का प्रबन्धन
वैज्ञानिक विधियों से प्लास्टिक और पॉलीथीन के कचरे से पेट्रोल, डीजल और खाना पकाने वाली एल. पी. जी. गैस प्राप्त की जा सकती है। यह कचरा प्रबन्धन में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा।
कचरा प्लास्टिक से स्मार्ट टॉयलेट, निर्माण की तकनीकी: सी. एस. आई. आर. की राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला ने प्लास्टिक के कचरें से सस्ती और टिकाऊ टाइलों के निर्माण की प्रौद्योगिकी विकसित की हैं। यह कचरा प्रबन्धन में बहुत उपयोगी है।
प्लास्टिक के कचरे से सड़क निर्माण: आज देश के सभी राज्यों में प्लास्टिक के कचरे से सड़क निर्माण का कार्य किया जा रहा है। उदाहरण स्वरूप केरल में कोझीकोड स्थित नेशनल ट्रांसपोर्टेशन प्लानिंग एण्ड रिसर्च सेण्टर ने प्रायोगिक तौर पर वतकारा कस्बे में प्लास्टिक के कचरे से 400 मीटर सड़क तैयार की है।
•  स्लों सैंड फिल्टर तकनीक से सीवेज ट्रीटमेण्ट
इस तकनीक के अन्तर्गत गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय एवं IIT रूड़की के संयुक्त प्रयासों द्वारा किये जा रहे शोध में वैज्ञानिकों ने स्लो सैंड फिल्टर नामक सस्ती, टिकाऊ एवं अधिक कारगर तकनीक विकसित की है जो सीवेज ट्रीटमेण्ट एवं जल में घुले कचरे को साफ करेगी ।
अतः निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि आज भारतीय वैज्ञानिक, अभियन्ता और शोधकर्ता मानवजनित कचरा के प्रबन्धन की दिशा में नई तकनीकों का विकास और संचालन कर रहे हैं, जो असंगत कचरे के प्रबन्धन में मील का पत्थर साबित होगा।
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