ग्लोबल वॉर्मिंग क्या है? ग्लोबल वॉर्मिंग से होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में भारत का क्या योगदान है? “निकट भविष्य में पूरा विश्व, इस ग्रह के मानव के द्वारा की जाने वाली गलतियों के कारण, पानी में डूब जायेगा । ” उक्त कथन पर अपने विचार स्पष्ट करें।
ग्लोबल वॉर्मिंग क्या है? ग्लोबल वॉर्मिंग से होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में भारत का क्या योगदान है? “निकट भविष्य में पूरा विश्व, इस ग्रह के मानव के द्वारा की जाने वाली गलतियों के कारण, पानी में डूब जायेगा । ” उक्त कथन पर अपने विचार स्पष्ट करें।
अथवा
ग्लोबल वॉर्मिंग की घटना को स्पष्ट करते हुए इसके प्रभावों कम करने के लिए भारतीय योगदान का उल्लेख करें। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण सागरों एवं महासागरों के बढ़ते स्तर से उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर- पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। तापमान में होने वाली यह वृद्धि प्राकृतिक एवं मानव जनित दोनों रूपों में है। तापमान में प्राकृतिक वृद्धि एक स्वभाविक वृद्धि है जो विभिन्न भौगोलिक प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप होती है। वहीं तापमान में मानव जनित कारकों से होने वाली वृद्धि सम्पूर्ण पृथ्वी के जीवों के लिए हानिकारक है।
मानव जनित कारकों के कारण अनेक ग्रीन हाउस गैसें जैसे CO,, मेथेन, SF6, CFC, HFC, नाइट्रोजन के ऑक्साइड आदि पृथ्वी के वायुमंडल में एकत्रित होकर एक परत का निर्माण कर लेते हैं तथा पृथ्वी की उष्मा को वायुमंडल से बाहर जाने से रोक देती है जिस कारण पृथ्वी पर ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और तापमान में वृद्धि होने लगती है ।
ग्लोबल वार्मिंग के अनेक कारण हैं- यातायात के साधनों, बिजली संयंत्रों तथा औद्योगिक कारखानों से भारी मात्रा में CO, और अन्य घातक गैसे उत्सर्जित होती है जो ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि करती है। वन कार्बन सिंक (Sink) के रूप में कार्य करते हैं। लेकिन मनुष्य खेती के लिए तथा शहरी और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए दुनिया भर में वनस्पति के विशाल क्षेत्रों को साफ करते हैं तो पेड़ पौधों की कमी के कारण कार्बन वायुमंडल में वापस CO, के रूप में उत्सर्जन हो जाता है, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है। रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, का कृषि में उपयोग तथा रेफ्रीजरेटर, AC, कुलिंग मशीनों का उपयोग आदि के कारण नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा क्लोरो-फ्लोरो आदि ग्रीन हाउस गैसें तापमान में वृद्धि कर रही है।
• ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव
> दुनिया भर में समुद्र के स्तर में वृद्धिः वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में दो बड़े पैमाने पर बर्फ शीटों की पिघलने के कारण दुनिया भर के समुद्री स्तरों में वृद्धि की भविष्यवाणी की है, खासकर अमेरिका के पूर्वी तट पर हालांकि, दुनिया भर के कई देशों में समुद्र के बढ़ते स्तरों के प्रभाव का अनुभव होगा, जो लाखों लोगों को विस्थापित कर सकता है।
> तेज तूफानों की आवृत्ति में वृद्धिः तूफान और चक्रवात जैसे तूफानों की गंभीरता बढ़ रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग दुनिया भर के सबसे चरम तूफानों की तीव्रता में काफी वृद्धि करेगी।
> प्रजातियों का विलुप्त होना: एक प्रकाशित शोध के अनुसार, 2050 तक, बढ़ते तापमान से दस लाख से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती है। फिर क्योंकि हम पृथ्वी पर प्रजातियों की विविध आबादी के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकते हैं, इसलिए यह मनुष्यों के लिए डरावनी खबर है ।
> मूंगा चट्टानों का गायब होना: WWF के कोरल रीफ्स पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान वृद्धि और महासागर अम्लीकरण और इसके प्रभावों के कारण कोरल आबादी 2100 तक कम हो जाएगी। समुद्र के तापमान में छोटे लेकिन लंबे समय तक उगने वाले कोरल का “ब्लीचिंग” महासागर पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है।
> दुनिया भर में बर्फ पिघल रही है। विशेष रूप से आर्कटिक सागर की बर्फ पिघल रही है और यह बर्फ चादर की तरह पश्चिम अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड को ढक रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसकी वजह से अंटार्कटिका की पेंगुइन की संख्या में काफी कमी आई है।
> यदि सदी के अंत तक या इससे आगे ग्लोबल वार्मिंग जारी रहती है, तो उम्मीद की जाती है कि समुद्र का जलस्तर 7 से 23 इंच (18 से 59 सेंटीमीटर) तक बढ़ जाएगा। इसके अलावा यदि ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ का पिघलना जारी रहता है, तो इससे भी समुद्र का जलस्तर 4 से 8 इंच ( 10 से 20 सेंटीमीटर) तक और बढ़ जाएगा। इससे बाढ़ और सूखे जैसी घटनाओं में भी इजाफा हो सकता है और हरिकेन जैसे अन्य तूफान और अधिक जोरदार और प्रभावशाली हो जाएंगे। इससे मच्छरों द्वारा फैलने वाली मलेरिया जैसी व्यापक बीमारियों में वृद्धि हो सकती है और ताजे पानी की उपलब्धता में काफी कमी आएगी।
> इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार भारत समेत दुनियाभर में भविष्य में गरीबी, खाद्यान्न की कीमत में वृद्धि होगी, साथ ही मलेरिया और डायरिया की बीमारी का प्रकोप बढ़ेगा।
> जलवायु परिवर्तन अनुमानों के अनुसार, भारत के कोलकाता और पाकिस्तान के कराची को हीटवेव से सबसे ज्यादा खतरा है।
> रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक तापमान के कारण भोजन, जल जनित और मच्छरों से होने वाली बीमारियों का प्रकोप बढ़ेगा। गरीब इलाकों में कम उत्पादक क्षेत्र खतरे में और इजाफा करेंगे।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करने हेतु भारत का योगदान
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय मिशन- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) को औपचारिक रूप से 30 जून 2008 को लागू किया गया। इस कार्य योजना में आठ मिशन निर्धारित किए गए है- राष्ट्रीय सौर मिशन, विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन, सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन, सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन, हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन, सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन।
भारत का अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित योगदान ( INDC) – भारत ने दिसम्बर में पेरिस में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए 2030 तक अपने कार्बन गैसों उत्सर्जन को 2005 के स्तर से 33-35 प्रतिशत तक घटाने की महत्वाकांक्षी प्रतिवद्धता की घोषणा कर दी ।
भारत की योजना के संबंध में आईएनडीसी दस्तावेज में कहा गया कि अब तक अपनाए गए रास्ते के उलट आर्थिक विकास के स्तर के अनुरूप जलवायु अनुकूल और स्वच्छ मार्ग के अनुसरण, 2030 तक 2005 के स्तर के मुकाबले उत्सर्जन गहनता को सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले 33-35 प्रतिशत करने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की मदद से 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा संसाधनों पर आधारित संयंत्रों से करीब 40 प्रतिशत बिजली उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने और हरित जलवायु कोष (जीसीएफ) समेत कम लागत वाले अंतर्राष्ट्रीय वित्त के प्रावधान हैं।
भारत सरकार ने 2030 तक 375 गेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यदि यह लक्ष्य प्राप्त हो जाता है तो संभव है कि भारत का कार्बन उत्सर्जन कम हो जाए। इसके अलावा अक्षय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाया जाएगा। 2030 तक 2.5 से तीन अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की क्षमता विकसित की जाएगी।
” निकट भविष्य में पूरा विश्व, इस ग्रह के मानव के द्वारा की जाने वाली गलतियों के कारण, पानी में डूब जाएगा।” हिमनदों एवं ध्रुवीय बर्फीली चोटियों के पिघलने से समुद्र में जल की मात्रा बढ़ेगी। इसके अलावा तापमान बढ़ने से भी समुद्री जल में फैलाव होगा जिससे समुद्री जलस्तर में वृद्धि होगी। इन सबके परिणामस्वरूप छोटे द्वीप एवं समुद्रतटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएंगे। विश्व के अनेक देश ऐसे हैं जिनके तट सागरों या महासागरों से मिलते हैं। समुद्री जल स्तर के बढ़ने के कारण इनके तटीय क्षेत्र जलमग्न हो सकते हैं। ऐसे देशों में भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, चीन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी आदि हैं।
मालदीव एवं तुवालु ऐसे दो द्वीप राष्ट्र हैं, जो कि समुद्री जलस्तर के बढ़ने से प्रभावित होंगे। मालद्वीव, मौरीशस, लक्षद्वीप का बड़ा भूभाग पानी में डूब चुका है। हवाई और आस्ट्रेलिया के करीब प्रशांत महासागर में बसे पौलनेशियन द्वीपदेश टूवालू पर उस के डूबने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि, अकेले टूवालू ही नहीं, दुनिया के बहुत सारे द्वीप देश और द्वीपों के डूबने या मटियामेट हो जाने का खतरा दिनोंदिन गहराता जा रहा है। फिलहाल 40 देशों में समुद्र का जलस्तर बढ़ने से हजारों की संख्या में लोग बेघर हो चुके हैं। बंगाल की खाड़ी में स्थित न्यूमूर भी पूरी तरह जलमग्न हो चुका है। इस के अलावा भारत का पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश डेल्टाई क्षेत्र हैं जो समुद्र की सतह से बहुत कम ऊंचाई पर बसे हुए हैं।
प्रशांत महासागर के माइक्रोनेशिया, मेलानेशिया के द्वीप सब से अधिक खतरे में हैं। अकेले माइक्रोनेशिया में किरीबाती, मार्शल द्वीपसमूह और नौरू संप्रभु देश हैं। दुनिया के सब से छोटे द्वीपदेश में नौरू भी एक ऐसा ही द्वीपदेश है जो टूवालू से भी छोटा द्वीपदेश है। ऐसा ही एक द्वीप समूह है कार्टरिट, जो दक्षिण-पश्चिम प्रशांत महासागर में बसा है। है
इसी तरह प्रशांत महासागर में स्थित किरीबाती गणराज्य पर जलस्तर का खतरा मंडरा रहा है। इसी तरह कोरल सागर, अराफुरा सागर और कारपेनटारिया खाड़ी में टौरेस स्ट्रेट के 274 द्वीपों में से बहुत सारे पहले ही डूब चुके हैं। जो बचे हैं उन में बसे घरों में ज्वार के समय समुद्र का पानी घुस जाता है। खारे पानी से खेती तबाह हो चुकी है। यहां की विस्थापित आबादी तरावा के द्वीप में पनाह ले रही है लेकिन यह कोई स्थायी इंतजाम नहीं है। प्रशांत महासागर का सोलोमन द्वीप समूह भी सुरक्षित नहीं है। वर्ष 1900 से ले कर अब तक दुनिया में समुद्र जलस्तर औसतन 19 सैंटीमीटर बढ़ा है। अनुमान है कि इस शताब्दी के अंत तक यह जलस्तर 26 सैंटीमीटर से ले कर 83 सैंटीमीटर के बीच बढ़ने वाला है। 2050 तक और 2 करोड़ लोग विस्थापित होंगे।
> ग्लोबल वार्मिंग घटना का स्पष्टीकरण
> ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के भारतीय उपाय
> ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव
> दिए गए कथन का स्पष्टीकरण
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