सीखने को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिये ।

सीखने को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिये । 

उत्तर— सीखने को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Learning)– आधुनिक शिक्षा प्रणाली बाल केन्द्रित है। बालकों को ज्ञान देने हेतु अध्यापकों को विद्यालय में सीखने की अनुकूल परिस्थितियों को जुटाना पड़ता है ताकि वे प्रभावकारी शिक्षण कर सकें। उनके इस प्रभावकारी शिक्षण के लिए यह भी आवश्यक है कि वह अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों तथा दशाओं का भी ज्ञान रखें। अतः अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों के वर्णन निम्नलिखित हैं—

 (1) अभिप्रेरणा ( Motivation)– अधिगम में अभिप्रेरण का विशेष महत्त्व है। कक्षा में छात्रों की मानसिक क्रिया अधिक करने के लिए अभिप्रेरण की आवश्यकता होती है। अत: इससे स्पष्ट होता है कि छात्रों को सीखने के लिए अधिक मानसिक क्रियाओं पर बल देना चाहिए जो शिक्षक अभिप्रेरण के माध्यम से कर सकता है। अतः यदि छात्रों को उचित अभिप्रेरण प्रदान किया जाए तो इन्हें अधिगम सबसे अधिक होगा। शिक्षक शिक्षण अधिगम प्रक्रिया की विधियों का प्रयोग समय तथा । परिस्थिति के अनुसार कक्षा में करता है। ये प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं—

(i) प्रतियोगिता– प्रत्येक छात्र में योग्य तथा बड़ा बनने की भावना उसके मस्तिष्क के किसी भी भाग में छिपी रहती है। प्रतियोगिता के माध्यम से छात्र की इस भावना को जाग्रत कर सकते हैं तथा उसे पढ़ने के लिए तैयार कर सकते हैं। यहाँ ध्यान रखना होगा कि यह अभिप्रेरण छात्रों के सामर्थ्य के अनुसार देना चाहिए ।

 (ii) पुरस्कार व दण्ड– हमेशा यह देखा जाता है कि उचित स्थान पर तथा उचित समय पर प्रशंसा करना लाभकारी सिद्ध होता है। इसके विपरीत अवांछनीय कार्यों के लिए निंदा करना भी वरदान सिद्ध हुआ है। यहाँ ध्यान रखने की बात यह है कि कमजोर तथा पिछड़े लोगों की निन्दा करना उत्साहवर्धक नहीं है। प्रशंसा निन्दा से अधिक उत्साहवर्धक होती है।

उपर्युक्त दोनों ही विधियों से अभिप्रेरणा छात्रों को दी जा सकती है।
(2) उचित वातावरण (Proper Environment)–अधिगम और वातावरण का एक-दूसरे से निकट का संबंध है। यदि स्कूल अथवा परिवार का अच्छा, शान्त, स्नेहपूर्वक तथा रुचिकर वातावरण है तो बच्चा अपने कार्य को शीघ्र सीख लेता है। विद्यालय का वातावरण दूषित वायुमण्डल में है, वहाँ खेलने और मनोरंजन की सामग्री का अभाव है और वहाँ ईर्ष्या, शत्रुता का वातावरण है आदि परिस्थितियों में छात्र उपयुक्त मात्रा में सीख नहीं सकता है।
(3) परिपक्वता (Maturity)– परिपक्वता और अधिगम का अन्तर्सम्बन्ध है, दोनों एक-दूसरे के सहायक तथा बाधक भी हैं। यदि बच्चे शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से परिपक्व हैं तो अधिगम तीव्र गति से होता है। परिपक्वता सीखने में कच्ची सामग्री की तरह अपनी भूमिका प्रदान करती है तथा अभ्यास द्वारा उसका विकास होता है। यदि परिपक्वता से पूर्व सीखना शुरू कर दिया जाए तो समय और शक्ति दोनों ही व्यर्थ जाती हैं। अत: माँ-बाप को यह ध्यान देना चाहिए ।
(4) शारीरिक तथा मानसिक वातावरण (Physical and Mental Environment)– स्वस्थ व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियाँ तथा उसकी बुद्धि ठीक तरह कार्य करती है जबकि इसके विपरीत यदि व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ है तो वह सीखने के प्रति जागरूक नहीं रहते। इसका कारण यह है कि ज्ञानेन्द्रियाँ तथा बुद्धि सीखने की प्रक्रिया में योगदान देती हैं। विद्यालयों में मध्यान्तर में विज्ञान की व्यवस्था, पोषाहार देना, छात्रों में अच्छी आदत डालना, व्यायाम तथा खेलकूद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना तथा विषय अथवा कार्य में परिवर्तन करना आदि उपायों से छात्रों की थकान दूर की जा सकती है।
(5) अध्यापक से सम्बन्धित तथ्य (Factors Related with Teacher )—
(i) अध्यापक की भूमिका– छात्रों के अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। उसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष व्यवहार छात्रों के अधिगम पर पड़ता है। अध्यापक का व्यक्तित्व, उसकी योग्यता, उसके पढ़ाने की विधि तथा उसके गुणों की छाप छात्रों की रुचि को प्रभावित करती है। कई बार यह देखा गया है कि यदि अध्यापक ठीक तरह से नहीं पढ़ाता है तो छात्र को उस विषय से ही नहीं बल्कि उस अध्यापक तथा विद्यालय से भी घृणा हो जाती है।
(ii) अभ्यास– अध्यापक को कक्षा में नया ज्ञान देने से पूर्व यह जानना जरूरी है कि उसने पिछला पाठ याद किया है या नहीं। उसके लिए वह अभ्यास करने की आदत छात्रों में डाले। सीखने की उत्पत्ति में अभ्यास का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। सीखी हुई बातें निरन्तर अभ्यास करने पर दृढ़ हो जाती हैं।
(iii) शिक्षण विधि– अध्यापक की कक्षा में शिक्षण विधि का सम्बन्ध छात्रों के अधिगम से है। यदि वह छात्रों को तैयारी के साथ अच्छी शिक्षण विधि से अध्यापन कार्य कराता है तभी छात्र रुचि के साथ तथ्यों को सीखता है। प्रारम्भिक कक्षाओं में यदि वह छात्रों को क्रियाशील तथा रुचिकर अध्ययन कराना चाहता है तो उसे खेल विधि अपनानी होगी।
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