पाठ्यक्रम निर्माण के वैज्ञानिक आधार को समझाइये ।

पाठ्यक्रम निर्माण के वैज्ञानिक आधार को समझाइये ।

उत्तर— पाठ्यक्रम निर्माण का वैज्ञानिक आधार–वर्तमान युग में विज्ञान का सबसे अधिक महत्त्व है । विज्ञान आज सभ्यता और संस्कृति का पर्याय बन गया है। शिक्षा के क्षेत्र में भी विज्ञान का बढ़ता प्रभाव एवं महत्त्व आसानी से देखा जा सकता है। अधिकतर शिक्षाशास्त्रियों ने पाठ्यक्रम में विज्ञान एवं तकनीकी विषयों को शामिल करने पर बल दिया है जिससे बालक, समाज एवं पूरे देश का वैज्ञानिक दृष्टिकोण बन सके।
“पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक विषयों के महत्त्वपूर्ण स्थान पर बल दिया जाए” इस विचार के प्रमुख प्रतिपादक हरबर्ट स्पेंसर हैं। उन्होंने माना है कि शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य पूर्ण जीवन की तैयारी है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने पाठ्यकम में वैज्ञानिक विषयों के सम्मिलित किए जाने पर बल दिया है। उन्होंने बालकों के अध्ययन के लिए शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, भाषा, गणित, पदार्थ विज्ञान, मनोविज्ञान, सामाजिक विज्ञान, राजनीति शास्त्र व अर्थशास्त्र आदि विषयों की सिफारिश की है।
सामान्यतः विज्ञान के निम्न तीन प्रमुख अंग माने जाते हैं—
(1) भौतिक विज्ञान (2) रसायन विज्ञान (3) जीव विज्ञान ।
शिक्षाशास्त्र का इन तीनों विज्ञानों से गहन सम्बन्ध है तथापि यह भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान से कम तथा जीव विज्ञान से विशेष रूप से सम्बन्धित है । विज्ञान बालकों में चिन्तन की प्रकृति एवं तर्कशीलता को बढ़ाने पर बल देता है । विज्ञान ही शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से समाधान करता है। विज्ञान ही शिक्षा जगत् के सिद्धान्तों के प्रतिपादन के लिए आधार प्रस्तुत करता है ।
वर्तमान समय में विज्ञान विषय के शिक्षण की आवश्यकता इतनी वृहद् है कि भारत सरकार द्वारा नियुक्त लगभग सभी आयोगों ने विज्ञान एवं तकनीकी विषयों के पाठ्यक्रम में लाए जाने की बात कही है। यह शिक्षा को विज्ञान की देन ही है जो भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान व तकनीकी विषयों का भी व्यापक प्रसार हुआ है। विज्ञान ने ही प्रशिक्षित वैज्ञानिक एवं तकनीशियन मानव शक्ति में भी व्यापक वृद्धि करी है। यह विज्ञान का ही प्रभाव है कि आज भारत में कृषि शिक्षा हेतु लगभग 20 विश्वविद्यालय एवं 100 से अधिक कॉलेज हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् एवं कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा कृषि क्षेत्र में अनगिनत अनुसंधान किए गए तथा परिणामस्वरूप हरित क्रान्ति, खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, दुग्ध उत्पादन में वृद्धि व कृषि उत्पादन में वृद्धि आदि लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सफलता प्राप्त हुई। आज प्रत्येक जिले में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आई.टी.आई.) तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) की स्थापना की गई है, जिससे इंजीनियरिंग की शिक्षा को बढ़ावा मिला है। चिकित्सा क्षेत्र में भी जहाँ पर 1947 में मात्र 15 मेडिकल कॉलेज थे वहीं आज देश में इनकी संख्या 100 हो गई है। औषधि अनुसंधान संस्थानों ने भी अपने क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया है जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य ने अनेक घातक बीमारियों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया है तथा मनुष्य की औसत आयु में भी वृद्धि हुई है। इस प्रकार विज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं ।
विज्ञान की इसी महत्ता के कारण शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्माण के लिए एक और आधार प्रदान किया है। इस आधार के अनुसार पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक विषयों को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि इस आधार ने शिक्षा को विज्ञान केन्द्रित पाठ्यक्रम प्रदान किया है।
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