वर्तमान परिदृश्य में, देश के प्रमुख मुद्दे हैं: “बढ़ती हुई जनसंख्या, उच्च स्वास्थ्य जोखिम, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन और घटती जा रही कृषि भूमि “। इन चारों क्षेत्रों में से प्रत्येक के लिए कम-से-कम चार वैज्ञानिक प्रयासों की चर्चा कीजिए, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे।
वर्तमान परिदृश्य में, देश के प्रमुख मुद्दे हैं: “बढ़ती हुई जनसंख्या, उच्च स्वास्थ्य जोखिम, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन और घटती जा रही कृषि भूमि “। इन चारों क्षेत्रों में से प्रत्येक के लिए कम-से-कम चार वैज्ञानिक प्रयासों की चर्चा कीजिए, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे।
उत्तर – वर्तमान समय में भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है जहाँ दुनिया की आबादी का लगभग पाँचवा हिस्सा रहता है। यह विश्व की जनसंख्या का 17.5% भाग है।
विश्व जनसंख्या अनुमान के अनुसार (2019) में भारत की जनसंख्या लगभग 1.35 अरब है। ब्रिटेन के अर्थशास्त्री थामस माल्थस ने 1798 में अपनी एक पुस्तक “एन एसे ऑन द प्रिंसिपल ऑफ पॉपुलेशन” के माध्यम से जनसंख्या का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने जनाधिक्य की समस्या के समाधान के दो उपाय बताए हैं- पहला प्राकृतिक या नैसर्गिक उपाय और दूसरा कृत्रिम उपाय।
1. प्राकृतिक उपाय – जैसे बाढ़, सूखा, महामारी, भूकंप, युद्ध आदि जनसंख्या नियंत्रण के प्राकृतिक उपाय हैं जिन्हें प्रकृति अपनाती है।
2. कृत्रिम उपाय – जैसे विवाह की आयु का निर्धारण, महिलाओं के अधिकारों में वृद्धि, शिक्षा का प्रसार, गोद लेने को बढ़ावा, स्वं नियंत्रण, परिवार नियोजन, जनता को जागरूक करना, प्रोत्साहन, महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करना आदि।
> जनसंख्या नियंत्रण के उपाय
1. शिक्षा – यह माना जाता है कि शिक्षा लोगों को सशक्त बनाती है। अगर महिलाओं को शिक्षित करने पर जोर दिया जाये तो महिला अपने पूरे परिवार को शिक्षित कर जनसंख्या नियंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इससे न केवल महिलाएं शिक्षित होंगी बल्कि रोजगार प्राप्त कर सशक्तिकरण से निर्णय – निर्माण में उन्हें जगह भी मिलेगी।
2. विवाह की आयु का निर्धारण – आज भारत की औसत आयु (जीवन प्रत्याशा) लगभग 69.27 वर्ष है। आज कई अनुसंधानों से ये साबित हुई है कि कम उम्र में विवाह से माँ और बच्चे दोनों को स्वास्थ्य का खतरा होता है। इसके समाधान स्वरूप विवाह की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर हम लोगों के स्वास्थ्य में सुधार तथा जनसंख्या नियंत्रण के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
3. लैंगिक शिक्षा – यौन स्वास्थ्य से जुड़े सामाजिक कलंक को दूर कर तथा स्कूली शिक्षा में लैंगिक शिक्षा को बिना हिचकिचाहट के पाठयक्रम में शामिल करें।
हालांकि बढ़ती जनसंख्या अपने आप में एक समस्या है। परन्तु कई अन्य समस्याओं के जन्म का कारक भी है। जैसे
1. इससे उच्च स्वास्थ्य जोखिम का खतरा बढ़ता है।
2. जनसंख्या बढ़ने से प्राकृतिक संस्थानों पर दबाब पड़ता है।
3. कृषि भूमि एक सीमित संसाधन है तथा अधिक जनसंख्या से इस पर भी अधिक दबाव व अन्य पर्यावरणीय सीमाओं के कारण इसका ह्रास होता है।
इन सभी जनसंख्या वृद्धि जनित समस्याओं के निम्नलिखित उपाय हो सकते हैं
1. उच्च स्वास्थ्य जोखिम और समाधान – भारत के आर्थिक विकास में स्वास्थ्य की भूमिका को देखते हुए हमारे दृष्टिकोण में एक बदलाव की जरूरत है। इसके लिए निम्नलिखित सुझावों द्वारा उच्च स्वास्थ्य जोखिम को कम किया जा सकता है
> स्वास्थ्य के क्षेत्र में अधिक निवेश करना और बीमारी की रोकथाम को सर्वोच्च प्राथमिकता देना।
> स्वास्थ्य सेवा वितरण की प्रक्रिया में सुधार के लिए स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करना । समुदाय की आवश्यकता के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को उत्तरदायी बनाने के लिए मौजूदा सरकारी कामकाज में सुधार करना तथा निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर समुदाय के हित में नियंत्रण को (निर्देशित) मजबूत करना। अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार मनुष्य के जीवन के अधि कार में समाहित है (सुप्रीम कोर्ट) अतः सरकार को कानून के माध्यम से अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी देनी होगी।
> देश भर की बिमारियों का डाटा इकट्ठा कर स्वास्थ्य नीति का निर्माण करना जिससे समय पर बिमारीयों की निगरानी की जा सके और महामारी का रूप लेने से पहले उसे रोका जा सके। स्वास्थ्य सेवाओं में सभी वर्गों को उत्कृष्ट सेवाओं की उपलब्धता कराना ताकि स्वास्थ्य के क्षेत्र में समानता स्थापित की जा सके।
> सार्वजनिक स्वास्थ्य को बदलने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सहायता से दूर दराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना, जैसे- टेलिमेडिसीन, आसा कार्यकर्ताओं द्वारा मोबाईल का उपयोग कर रियल टाईम आधार पर केन्द्रीय सर्वर को जानकारी देना, इसके साथ ही स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मोबाईल एपलीकेशन की सहायता से प्रशिक्षण देना आदि । अतः सरकार को सामाजिक न्याय की जिम्मेदारी लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को एक रोल मॉडल के तौर पर स्थापित करना चाहिए और निजी स्वास्थ्य सेवाओं को निर्देशित कर जनमानस को स्वास्थ्य के उच्च जोखिम से बचाया जाना चाहिए है।
2. घटते हुए प्राकृतिक संसाधन और समाधान- प्राकृतिक संसाधन एक ऐसी प्राकृतिक और मानवीय सम्पदा है जिसका उपयोग हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करते हैं, जैसे- चुम्बकीय, गुरुत्वीय, विद्युतीय गुण वाले संसाधन तथा पृथ्वी में सूर्य के प्रकाश, वायुमंडल, जल, थल (सभी खनिजों सहित ) के साथ-साथ फल, सब्जी और पशुओं के जीवन से प्राप्त पदार्थ आदि प्राकृतिक संसाधनों की सूची में शामिल हैं। इनके बचाव के लिए निम्न कदम उठाये जा सकते हैं
> वनों की कटाई को नियंत्रित करना क्योंकि इसके द्वारा न केवल मनुष्य को भोजन की प्राप्ति होती है बल्कि इससे हमें भूजल का स्तर भी उच्चा बनाए रखने में मदद मिलती है इसके साथ ही यह भूमि क्षरण की समस्या को भी कम करता है। इस समस्या के लिए REDD और REDD + जैसे कई कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के द्वारा चलाए जा रहे हैं।
> खनिज तेल, और उससे उत्पन्न अन्य उत्पादों की खपत को कम करना – पैट्रोलियम तेल तथा उसकी रिफाईनींग की प्रक्रिया में बने पदार्थ पर्यावरण निम्नीकरण के कारण बनते हैं। इसके लिए अक्षय ऊर्जा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा 2022 तक 40% कुल बिजली खपत का अक्षय ऊर्जा के माध्यम से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
> ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का अधिक अन्वेषण और उपयोग।
> आर्द्र भूमि तथा तटीय पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करना, मैंगरोव को लगाकर व उन्हें संरक्षण देकर इससे एक ओर चक्रवातों से तटीय क्षेत्र की रक्षा होती है तो दूसरी ओर जैव विविधता के संरक्षण में भी सहायक होते हैं।
> इसके अलावा जनता में जागरूकता फैलाकर तथा 4R सिद्धान्त को अपना कर संसाधनो को क्षरण से बचाया जा सकता है। 4R का मतलब है-रि-ड्यूस, रि-युज, रि- साईकल और रि-स्टोर ।
3. घटती कृषि भूमि – समस्या और समाधान – भारत में कृषि भूमि के ह्रास के प्राकृतिक व मानवीय दोनों कारण हैं परन्तु इसमें मानवीय कारण अधिक हैं। 1970-71 में 71 मिलियन कृषि जोतों की संख्या थी जो 2015-16 में बढ़कर 145 मिलियन हो गई परन्तु औसत जोत का आकार 2.28 हेक्टेयर से घटकर 15-16 में 1.08 हेक्टेयर रह गया। इसके कारण निम्नलिखित हैं –
> कृषि भूमि का पैतृक सम्पत्ति के रूप में बंटवारा।
> कृषि भूमि का शहरीकरण के विस्तार में उपयोग।
> कई प्राकृतिक कारण भी हैं जैसे बाढ़, भूस्खलन, रेगिस्तान का विस्तार तथा जल द्वारा मृदा क्षरण आदि।
इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित कदम अपनाए जा सकते है –
1. किसान केन्द्रीत कृषि विकास सुनिश्चित करने के लिए अच्छी गुणवत्ता और कुशलता के लिए समेकन के प्रयास किए जाने चाहिए।
2. सहकारी कृषि सहकारी कृषि एक ऐसी विधि है जिसमें किसान आपसी लाभ के लिए कृषि के कुछ क्षेत्रों में अपने संसाधनों को जमा करते हैं। इसके लिए किसानों को सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा जागरूक करने में सहायता करनी चाहिए।
3. भारत में एक मजबूत और प्रभावी पंचायती राज प्रणाली है जो विकासात्मक परियोजनाओं के लिए एक संस्थागत मंच है जहां पंचायतों द्वारा इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है।
4. हमें विकास और पर्यावरण के बीच तालमेल बनाना पड़ेगा क्योंकि शहरीकरण का विस्तार पर्यावरण को ताक पर रखकर नहीं किया जा सकता।
इसके साथ ही हमें प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने लिए कई कदम उठाने की जरूरत है। जैसे- नदी जोड़ो परियोजना आदि तथा कृषि भूमि का विस्तार कर हम इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं, जैसे- बंजर भूमि को तकनीकी के माध्यम से सुधारकर तथा सिंचित क्षेत्र को बढ़ाकर |
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