‘महिला आरक्षण विधेयक’ क्या है ? आपके अनुसार यह विधेयक विधान (कानून) क्यों नहीं बन पा रहा है ?

‘महिला आरक्षण विधेयक’ क्या है ? आपके अनुसार यह विधेयक विधान (कानून) क्यों नहीं बन पा रहा है ?

उत्तर- जनता की प्रतिनिधि संस्थाओं में सत्ता की साझेदारी में महिलाओं को अधिक स्थान देने के उद्देश्य से कई कदम उठाए जा चुके हैं। भारतीय संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधन द्वारा देशभर में ग्रामीण एवं नगरीय स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित कर दिए गए हैं। बिहार में पंचायती संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। भारत के संसद और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने के लिए संसद में विधेयक उपस्थित किया जा चुका है। इसे ही ‘महिला आरक्षण विधेयक’ कहते हैं। इस विधेयक के विधान (कानून) बन जाने से भारत की संसद और राज्य विधानमंडलों का चेहरा पूरी तरह से बदला नजर आएगा। इस विधेयक को विधान बनने के रास्ते में अनेक बाधाएँ हैं। कई पुरुष राजनीतिज्ञों को अपनी सीट से वाचत होने की शंका है। अतः ऐसे पुरुष राजनीतिज्ञ. प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से इसका विरोध कर रहे हैं। कुछ राजनीतिज्ञों ने इस विधेयक के विधान बनने के रास्ते में यह अडंगा लगा दिया है कि दलित, पिछड़ी और अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था की जाए। इसका अर्थ यह हुआ कि ऐसे लोग ‘आरक्षण के अंदर आरक्षण’ के पक्ष में हैं। कुछ लोग 33 प्रतिशत की जगह 20 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष में हैं। कुछ लोग चाहते हैं कि अभी सीट यथावत रहे और 33 प्रतिशत सीटों में ही वृद्धि कर महिलाओं की संसद में साझेदारी बढ़ा दी जाए। इस परिस्थिति में निकट भविष्य में इसके विधान बनने की आशा बहुत कम दिखाई दे रही है।

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