विद्यालय के बाहर ज्ञान के स्रोत पर एक निबंध लिखिए।

विद्यालय के बाहर ज्ञान के स्रोत पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर— विद्यालय के बाहर ज्ञान– विद्यालयी ज्ञान के अतिरिक्त विद्यालय से बाहर भी बालक अपने परिवार, समाज एवं पर्यावरण में अनेक क्रियाओं के माध्यम से ज्ञान का अर्जन करता है। इस ज्ञान का क्षेत्र विद्यालयी ज्ञान के क्षेत्र से व्यापक होता है क्योंकि विद्यालय में बालक निश्चित समय के लिये उपस्थित रहता है जबकि समाज एवं परिवार में उसका अधिक समय व्यतीत होता है। विद्यालय के बाहर ज्ञान के स्वरूप, आयाम एवं विशेषताओं को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) अनौपचारिक व्यवस्था– विद्यालय के बाहर प्राप्त ज्ञान की व्यवस्था पूर्णतः अनौपचारिक होती है। इस व्यवस्था में बालक किसी भी समय किसी भी रूप में ज्ञान प्राप्त कर सकता है; जैसे- एक बालक सर्वप्रथम अपने घर में पालतू गाय को देखता है तो वह उसके रंगरूप एवं आकार के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है । धीरे-धीरे बड़ा होने पर वह गाय की उपयोगिता के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। इसी प्रकार अनेक वस्तुओं के सन्दर्भ में ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया सम्पन्न होती रहती है।
(2) क्रमबद्धता का अभाव– बैव विद्यालयी ज्ञानात्मक व्यवस्था के अन्तर्गत अर्थात् विद्यालय के बाहर ज्ञान प्राप्ति में क्रमबद्धता का अभाव पाया जाता है। इस व्यवस्था में बालक अपनी रुचि के अनुसार विषयों की ओर आकर्षित होता है तथा ज्ञान प्राप्त करता हैं; उदाहरणार्थ, एक बालक मेले में जाकर विभिन्न वस्तुओं का अवलोकन करता है परन्तु जो वस्तु उसको रुचिकर लगती है उसके समक्ष जाकर ही वह ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है तथा उसके संदर्भ में जानकारी एकत्रित करता है।
(3) विशेष पाठ्यक्रम का अभाव– विद्यालय के बाहर की ज्ञानात्मक व्यवस्था में विशेष पाठ्यक्रम की व्यवस्था नहीं होती है वरन् स्वाभाविक रूप से बालक जो कुछ भी सीखता है उसको ही पाठ्यक्रम के रूप में स्वीकार किया जाता है। उदाहरणार्थ: एक बालक भाषायी ज्ञान के अन्तर्गत जो कुछ भी शब्दोच्चारण करता है, वह ही उसका नियम एवं पाठ्यक्रम मान लिया जाता है। इसके लिये परिवार वाले किसी निश्चित पाठ्यक्रम या नियम का पालन नहीं करते हैं ।
(4) विशेष शिक्षण विधियों का अभाव– विद्यालय के बाहर ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया में किसी विशेष शिक्षण विधि का अनुकरण नहीं किया जाता क्योंकि इसमें बालक के लिये कोई निश्चित एवं विशेष नियमों का निर्धारण नहीं होता। बालक अपनी रुचि के अनुसार सीखता है तथा अभिभावक भी बालकों के रुचि के अनुसार उसको ज्ञान प्रदान करने का प्रयास करते हैं। सामान्य रूप से विद्यालय से बाहर ज्ञान प्रदान करने में व्याख्यान विधि एवं प्रश्न प्रविधि का प्रयोग किया जाता है।
(5) स्तरानुकूल ज्ञान का अभाव– विद्यालय के बाहर जो भी ज्ञान छात्रों को प्राप्त होता है उसमें बालक के स्तर एवं योग्यता का ध्यान नहीं रखा जाता है। ज्ञान प्रदान करने वाले ने जो भी अपने मानदण्ड निर्धारित किये हैं, वह उसके अनुरूप ही ज्ञान प्रदान करता है। उसमें किसी बालक के अनुसार कोई परिवर्तन नहीं करता हैं। उदाहरणार्थ- जब विद्यालय के बाहर किसी विषय पर विद्वानों द्वारा अपने विचार प्रस्तुत किये जाते हैं तो उनके विचार प्रस्तुतीकरण का क्रम एक समान होता है।
(6) विशेष प्रक्रिया का अभाव– विद्यालय के बाहर की ज्ञानात्मक व्यवस्था में किसी विशेष प्रक्रिया का अनुकरण नहीं किया जाता हैं। यह ज्ञानात्मक व्यवस्था एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में सम्पन्न होती है। उदाहरणार्थ- समाज एवं परिवार में बालक को सामान्य रूप से ज्ञान प्रदान करने की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से चलती है। उसके लिये किसी विशेष व्यवस्था का आयोजन नहीं किया जाता है और न ही इसके लिये किसी विशेष नियम का अनुकरण किया जाता है।
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