सम्प्रेषण प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं व उन्हें दूर करने की विधियों के बारे में बताइये।

सम्प्रेषण प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं व उन्हें दूर करने की विधियों के बारे में बताइये। 

                          अथवा

संप्रेषण में कौन-कौनसी बाधाएँ आती है ?
उत्तर— सम्प्रेषण में उत्पन्न होने वाली बाधाओं को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है—
(1) भौतिक बाधाएँ– इसके अन्तर्गत अदृश्यता, लापरवाही रोग, शोरगुल, भौतिक एवं वायुमण्डलीय अव्यवस्था ।
(2) भाषात्मक बाधाएँ– इसमें वाचकता शब्दाडम्बर एवं अस्पष्ट चिह्न सम्मिलित हैं ।
(3) अपरिपक्व मूल्यांकन– कुछ मनुष्यों में यह प्रवृत्ति होती है कि वे सम्पूर्ण सन्देश को सुनने से पूर्व ही निर्णय कर लेते हैं। इसे अपरिपक्व मूल्यांकन कहा जाता है।
(4) अगणित चैनल– वर्तमान युग में, अनेक रेडियो एवं दूरदर्शन चैनल प्रचलित हैं, जिनकी आवृत्ति थोड़ी बहुत समरूप होती है। यह भी सम्प्रेषण में बाधा का कारण होती है, जिसके परिणामस्वरूप कोई भी चैनल शुद्ध एवं स्पष्ट रूप से सुनाई या दिखाई नहीं देता। इससे सम्प्रेषण बहुत अव्यवस्थित हो जाता है ।
(5) परिवर्तन का विरोध– प्राचीन मनुष्यों में प्राचीन स्थिति बनाए रखने एवं नवीन परिवर्तन के प्रति विरोध की भावना होती है। परिणामत: जब कुछ नवीन विचारों को किसी प्रकार का परिवर्तन उत्पन्न करने के लिए संचारित किया जाता है तो यह संभावना हो जाती है कि इनका विरोध होगा या इन्हें उपेक्षित कर दिया जाएगा।
(6) संगठनात्मक रचना की बाधाएँ– यदि रचनाएँ जटिल हैं, जिसमें प्रबन्ध की अनेक परतें सम्मिलित हैं, वह सम्प्रेषण अव्यवस्थित या बिखर जाता है । यह एक स्थापित तथ्य है कि प्रत्येक परत, सूचना का कुछेक भाग अवश्य कम करती है।
(7) पृष्ठभूमि की जटिलताएँ– जटिलताओं के इस समूह में अधोलिखित जटिलताएँ सम्मिलित होती हैं — पूर्व शिक्षा, सांस्कृतिक असमानता एवं कार्य का पूर्व वातावरण ।
(8) भावनात्मक / मनोवृत्ति– जब भावनाएँ शिखर पर होती हैं तो यह ज्ञात करना कठिन होता है कि अन्य मनुष्यों या समूहों की मनोदशा क्या है ? भावनाओं की आँधी/अन्य की भावनाओं को अपने साथ ले जाती है।
(9) वैयक्तिक बाधाएँ– वैयक्तिक कारक, जैसे कि सामाजिक मूल्य विचारों में अन्तर, तुच्छ भावना, पक्षपात, समय का बोझ आदि, सम्प्रेषण को प्रभावित करते हैं ।
(10) मनोवैज्ञानिक बाधाएँ– इस समूह के अन्तर्गत ईर्ष्या, अरुचि, लापरवाही, अपूर्णता, अनुभवों की अज्ञानता, चिन्तन एवं अपूर्ण जिज्ञासा सम्मिलित हैं ।
(11) अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में सम्प्रेषण की बाधाएँ– अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण सम्प्रेषण बाधाओं से ओत-प्रोत है। उदाहरणात विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों एवं सदाचार नियमों आदि में भिन्नता का होना। विभिन्न संस्कृतियों में रंगों के विभिन्न अर्थ होते हैं। जैसे कि पाश्चात्य देशों में काला रंग ‘शोक’ से सम्बन्धित करते हैं ।
(12) अन्य बाधाएँ– इनके अन्तर्गत निम्नांकित बाधाएँ सम्मिलित हैं—
(1) धारणाओं की अस्पष्टता ।
(2) सम्प्रेषण योग्यता का अभाव ।
(3) योजनाबंदी का अभाव ।
(4) अविश्वास, धमकी एवं भय ।
(5) सम्प्रेषण की अधिकता ।
(6) अधिक ज्ञान सम्बन्धी भ्रम ।
सम्प्रेषण की बाधाओं को रोकने की विधियाँ—
(1) भौतिक बाधाओं को नियंत्रित करने के लिए—
(a) वातावरणी सुविधा प्रदान करना ।
(b) दृश्य एवं श्रव्य को विश्वसनीयता प्रदान करना ।
(c) कक्षाओं की गूंज को कम करना।
(d) दृश्य एवं श्रव्य बाधाओं को कम करना ।
(e) बैठने के लिए उचित प्रबन्ध करना।
(2) उत्तम प्रबन्धकीय संरचना– यह प्रयास करना चाहिए कि सूचना प्रदान करने के लिए निश्चित की गई दूरी को कम किया जाए।
(3) ‘पृष्ठभूमि’ सम्बन्धी बाधाओं को दूर करना—
(a) अधिगम में सुधार उत्पन्न करना ।
(b) विभिन्न विधियों एवं स्रोतों का प्रयोग करना ।
(c) वैयक्तिक पृष्ठभूमि के ज्ञान का प्रयास करना।
(d) सन्देश के महत्त्व की व्याख्या करना ।
(4) ‘भाषा’ सम्बन्धी बाधाओं को दूर करना—
(a) सम्प्रेषण की विभिन्न एवं नवीन विधियों का प्रयोग |
(b) दृश्य श्रव्य स्रोतों का प्रभावशाली प्रयोग ।
(c) जहाँ तक सम्भव हो सके, पृष्ठपोषण प्राप्त करना ।
(d) साधारण एवं शुद्ध भाषा का उच्चारण जो श्रोता के मानसिक स्तर के अनुकूल हो ।
(e) चिह्नों एवं प्रतीकों आदि की व्याख्या करना ।
(5) मनोवैज्ञानिक बाधाओं को दूर करना—
(a) श्रोताओं को प्रेरणा एवं उत्साह प्रदान करना ।
(b) उचित पृष्ठपोषण विधियों का प्रयोग ।
(c) सहायता एवं सहानुभूति ।
(d) आनन्ददायी दृश्य – श्रव्य साधनों का प्रयोग ।
(e) धैर्यपूर्वक सुनना एवं अपरिपक्व मूल्यांकन से बचाव |
(f) कर्मचारियों को पूर्व प्रशिक्षण प्रदान करना ।
(g) प्रबन्धक का अपना व्यवहार स्थिर रखना चाहिए।
(h) शारीरिक अंगों का प्रदर्शन मनुष्य को चेहरे के उचित हाव-भाव, स्वर एवं शारीरिक अंगों के उचित संचालन द्वारा, सम्प्रेषण को प्रभावशाली बनाना चाहिए।
(6) पृष्ठपोषण– पृष्ठपोषण द्वारा सम्प्रेषण की प्रभावशीलता का निरीक्षण किया जा सकता है। इसलिए, पृष्ठपोषण को अवश्य उत्साह प्रदान करना चाहिए एवं उसका विश्लेषण करना चाहिए।
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