बंगाल विभाजन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को किस प्रकार प्रभावित कियाविवेचना करें।

बंगाल विभाजन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को किस प्रकार प्रभावित कियाविवेचना करें।

(40वीं BPSC/1995)
अथवा
बंगाल विभाजन के फलस्वरूप आंदोलन में गरम दल का प्रभाव बढ़ा और अंग्रेजों की सुनियोजित ‘बांटो एवं राज करो’ की नीति के कारण साम्प्रदायिकता की भावना उभरी..की चर्चा करते हुए लिखें।
> 16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा कर्जन के द्वारा ।
> एक भाग- पूर्वी बंगाल एवं असम, चटगांव, ढाका, राजशाही के मुस्लिम बहुल क्षेत्र ।
> राजधानी ढाका (प्रस्तावित)
> दूसरा भाग पं. बंगाल, बिहार, उड़ीसा के हिन्दू बहुल क्षेत्र ।
> बंग-भंग की तीव्र प्रतिक्रिया हुई एवं भारतीय राजनीति में क्रांतिकारी विचारों का प्रभाव बढ़ा।
उत्तर- कर्जन की साम्राज्यवादी तथा ‘बांटो एवं राज करो’ की नीति का सबसे बुरा परिणाम ‘बंगाल विभाजन’ के रूप में सामने आया। उस समय बंगाल प्रांत में बंगाल, बिहार, झारखंड एवं उड़ीसा सम्मिलित थे। सरकार द्वारा बंग-भंग का कारण ‘शासकीय आवश्यकता’ बताई गई, कहा गया कि बंगाल का क्षेत्रफल एवं जनसंख्या बहुत अधिक थी। परंतु यथार्थ में विभाजन का मुख्य कारण शासकीय न होकर राजनीतिक था। बंगाल राष्ट्रीय गतिविधियों का केन्द्र बनता जा रहा था। कर्जन कलकत्ता और ऐसे अन्य केन्द्रों को नष्ट करना चाहता था। कलकत्ता केवल ब्रिटिश भारत की राजधानी ही नहीं, बल्कि व्यापार-वाणिज्य का स्थल और न्याय का प्रमुख केन्द्र भी था। यहीं से अधिकतर समाचार पत्र निकलते थे, जिससे लोगों में, विशेषकर शिक्षित वर्ग में राष्ट्रीय भावना उदित हो रही थी ।
बंगाल विभाजन प्रस्ताव के अनुसार पूर्वी बंगाल और असम को नया प्रांत बनाया गया जिसमें चटगांव, ढाका और राजशाही के डिवीजन सम्मिलित थे। यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र था। इसकी राजधानी ढाका को बनाना प्रस्तावित था। दूसरी ओर पं. बंगाल, बिहार और उड़ीसा थे, यह हिन्दू बहुल क्षेत्र था ।
16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा कर दी गई जिसका सर्वत्र विरोध हुआ और शीघ्र ही एक आंदोलन का रूप ले लिया। बंग-भंग के दूरगामी परिणाम हुए। इसने भारतीयों में एक नई राष्ट्रीय चेतना भर दी और विभाजन विरोधी स्वदेशी आंदोलन को जन्म दिया। अभी तक स्वतंत्रता संग्राम की दिशा याचना एवं विनय-विनती की थी लेकिन इस आंदोलन ने लोगों में क्रांतिकारी भावना को जन्म दिया एवं गरम-दल अथवा क्रांतिकारी विचार वाले नेताओं का प्रभाव बढ़ गया। इस आंदोलन में लाल-बाल – पाल के साथ ही अरविंद घोष ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने विभाजन की घोषणा को एक ‘बम विस्फोट’ की भांति बताया और कहा कि इसके द्वारा हमें अपमानित किया गया है। साथ ही इसमें बंगाली परंपराओं, इतिहास और भाषा पर सुनियोजित आक्रमण किया गया है। गोपाल कृष्ण गोखले ने स्वीकार किया कि नवयुवक यह पूछने लगे हैं कि ‘संवैधानिक उपायों’ का क्या लाभ है? क्या इसका परिणाम बंगाल विभाजन है ? भारत के प्रमुख समाचार पत्रों ने भी बंग-भंग का विरोध किया।
अतः बंग-भंग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था जिसने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों में विरोध की भावना को प्रबल किया। साथ ही कांग्रेस एवं विद्रोह की नरम दलीय पद्धति से आगे बढ़कर भारतीयों ने उग्र आंदोलन किए।
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