भारत में कोविड-19 लॉकडाउन के सामाजिक आर्थिक और पारिस्थितिक निहितार्थों की सोदाहरण व्याख्या कीजिए |

भारत में कोविड-19 लॉकडाउन के सामाजिक आर्थिक और पारिस्थितिक निहितार्थों की सोदाहरण व्याख्या कीजिए |

उत्तर  –  2020 का वर्ष 21वीं सदी में एक वैश्विक महामारी के रूप में यादगार वर्ष साबित होगा जैसे कि 20वीं सदी में 1918-19 को स्पैनिस फ्लू के कारण याद किया जाता है। भारत में कोरोना ने दस्तक 30 जनवरी, 2020 को केरल राज्य में दी तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 11 मार्च को कोविड- 19 को महामारी घोषित करने के बाद भी भारत में हवाई यात्राओं पर प्रतिबंध थोड़ी देर से लगाया गया तथा देशव्यापी लॉकडाउन को 24 मार्च से लगाने के साथ ही देश लगभग बंद – सा पड़ गया। कोरोना के कारण विश्व स्तर पर भी कई देशों द्वारा लॉकडाउन लागू किया गया।
कोरोना वायरस के कारण नागरिकों के जीवन के सभी क्षेत्रों, जैसे- सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा पर्यावरणीय आदि स्तर पर नकारात्मक तथा सकारात्मक प्रभाव के निहितार्थ इस प्रकार हैं
लॉकडाउन के सामाजिक निहितार्थ
1. सामाजिक दूरी तथा कोरोना प्रभावित मरीज के एकांत के कारण मनोवैज्ञानिक प्रभाव।
2. यात्रा संबंधित प्रतिबंध जिससे अप्रवासी मजदूरों तथा जन सामान्य के कामकाज पर प्रभाव ।
3. सभी आर्थिक क्षेत्रों में लॉकडाउन के कारण मांग में कमी के परिणामस्वरूप कार्यबल में कमी करना पड़ा जिससे नागरिकों की आय के साधनों पर संकट से सभी का सामाजिक तानाबाना गड़बड़ा गया।
4. देश में विश्वविद्यालयों तथा स्कूलों के बंद होने से छात्रों की पढ़ाई पर संकट आ गया। हालांकि इस समस्या का समाधान सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा आंशिक तौर पर संभव हुआ परंतु इसकी भी कुछ सीमाएं रही जिससे छात्रों के सामान्य जीवन में व्यवधान आया।
5. लॉकडाउन के कारण वस्तुओं और विनिर्मित वस्तुओं की घटती मांग में कमी।
6. चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति की आवश्यकता में वृद्धि।
7. खाद्य उत्पादों की अत्यधिक खरीद से बाजार में वस्तुओं की कमी
8. सोशल मीडिया के माध्यम से आतंक और भय का प्रसार ।
9. कुछ विशेष जातियों तथा भौगोलिक समूहों के खिलाफ जिनोफोबिया का प्रसार ।
10. चिकित्सा के क्षेत्रों में अनुसंधान पर जोर दिया गया तथा अन्य क्षेत्रों के अनुसंधान की अनदेखी की गई।
11. घरेलू हिंसा में वृद्धि जिससे पारिवारिक सांमजस्य में कमी देखी गई।
12. गरीब, बेघर लोग, शरणार्थी तथा प्रवासियों के स्वास्थ्य तथा आर्थिक समस्याओं में वृद्धि।
इसके अलावा लॉकडाउन से सामाजिक असामानता में वृद्धि हुई तथा महिलाओं की स्थितियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में स्कूल छोड़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई जिसका सामाजिक अनुसंधान संगठनों द्वारा अनुमान लगाया जा रहा है। विशेष रूप से इसका प्रभाव बालिकाओं पर सबसे ज्यादा पड़ेगा। इसके साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र में कोविड को छोड़कर अन्य बीमारियों में नागरिकों को समस्याओं का सामना करना पड़ा।
लॉकडाउन के आर्थिक नीहितार्थ – कोरोना वायरस ने न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को भी धीमा कर दिया है। विश्व बैंक की ताजा रिर्पोट के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था अनुमानतः 2020-21 में मात्र 1.5% से 2.8% की वृद्धि दर्ज करेगा। इसी के साथ 2020 की द्वितीय तीमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में ऋणात्मक –23.9% की वृद्धि दर्ज की गई। यह महामारी ऐसे वक्त में आई है जिस समय वित्तीय क्षेत्र पर दबाव के कारण पहले से ही भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती की मार झेल रही थी तथा कोरोना वायरस के कारण इस स्थिति को और नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
1. लॉकडाउन में सभी फैक्ट्री, ऑफस, मॉल्स, व्यवसाय आदि सब बंद होने के कारण एक तरफ उत्पादन प्रभावित हुआ तथा दूसरी तरफ लोगों की आय कम होने से मांग भी प्रभावित हुई ।
2. अर्थव्यवस्था में निवेश प्रभावित हुआ क्योकि अर्थव्यवस्था में बचत ही आगे चलकर निवेश में तबदील होती है।
3. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिर्पोट के अनुसार इस लॉकडाउन से अनौपचारिक क्षेत्र के लगभग 40 करोड़ श्रमिकों के प्रभावित होने की सम्भावना है तथा इसके साथ ही साथ इस महामारी ने एक वर्ष के काम के घंटो में से 6.7% कार्य घंटो को समाप्त कर दिया जोकि वैश्विक तौर पर 19.5 करोड़ रोजगार के बराबर है।
4. आयात निर्यात पर प्रभाव- भारत के निर्यात में अप्रैल 2020 में 36.65% ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की गई। तथा इसी अवधि भारत का आयात 47.36% की ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की गई । (अप्रैल में 2019 की तुलना में)
5. कृषि क्षेत्र पर प्रभावदेशव्याप ने महत्त्वपूर्ण फसल कटाई के मौसम से पहले देश भर के किसानों को कृषि श्रम से वंचित कद दिया तथा तालाबंदी से किसानों की फसल को बेचने में भी समस्या का सामना करना पड़ा तथा फसलों के दाम भी इससे प्रभावित हुए। जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के वितरण में तथा उनकी कीमत पर भी प्रभाव पड़ा, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ा। इस करण किसानों की आत्महत्या जैसे मामलों में बढ़ोतरी की संभावना है। इसके अलावा कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों का आधार है इस कारण कच्चे माल की कमी तथा कालाबाजारी से मंहगाई बढ़ने का खतरा हो सकता है।
इसी के साथ पोलट्री तथा मांस उद्योगों को कोविड के सचारण का माध्यम जैसी गलत अफवाहों ने प्रभावित किया जिसके कारण इनकी मांग प्रभावित हुई, जिससे इस क्षेत्र में नुकसान का सामना करना पड़ा।
 6. विनिर्माण क्षेत्र – इस क्षेत्र पर भी मांग कम होने का प्रभाव पड़ा इसके अलावा ऑटोमोबाइल क्षेत्र जो पिछले एक साल से सुस्त मांग का सामना कर रहा था वर्तमान स्थिति ने इस समस्या को और बढ़ा दिया तथा तरलता की कमी के साथ इस समस्या को और जटिल बना दिया। चीन से इस क्षेत्र में भारत का आयात लगभग 27% होता है जिसका वुहान एक प्रमुख ऑटोहब होने के कारण आपूर्ति में काफी गिरावट आई।
इसी तरह इस अवधि में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग में कमी दर्ज की गई तथा आर्थिक गतिविधयों में कमी और चीन से आपूर्तिशृंखला पर निर्भरता के कारण इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। भारत अपनी पूरी तरह से निर्मित उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं का लगभग 50% चीन से आयात करता है। इसके अलावा आवश्यक वस्तुओं की मांग बढ़ने से जमाखोरी और अत्यधिक खरीदारी द्वारा भी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा।
7. इसके अलावा अर्थव्यवस्था के सेवा क्षेत्र जैसे- होटल, रेस्टोरेंट क्षेत्र, पर्यटन, विमानन तथा यातायात, रेल आदि क्षेत्र तालाबंदी की वजह से प्रभावित हुए, साथ ही साथ इससे नागरिकों को भी पेरशानी का सामना करना पड़ा, जैसेअसंगठित क्षेत्र के मजदूरों के पलायन के समय देखने को मिला। भारतीय रेल आजादी के बाद पहली बार पूर्णत: बंद करनी पड़ी, जिससे यातायात सेवाओं तथा वस्तुओं की आपूर्ति पर प्रभाव पड़ा इसके साथ ही ई-कॉमर्स सेवाओं में समय पर ऑर्डरों की आपूर्ति में लॉकडाउन के कारण समस्या का सामना करना पड़ा। हालांकि ई-कॉमर्स कम्पनियां के पास आवश्यक वस्तुओं को प्राथमिकता के आधार पर सेवा देने का विकल्प था।
इन सब समस्याओं के बाद भी कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा भारत की संभावित रिकवरी का निम्न प्रकार से आंकलन किया गया है –
1. निवेश बैंक, गोल्डमेन सैकस (Sachs) के अनुसार वित्त वर्ष के अंत में तथा आने वाले वर्षों में भारत में एक मजबूत अनुक्रमिक वृद्धि की उम्मीद करता है ।
2. इकॉनोमिस्ट इंटेलीजेन्स यूनिट (EIU) ने भारत के लिए 2020-21 के लिए भारत की जी. डी. पी विकास दर का अनुमान 2.1% लगाया है हालांकि इस समय G20 की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर कम या ऋणात्मक ही रहेगी।
अतः कोविड-19 के प्रकोप ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को झटका दिया है लेकिन जैसे ही स्थिति सुधरेगी उससे ऐसा लगता है कि भारत सुधार करने में अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर स्थिति में होगा तथा भारत विदेशी निवेशकों के लिए एक आकर्षक तथा भरोसेमंद गंतव्य बनकर विश्व के सामने आयेगा।
लॉकडाउन के पर्यावरणीय निहितार्थ – जीवाश्म ईंधन की मांग में कमी के कारण कार्बन उत्सर्जन इस वर्ष रिकॉर्ड 2.5 बिलियन टन तक घट सकता है। लॉकडाउन के कारण यात्रा, कार्य और उद्योगों पर अभूतपूर्व प्रतिबंधो ने हमारे दम घोंटू शहरों में अच्छी गुणवत्ता वाली हवा के साथ लोगों को सांस लेने का अवसर प्रदान किया। इसी के साथ महाद्वीपों में प्रदूषण का स्तर कम हुआ और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में अप्रत्याशित गिरावट आई। इसके कई सकारात्मक प्रभाव पर्यावरण पर पड़े जो इस प्रकार हैं
1. इस महामारी के कारण वस्तुओं की मांग में वैश्विक स्तर पर कमी आई जो एक चिंता का विषय जरूर है, इस कारण मानवीय गतिविधियों के कम होने से पर्यावरण सकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ।
2. औद्योगिक और परिवहन जैसे क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन और अपशिष्टों का बहिर्गमन हुआ। इसी के साथ वायु, जल, मिट्टी में प्रदूषण स्तर कम हुआ। यह प्रभाव कार्बन उर्त्सजन के विपरीत परिदृश्य का निर्माण करता है। अपने उच्च स्तर पर
3. मई का महीना जो आमतौर पर पतझड़ का होता है। जिसके कारण कार्बन उत्सर्जन ( प्रदूषण) होता है इस लॉकडाउन के कारण 2008 के बाद से सबसे कम वायु प्रदूषण दर्ज किया गया है।
4. जल निकाय में भी प्रदूषण का स्तर कम हुआ तथा अधिकांश महत्त्वपूर्ण नदियों जैसे गंगा, यमुना आदि में प्रदूषण के स्तर में कमी आई।
5. अर्थ ओवरशूट – डे 2020 में 22 अगस्त को पड़ा जो कि 2019 में 29 जुलाई को पड़ा था। अर्थ ओवरशूट-डे वर्ष की उस तारीख को चिन्हित करता है जब किसी दिये गये वर्ष में प्रकृति द्वारा उत्पादित संशाधनों को मानव द्वारा कितने दिनों में उपयोग कर लिया जाता है।
अतः इसके अलावा मानव द्वारा पृथ्वी के अन्य जीवों के क्षेत्रों में किए अतिक्रमण के पश्चात् यह पहला ऐसा अवसर था जिसमें सम्पूर्ण विश्व लॉकडाउन में होने के कारण जंगली जानवरों का पलायन शहरी व मानव बसावट वाले क्षेत्रों में देखा गया। जिसे हमें एक चुनौती के रूप में लेना चाहिए कि वे अपनी गैरजरूरी आवश्यकताओं को कम कर एक सतत विकास के माध्यम से जैवविविधता तथा मनुष्य का विकास सांमजस्य पूर्ण तरीके से एक साथ करने का प्रयत्न करना होगा तथा पृथ्वी को अपने सुधार तंत्र के माध्यम से सुधार करने का समय प्रदान करने के लिए, अपनी गतिविधियों को वैज्ञानिक तरीके से पूर्ण करने पर जोर देना होगा।
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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