बिहार राज्य में सिंचाई के कार्यों में प्रयोग होने वाली पारंपरिक तकनीक का परीक्षण कीजिए। इसमें सुधार लाने के लिए क्या कदम उठाये जाने चाहिए ?

बिहार राज्य में सिंचाई के कार्यों में प्रयोग होने वाली पारंपरिक तकनीक का परीक्षण कीजिए। इसमें सुधार लाने के लिए क्या कदम उठाये जाने चाहिए ?

(39वीं BPSC / 1993)
उत्तर- बिहार की कृषि मुख्यतः वर्षा पर निर्भर है एवं लगभग 49% भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा प्राप्त है। राज्य में सिंचाई के लिए प्रमुख साधन निम्न हैं
1. नहर – राज्य की प्रमुख नहरों में सोन, गंडक, कोसी, तिरहुत, सारण आदि प्रमुख हैं। इन नहरों से बिहार के कुल सिंचित भूमि के लगभग 30% भाग पर सिंचाई होती है।
2. ट्यूबवेल – राज्य की भूगर्भीय स्त्रोतों से सिंचाई का प्रमुख साधन ट्यूबवेल है जो राज्य की कुल सिंचाई क्षमता का लगभग 63% है। बिहार में भूगर्भीय जल संसाधन का भरपूर उपयोग नहीं हो सका है।
3. कुआं- राज्य में कुआं सिंचाई का प्रमुख परंपरागत साधन है जो सिंचाई के आधुनिक तकनीकों के बावजूद आज अधिकतर कृषकों द्वारा प्रयुक्त किया जाता है । यद्यपि कुल सिंचित क्षेत्र का मात्र 2-3% ही इस साधन की क्षमता है।
 4. तालाब – तालाब भी सिंचाई के परंपरागत स्त्रोत हैं, जिससे मधुबनी, वैशाली, दरभंगा, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर आदि जिलों में कुछ मात्रा में सिंचाई होती है। कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 2% सिंचाई की क्षमता वाला यह स्रोत है।
5. सिंचाई के अन्य साधन आहर, पाईन, चौर आदि हैं जिनसे राज्य के कुछ भागों में सिंचाई कार्य हो रहे हैं।
बिहार में प्रयुक्त सिंचाई के वर्णित साधन / स्त्रोत में सुधार की आवश्यकता है ताकि अधिकतम कृषि भूमि सिंचाई क्षमता के अंतर्गत आ सके। इसके लिए ट्यूबवेल के लिए सरकार को विशेष प्रोत्साहन देना चाहिए, क्योंकि यह सिंचाई का सबसे सक्षम साधन है। इसका विस्तार कर कृषि की मानसून पर निर्भरता कम की जा सकती है। दूसरा नहरों की व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी। बिहार में नदियों का जाल बिछा हुआ है। इन नदियों का समुचित उपयोग इनसे नहरों को निकाल कर कृषिकार्य के लिए किया जाना चाहिए। अन्य परम्परागत साधन, जैसे कुएं, तालाब, आहर, पाईन, चौर आदि के भी विकास की आवश्यकता है। साथ ही आधुनिक सिंचाई तकनीक, जैसे- ड्रिप सिंचाई, छिड़काव सिंचाई, रेन वाटर हारवेस्टिंग आदि विधियों को अपनाना चाहिए।
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