विज्ञान शिक्षण में मस्तिष्क उद्दोलन प्रविधि का क्या उपयोग है?

विज्ञान शिक्षण में मस्तिष्क उद्दोलन प्रविधि का क्या उपयोग है?

उत्तर— विज्ञान शिक्षण में ब्रेन स्टोमिंग (मस्तिष्क उत्प्लावन) यह शिक्षण विधि समस्या प्रधान है। यह विधि विद्यार्थियों को ज्ञान अन्तःक्रिया के द्वारा देने का समर्थन करती है। ज्ञानात्मक पक्ष का उच्चतम विकास इस विधि के द्वारा ही सम्भव है। प्रत्येक विद्यार्थी के सम्मुख एक समस्यात्मक परिस्थिति होती है, जिसका मौलिक समाधान वह शिक्षक की सहायता से ढूँढता है। समूह में सभी विद्यार्थी अपने सुझाव प्रस्तुत करते हैं। यह एक जनतांत्रिक विधि है। डॉ. सक्सेना एवं ओबेरोय ने लिखा है कि ब्रेन स्टोमिंग एक जनतांत्रिक विधि है। यह विधि इस सिद्धांत पर आधारित है कि विद्यार्थियों को अन्तःक्रिया द्वारा अधिक से अधिक ज्ञान दिया जा सकता है। अतः इस विधि का प्रयोग करते समय ऐसे साधनों की सहायता ली जा सकती है जो किसी समस्या के समाधान हेतु कक्षा के सभी विद्यार्थी चिंतन करते हैं, विचार करते हैं तथा कार्य करते हैं। इससे उनमें जहाँ एक ओर सहयोग, नम्रता, सहानुभूति सहनशीलता तथा समाज सेवा आदि अनेक सामाजिक गुण विकसित होते हैं। वहीं दूसरी ओर उन्हें अपने-अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का ज्ञान भी सरलतापूर्वक हो जाता है। संक्षेप में यह पद्धति विद्यार्थियों को जनतांत्रिक ढंग से रहने के लिए तैयार करती है।
डॉ. आर. ए. शर्मा ने ब्रेन स्टॉर्मिंग के विषय में बताया है कि यह शिक्षण रचना कौशल पूर्ण रूप से प्रजातांत्रिक है। इसकी धारणा यह है कि एक व्यक्ति की अपेक्षा उनका समूह अधिक विचार दे सकता है। इस शिक्षण प्रविधि का प्रारूप समस्या केन्द्रित होता है। इसमें छात्रों को समस्या दे दी जाती है। और उनसे कहा जाता है कि वे समस्या पर वाद-विवाद करें और जो विचार उनके मस्तिष्क में आएँ, उन्हें प्रस्तुत करने का प्रयास करें। यह आवश्यक नहीं है कि उनके सभी विचार सार्थक ही हों। इस प्रकार समूह को प्रोत्साहित किया जाता है और समूह समस्या का विश्लेषण, संश्लेषण तथा मूल्यांकन करता है। –
bl_f{kk jpuk d Sky (strategy) का आधार शैक्षिक तथा मनोवैज्ञानिक दोनों ही हैं। ब्रेन स्टोमिंग का संबंध भावात्मक पक्ष के निम्न तथा उच्च स्तर के उद्देश्यों से है। इसको ज्ञानात्मक पक्ष के उच्च स्तर के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है। इसमें मूल्यांकन के लिए सृजनात्मक परीक्षाएँ अधिक सार्थक तथा उपयोगी होती हैं क्योंकि इसकी शिक्षण परिस्थितियों में सृजनात्मक क्षमताओं के विकास के लिए अधिक अवसर दिये जाते हैं।
इस विधि में एक व्यक्ति प्रश्नाधिपति (Question Master) बन जाता है तो समस्यात्मक प्रश्न प्रस्तुत करता है। प्रश्नाधिपति का चयन शिक्षक वर्ग में से उसकी योग्यता के आधार पर किया जाता है। वह ऐसा अध्यापक हो जो अध्ययनशील, ज्ञानी तथा अपने विषय का पर्याप्त आधुनिकतम तथा विविधतापूर्ण ज्ञान रखता हो तथा जिसको उत्तर देने की कला हो, जिसमें विचार प्रस्तुतीकरण की क्षमता हो। इस हेतु उन्हें एक दल के रूप में परस्पर सहयोग करते हुए कार्य करना चाहिए । प्रश्नाधिपति बने व्यक्ति का दायित्व है कि वह अपने विचार श्रोता छात्रों के मध्य स्पष्ट रूप से रखे।
इस रचना कौशल से छात्रों का मानसिक उद्योलन होता है, किन्तु इसके अधिक अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं हो पाते हैं, क्योंकि भारत जैसे देश में जहाँ शिक्षा पूरी तरह परीक्षा केन्द्रित है वहाँ यह विधि अधिक सफल नहीं हो पाती है। इसमें एक कठिनाई यह भी है कि पाठ्यक्रमानुसार शिक्षण नहीं हो पाता है। पाठ्यक्रम में अनेक वस्तु ऐसी होती हैं जिस पर किसी प्रकार की परिचर्चा करना संभव नहीं होता है। अतः यह कहा जा सकता है कि यह विधि मानसिक शक्तियों के विकास के लिए उपयोगी है किन्तु इससे वास्तविक शिक्षण कठिन है।
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