झारखण्ड के पर्व, त्योहार एवं मेले

झारखण्ड के पर्व, त्योहार एवं मेले

> राज्य के प्रमुख पर्व एवं त्योहार 

> राज्य के प्रमुख पर्व एवं त्योहार निम्न हैं 
> टुसू
> यह पर्व माघ (जनवरी) महीने में मकर संक्रान्ति के अवसर पर सिंहभूम एवं पंचपरगना के आदिवासी, विशेष रूप से महतो (कुड़मी) समुदाय के लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं।
> इस पर्व में सूर्य की पूजा की जाती है। यह पर्व टुसू नाम की कन्या की स्मृति में मनाया जाता है। इस पर्व के अवसर पर पंचपरगना क्षेत्र में प्रसिद्ध टुसू मेला आयोजित किया जाता है।
. इस त्योहार पर लड़कियाँ रंगीन कागज से लकड़ी/बाँस के एक फ्रेम को सजाती हैं और पहाड़ी नदी को भेंट कर देती हैं।
> बा पर्व
> यह पर्व राज्य में बसंत (फरवरी) महीने में ऋतु के दौरान तीन दिन तक मनाया जाता है । इस पर्व में साल वृक्ष के फूल को पूजा जाता है।
> पहले दिन घरों की सफाई व लिपाई-पुताई होती है तथा दूसरे दिन मंरग बा पर्व मनाया जाता है। तीसरे दिन पूर्वजों व देवताओं के लिए दाल-भात, हड़िया अर्पित किया जाता है तथा इसके पश्चात् साल वृक्ष के फूल को घर में लाया जाता है।
> चाण्डी पर्व
> यह पर्व उराँव जनजाति द्वारा माघ (फरवरी) महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें पुरुष चाण्डी स्थल में देवी की पूजा करते हैं। इस पर्व में केवल पुरुष भाग लेते हैं, महिलाएँ भाग नहीं लेतीं ।
> इस पर्व के समय यदि किसी परिवार में गर्भवती महिला है, तो घर का कोई भी सदस्य पर्व में भाग नहीं लेता है। झारखण्ड में इस पर्व के दौरान लाल मुर्गों को बलि चढ़ाई जाती है ।
> फगुआ (होली)
> राज्य में फगुआ पर्व फाल्गुन (मार्च) की अन्तिम पूर्णिमा तथा चैत्र (अप्रैल) के प्रथम दिवस को मनाया जाता । यह पर्व होली के समान है। रात भर लोग आग के पास नाचते-गाते हैं और सुबह उस राख का तिलक लगाकर अपने खेतों में जाते हैं तथा उस राख को भी अपने खेतों में डालने के लिए साथ ले जाते हैं। इसके पश्चात् लोग नदी या तालाब में स्नान कर अपने पितरों का तर्पण करते हैं ।
> इस त्योहार पर गैर-जनजातीय लोग होलिका दहन (संवत्) जलाते समय बलि नहीं चढ़ाते। जनजातीय लोग पाहन के साथ सेमल या अरण्डी की डाली गाड़कर संवत् जलाते हैं ।
> सेंदरा उराँव जनजातियों का संस्कृति और परम्परा से सम्बन्धित त्योहार है।
> इस त्योहार में आत्मरक्षा, युद्ध विद्या, भोजन एवं अन्य जरूरतों को पूरा किया जाता था ।
> सेंदरा शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘शिकार’ है। उराँव कुदुख भाषा में इसे मुक्का सेंदरा भी कहते हैं। उराँव जनजाति में महिलाओं द्वारा शिकार खेलने की परम्परा है ।
> सेंदरा कई प्रकार के होते हैं, जैसे- फग्गु सेंदरा का आयोजन फाल्गुन (मार्च) महीने में तथा विशु सेंदरा बैशाख (मई) महीने में होता है।
> माघे पर्व
> यह माघ महीने में मनाया जाता है ।
> यह पर्व राज्य के रांची जिले में मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह मुख्यतः कृषि श्रमिकों (धांगर) की विदाई का पर्व है। कृषि वर्ष के अन्त में उनकी सेवा अवधि समाप्त होती है और नया कृषि वर्ष आरम्भ होता है। इस पर्व में लोगों द्वारा जतरा निकाली जाती है ।
> यह पर्व साल फूल के गिरने से पूर्व मनाया जाता है, इस पर्व को झण्डा पर्व के नाम से भी जाना जाता है।
> बोरा बलौंजी पर्व
> बोरा बलौजी पर्व गोंदली के बीज एवं बेरा धान बोने के पूर्व में मनाया जाता है, जो चैत्र (अप्रैल) महीने के अन्त में मनाया जाता है ।
> इस पर्व के उपलक्ष्य में लोग अपने घरों से टूटे व पुराने बर्तन, टूटे हुए हल, झाडू इत्यादि इकट्ठा कर गाँव की सीमा के बाहर फेंक देते हैं तथा पूरे गाँव की सफाई की जाती है।
> दूसरे दिन गाँव के लोग गोंदली और बेरा धान अपने खेतों में बोते हैं ।
> महावीर जयन्ती
> यह पर्व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म दिवस पर मनाया जाता है। महावीर का जन्म चैत्र (अप्रैल) महीने के शुक्ल त्रयोदशी को बैसाखी में हुआ था।
> सरहुल
> यह जनजातियों का सबसे बड़ा पर्व है। यह प्रकृति से सम्बन्धित पर्व है। इसे चैत्र (अप्रैल) महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह त्योहार साल वृक्ष पर फूलों के गदराने के उपलक्ष में मनाया जाता है। इस त्योहार पर पुरोहित (पाहन) मुख्य भूमिका निभाता है तथा सरना की पूजा करता है। इस पर्व में सुड़ी प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है।
> पर्व के चौथे दिन सरई फूल (साल) का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन स्थल को गिड़िवा कहा जाता है ।
> इस पर्व को मुण्डा जनजाति ‘सरहुल’, उराँव जनजाति ‘खद्दी’, सन्थाल जनजाति ‘बान्परब’ तथा खड़िया जनजाति ‘जंकारे सोहराई’ के नाम से मानते हैं।
> माण्डा पर्व
> यह पर्व बैशाख (अप्रैल-मई) महीने की शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया को मनाया जाता है। यह पर्व रात्रि जागरण और ‘छऊ’ नृत्य के साथ शुरू होता है।
> इसमें शिव की पूजा की जाती है। उपवास रखने वाले पुरुष व्रती को भगता तथा महिला व्रती को सोखताइन कहा जाता है।
> बुद्ध जयन्ती
> बौद्ध सम्प्रदाय के लोग बैशाख (मई) की पूर्णिमा को इस पर्व को मनाते हैं।
> मान्यता है कि बुद्ध को इसी दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
> आषाढ़ी पूजा
> आषाढ़ (जून) महीने में मनाए जाने वाले इस पर्व में घर के आँगन में काली पाठी (काली बकरी) की बलि दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इससे चेचक जैसी भयानक बीमारियों से बचाव होता है।
> यह पूजा आदिवासी एवं सदानों दोनों में प्रचलित है।
> करमा
> यह पर्व भाद्रपद (अगस्त) महीने की शुक्ल पक्ष के एकादशी को मनाया जाता है। करमा त्योहार में करम देवता की पूजा की जाती है जो शक्ति, युवा अवस्था तथा यौवन देवता के प्रतीक हैं। यह पर्व राज्य में धूमधाम से ठराव जनजातियों द्वारा मनाया जाता है।
> पूजा के दिन उपवास रखा जाता है। पूजा स्थल पर करमा वृक्ष की दो डालियाँ गाड़कर पूजा की जाती है। पाहन (पुरोहित) द्वारा करमा कथा सुनाई जाती है।
> मुण्डा आदिवासियों में करमा पर्व की दो श्रेणियाँ हैं- राज करमा और देश करमा।
> राज करमा घर-आँगन में की जाने वाली पारिवारिक पूजा है तथा देश करमा अखाड़े में की जाने वाली गाँव की सामूहिक पूजा है।
> नवाखानी
> यह पर्व धान पकने पर मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक (अक्टूबर) महीने में मनाया जाता है। इसमें महिलाएँ नहा-धोकर पूजा करने के पश्चात् नए अनाज से चूड़ा बनाती हैं, जिसे सर्वप्रथम देवताओं को दही के साथ अर्पित : किया जाता है।
> सोहराय (सोहराई)
> यह पर्व कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। इस त्योहार में पशुओं को श्रद्धा अर्पित की जाती है। यह त्योहार मुण्डा जनजातियों में मनाया जाता है।
> इसमें पशुओं को नहलाया जाता है, उनका शृंगार किया जाता है तथा गोशाला को सजाया जाता है।
> पाँच दिनों के इस पर्व में पहले दिन जाहेर एरा, दूसरे दिन गोहल पूजा, तीसरे दिन सण्टाऊ और चौथे दिन जाले होता है। पाँचवें दिन जमा हुए चावल-दाल से खिचड़ी बनाई जाती है और सहभोज होता है। पशुओं को सात अनाजों से तैयार किया गया ‘पखवा’ भी खिलाया जाता है।
> यह पर्व झारखण्ड के अतिरिक्त बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी मनाया जाता है।
> देव उठान
> यह कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।
> इसमें देवताओं को जाग्रत किया जाता है।
> इसमें घर के सदस्यों द्वारा अपने पूर्वजों को चौकी पर बैठाकर पूजा करते हैं तथा चौकी को पाँच बार उठाकर उन्हें जगाते हैं।
> इस पर्व के बाद ही झारखण्ड में कन्या या वर देखने या विवाह प्रक्रिया शुरू होती है ।
> दीपावली
> इसे कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) महीने की अमावस्या को हिन्दू और जैन समुदाय द्वारा मनाया जाता है। हिन्दू इसे श्रीराम के लंका विजय के उपलक्ष में तथा जैन इसे भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के उपलक्ष में मनाते हैं।
> छठ 
> इस पर्व में सूर्य की पूजा की जाती है। यह पर्व दो दिन तक चलता है। पहले दिन कार्तिक (नवम्बर) षष्ठी की संध्या को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है तथा दूसरे दिन उगते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है । यह अर्ध्य किसी नदी या तालाब के किनारे दिया जाता है।
> यह पर्व मुख्य रूप से बिहार तथा झारखण्ड में मनाया जाता है।
> अयप्पा पूजा
> यह त्योहार राज्य के रांची व पूर्वी सिंहभूम इत्यादि जिलों में रहने वाले दक्षिण भारतीयों द्वारा मनाया जाता है। यह पोष (दिसम्बर) के महीने में मनाया जाता है।
> बुरू पर्व
यह पर्व राज्य में मुण्डा जनजातियों द्वारा पोष (दिसम्बर-जनवरी) के महीनों में तीन दिन तक मनाया जाता है। इस पर्व पर बुरू बोंगा (पहाड़ देवता) का स्मरण व पूजा की जाती है ।
> देशउली
यह भूत-प्रेत की पूजा है। यह 12 वर्षों में एक बार मनाई जाती है। इसमें भैंसे की बलि दी जाती है। यह बलि गाँव या क्षेत्र के भुईहरदार द्वारा दी जाती है। इसमें अलग-अलग देवताओं के लिए अलग-अलग पशुओं की बलि दी जाती है।
> जनी शिकार
यह जनजातीय स्त्रियों के साहस और शक्ति प्रदर्शन पर आधारित त्योहार है। इसमें महिलाएँ पुरुष का वेश धारण कर शिकार करने निकलती हैं। यह पर्व 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है।
> कुटी दहन पूजा
यह पूजा/पर्व गाँवों में बीमारी से बचने एवं आकाशीय बिजली से बचने के लिए की जाती है। इसमें लोग एक झोपड़ी बनाते हैं और इसके रस्ते में सेमल व रेंड की डालियाँ गाड़ देते हैं। पुजारी झोपड़ी में पूजा करते हैं और बाद में इसमें आग लगा दी जाती है। रास्ते में लगी डालियों को लोग छोटे-छोटे भागों में काटकर अपने घर ले जाते हैं और दरवाजों पर टाँग लेते हैं ।
> जाडकोर पूजा
> यह राज्य के खड़िया जनजाति के लोगों का प्रमुख पर्व है। इसकी पूजा सार्वजनिक प्रधान पुजारी ‘कालो’ द्वारा सम्पन्न करायी जाती है
> यह पूजा मानव समाज की रक्षा तथा पालतू पशुओं की रक्षा के लिए की जाती है ।
> इसमें महुआ तथा साल का फूल प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है।
> बहुरा
इस त्योहार में भादो (अगस्त/सितम्बर) के कृष्णपक्ष के चतुर्थी के दिन अच्छी वर्षा समाप्ति और स्वस्थ सन्तान प्राप्ति के लिए स्त्रियों द्वारा पूजा की जाती है । इस पर्व को राइज बहरलक के नाम से भी जाना जाता है।
> राज्य में जनजातियों के पर्व-त्योहार
जनजाति
पर्व-त्योहार
सन्थाल
बा-परब, एरोक, हरियाड़, सोहराय, साकरात, भागसिम, बाहा
मुण्डा
सरहुल, करमा, सोहराय, बुरू पर्व, माघे पर्व, फागु पर्व
उराँव
खद्दी, जतरा, करमा, सोहराय, माघे पर्व, फागु पर्व
खरवार
करमा, सरहुल, नवाखानी, महावीरी झण्डा, दशहरा, दीपावली, छठ, होली
हो होरो, उमुरी, जोमनना, माघी, बाहा
खड़िया
जंकोर, बन्दई, करमा, बिइना, कदलेटा, जोओडेम, रथ यात्रा, दिमतंग पूजा, चितरु पूजा, दोरहो डुबोओ पूजा
भूमिज
धुला पूजा, चैत्र पूजा, ग्राम ठाकुर पूजा, गोराई ठाकुर पूजा, करमा पूजा
मालपहाड़िया
बीचे आड़या, गांगी आड़या, ओसरो आड़या, माधी पूजा
गोण्ड मतिया, फरसा पेन, बूढ़देव
चेरो
काली पूजा, दुर्गा पूजा, छठ, सोहराय, होली
असुर
सिंहबोंगा पूजा, मराड बोंगा पूजा, सरहुल, सोहराय, नवाखानी, काठ-डेली, कुटसी, सरही
बिरहोर
कांदो बोंगा, ओरा बोंगा, टण्डा बोंगा, हापराम बोंगा
बिरजिया
सरहुल, सिंहबोंगा, काठ डेली, फगुआ
खोण्ड
करमा, सरहुल, सोहराय, नवाखानी, दीपावली, दशहरा, रामनवमी, फागु, छठ
किसान
करमा, नवाखानी, सोहराय, काली पूजा

> राज्य के प्रमुख मेले 

> राज्य के प्रमुख मेलों का विवरण निम्न है
> मुड़मा जतरा
> यह मेला राज्य में दशहरे से दस दिन के बाद भव्य रूप से आयोजित किया जाता है। जनजातियों में इस मेले को जतरा कहते हैं।
> यह मेला सामाजिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध है।
> यह मेला रांची से 28 किमी दूरी मुड़मा गाँव में आयोजित किया जाता है।
> नुनबिल मेला 
> यह मेला राज्य के दुमका जिले में आयोजित किया जाता है, जो प्रत्येक वर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर एक सप्ताह तक मनाया जाता है।
> इस मेले का आयोजन स्थल घाटा नामक गाँव के समीप नुनबिल नदी के किनारे होता है, जो पहाड़िया जनजाति का प्रसिद्ध मेला है।
> करमदाहा मेला
> मकर संक्रान्ति के अवसर पर प्रतिवर्ष नारायणपुर (जामताड़ा) के करमदाहा स्थान पर यह मेला आयोजित किया जाता है।
> यह मेला दुःखहरण (भगवान शिव) के मन्दिर परिसर में 15 दिनों तक चलता है।
> पलामू का भूत मेला
> यह मेला पलामू जिले में हैदरनगर में मनाया जाता है, जो देवी धाम से प्रसिद्ध है।
> यह मेला चैत्र (अप्रैल) महीने की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक 15 दिनों का भूत मेला आयोजित किया जाता है, इसमें भूत-प्रेत से ग्रस्त लोग, घर शान्ति व सन्तान की मनोकामना के लिए आते हैं।
> रामरेखा मेला
> यह मेला प्रत्येक वर्ष कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) पूर्णिमा के अवसर पर तीन दिनों तक मनाया जाता है। यह मेला राज्य के सिमडेगा जिले में रामरेखा नामक स्थान पर आयोजित किया जाता है।
> इस मेले का आयोजन पहाड़ पर स्थित प्राचीन में होता है, जहाँ पर राम-सीता गुफा एवं अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
> लँगटा बाबा मेला
> यह मेला गिरिडीह जिले के खड़कडीह स्थान पर होता है, जो प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है।
> यहाँ पर लँगटा बाबा नामक सिद्ध पुरुष की समाधि है, जिनकी स्मृति में इस मेले का आयोजन किया जाता है।
> इन्द जतरा मेला
> यह मेला सुतियाम्बे गढ़ से प्रारम्भ हुआ था जिसे महाराजा मदरा मुण्डा ने पारम्परिक रीति-रिवाज से शुरू किया था।
> इस मेले में भव्य टोप्पर बनाया जाता है जो गोवर्धन पर्वत का प्रतीक होता है। इस मेले की शुरुआत नागवंशी शासकों के काल में हुई थी।
> बिसुआ मेला
> इस मेले का आयोजन गोड्डा जिले के बसन्त राय प्रखण्ड में किया जाता है, जो प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को मनाया जाता है
> इस मेले के दौरान साफा होड़ जनजाति के लोग तीन दिनों तक तालाब में डुबकी लगाते हैं। यह मेला आदिवासी (जनजाति) व सदानों को आपस में जोड़ता है।
> हथिया पत्थर मेला
बोकारो जिले में फुसरो के समीप हाथी की आकृति वाली चट्टान (जिसे हथिया पत्थर कहा जाता है) के पास मकर संक्रान्ति के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
> श्रावणी मेला
सावन के महीने में प्रतिवर्ष देवघर में मेले का आयोजन किया जाता है। शिव के पुराण अनुसार देवघर का ‘बाबा धाम’ बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह विश्व का सर्वाधिक समय तक चलने वाला मेला है।
> रथयात्रा मेला
प्रतिवर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से नौ दिनों तक यह मेला चलता है। इस मेले के दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम तथा बहन सुभद्रा के साथ जुलूसनुमा यात्रा निकाली जाती है। इस मेले का आयोजन रांची के हटिया में जगन्नाथपुर मन्दिर में किया जाता है ।
> गाँधी मेला
एक सप्ताह ( 26 जनवरी से 1 फरवरी) तक चलने वाला यह मेला सिमडेगा जिले में प्रतिवर्ष गणतन्त्र दिवस के अवसर पर आयोजित किया जाता है। इस मेले में विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी विभागों द्वारा सामूहिक रूप से एक मनोहारी प्रदर्शनी लगाई जाती है, जिसे विकास मेला भी कहा जाता है ।
> मण्डा मेला
यह मेला प्रतिवर्ष बैशाख, ज्येष्ठ एवं आषाढ़ माह में हजारीबाग, रामगढ़ तथा बोकारो के आस-पास लगता है। अँगारों पर नंगे पाँव चलना इस मेले का विशिष्ट कार्यक्रम है।
> राज्य के अन्य प्रमुख मेले
मेले
विवरण
बिन्दु धाम मेला
यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र (अप्रैल) महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक बिन्दु धाम (साहेबगंज) शक्तिपीठ में लगता है।
नवमीडोल मेला
यह मेला रांची के समीप टाटी सिलने में लगता है। इसमें राधा-कृष्ण की मूर्तियों की पूजा होती है। यह चैत्र (मार्च-अप्रैल) महीने के कृष्ण पक्ष में आयोजित किया जाता है।
नरसिंह मेला
हजारीबाग के नरसिंह नामक स्थान पर कार्तिक (नवम्बर) पूर्णिमा के अवसर पर प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है।
बुढ़ई मेला
देवघर के बुढ़ई ग्राम में स्थित बुढ़ई पहाड़ पर अगहन महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी को यह मेला लगता है। यह मेला नवान्न पर्व के रूप में मनाया जाता है।
सरहुल मेला
इस मेले का आयोजन चाईबासा एवं रांची में किया जाता है।
सूर्यकुण्ड मेला
इसका आयोजन हजारीबाग के सूर्यकुण्ड नामक स्थान पर किया जाता है। यह मेला 10 दिनों तक चलता है।
एकैसी महादेवी मेला
रांची की भूर नदी के बीच 21 शिवलिंग हैं, जहाँ मकर संक्रान्ति के अवसर पर यह मेला लगता है।
हिजला मेला
इसका आयोजन दुमका मुख्यालय से 3 किमी दक्षिण में हिजला पहाड़ी पर होता है। इसका
मुख्य उद्देश्य जिला प्रशासन द्वारा राज्य सरकार द्वारा चलाए जाने वाले विकास के विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी लोगों को देना है।
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