टू प्लस टू वार्ता क्या है ? भारत एवं ईरान के द्विपक्षीय संबंधों के सन्दर्भ में भारत एवं अमेरिका के बीच हुई टू प्लस टू वार्ता को स्पष्ट कीजिए |

टू प्लस टू वार्ता क्या है ? भारत एवं ईरान के द्विपक्षीय संबंधों के सन्दर्भ में भारत एवं अमेरिका के बीच हुई टू प्लस टू वार्ता को स्पष्ट कीजिए |

अथवा

6 सितम्बर, 2018 को सम्पन्न टू प्लस टू वार्ता का उल्लेख करें। संक्षेप में इसके प्रावधानों का वर्णन करते हुए इस वार्ता के भारत और ईरान के द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर – 6 सितम्बर, 2018 को भारत व अमेरिका ने नई दिल्ली में पहला 2+2 मंत्रीस्तरीय वार्ता आयोजित किया था। इस वार्ता में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा सचिव जेम्स मैटिस के साथ रक्षा समझौतों पर महत्वपूर्ण बैठक संपन्न | इस वार्ता में प्रमुख रूप से कम्युनिकेशन कम्पेटिबिलिटी एंड सेक्युरिटी (Communications compatibility and Security Agreement : COMCASA) पर समझौते किए गए।
टू प्लस टू वार्ता – जब दो देश दो-दो मंत्रिस्तरीय वार्ता में शामिल होते हैं तो इसे विदेश नीति के संबंध में टू प्लस टू वार्ता कहा जाता है। सामान्य तौर पर टू प्लस टू वार्ता में दोनों देशों की तरफ से उनके विदेश और रक्षा मंत्री हिस्सा लेते हैं. वर्ष 2010 में भारत और जापान के बीच भी इस तरह की वार्ता हो चुकी है।
> वार्ता से संबंधित मुख्य तथ्य
> एनएसजी सदस्यताः परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की यथाशीघ्र सदस्यता के लिए सहमति बनी। अमेरिका इसके लिए सहयोग करेगा।
> अफगान नीतिः भारत और अमेरिका दोनों ही देश साझा लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। दोनों ही देश शांति और नागरिकों की समदृता के लिए काम करने पर राजी हुए हैं. दोनों देश साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने वार्ता के बाद कहा कि भारत और अमेरिका साथ मिलकर काम करते रहेंगे और साथ ही उन्होंने एक बार फिर से भारत को अमेरिका का सबसे बड़ी रक्षा साझीदार करार दिया।
> रक्षा और सुरक्षा: दोनों देशों की तीनों सेनाओं के बीच पहली बार अगले वर्ष भारत में संयुक्त सैन्य अभ्यास के आयोजन का भी फैसला किया गया। यह अभ्यास देश के पूर्वी तट पर किया जाएगा। इस दौरान दोनों देशों के बीच अहम सुरक्षा समझौते COMCASA पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते के बाद अमेरिका संवेदनशील सुरक्षा तकनीकों को भारत को बेच सकेगा। खास बात यह है कि भारत पहला ऐसा गैर-नाटो देश होगा, जिसे अमेरिका यह सुविधा देने जा रहा है।
> आतंकवादः  सुषमा स्वराज ने अमेरिकी मंत्रियों के सामने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाते हुए कहा कि अमेरिका द्वारा लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों की नामजदगी स्वागत योग्य हैं। उन्होंने कहा कि 26/11 हमले की 10वीं वर्षगांठ पर हम इसके गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं। बातचीत में सीमापार आतंकवाद का मुद्दा भी शामिल रहा। उन्होंने कहा कि सीमापार आतंकवाद को समर्थन देने की पाकिस्तान की नीति के खिलाफ अमेरिका का रुख स्वागत योग्य है।
> बातचीत के दौरान अमेरिका ने दाऊद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की प्रतिबद्धता जताई। दोनों पक्षों ने डी-कंपनी और उसके सहयोगियों जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई को मजबूत करने के लिए 2017 में शुरू की गई द्विपक्षीय वार्ता का भी जिक्र किया।
> भारत ने इस बैठक में H1 वीजा का मुद्दा भी उठाया। उम्मीद है कि अमेरिका भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए कोई फैसला लेगा। यह वीजा आईटी प्रोफेशनल्स पर प्रभाव डालता है।
> भारत और अमेरिका ने पाकिस्तान से यह सुनिश्चित करने को कहा कि उसके भूभाग का उपयोग आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए नहीं हो। दोनों देशों ने पाकिस्तान से यह भी कहा कि मुंबई, पठानकोट और उरी हमले सहित सीमा पार से हुए विभिन्न आतंकवादी हमलों के सरगनाओं को जल्दी से जल्दी न्याय की जद में लाया जाए।
> ईरान से कच्चे तेल के आयात पर अमेरिकी पाबंदी और रूस से एस-400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली खरीदने की भारत की योजना जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के बीच विचार-विमर्श किया गया।
> भारत एवं ईरान के द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में भारत एवं अमेरिका के बीच हुई  टू प्लस टू वार्ता
टू प्लस टू वार्ता में ईरान के साथ भारत के तेल संबंध पर अमेरिका के रुख में कोई नरमी नहीं आई है। अमेरिका चाहता है कि भारत ईरान से तेल खरीदना बंद करे और अमेरिका पर ज्यादा निर्भर रहे। अमेरिका ने भारत सहित सभी देशों से कहा है कि वे 4 नवंबर तक ईरान से अपना तेल आयात बंद करें। अगर भारत इसका पालन नहीं करता है तो देसी कंपनियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भारत के लिए ये महंगा सौदा हो सकता है। भारत ने संदेश दिया है कि वह अपने जरूरतों के हिसाब से इसे तय करेगा। बातचीत में अमेरिका ने यह साफ नहीं किया कि वह ईरान पर उसके द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंध में भारत को छूट देगा भी या नहीं। मतलब यह साफ नहीं है कि प्रतिबंध लगने के बाद भारत बिना रुकावट ईरान से तेल खरीद सकेगा या नहीं।
अतीत में अमेरिका ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा में ईरानी कच्चे तेल की केंद्रीय भूमिका निभाई थी। साथ ही, भारत ने धीरे-धीरे अमेरिकी प्रतिबंधों का अनुपालन करने और वाशिंगटन से आवश्यक छूट को सुरक्षित करने के लिये अपने तेल आयात को कम कर दिया है। ईरान को लेकर ट्रंप प्रशासन ने अतिवादी रुख अख्तियार किया और इस मोर्चे पर वह कोई ढोल देने को तैयार नहीं हुआ। वहीं, ईरान भी इस मामले में तीखे तेवर अपनाया। उसने भारत को हिदायत दी कि ईरान के साथ तेल आयात कम करने का असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ेगा। परंतु बाद में अमेरिका ने भी इस प्रतिबंध में ढील देने पर अपनी सहमति व्यक्त कर दी ।
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