भारत के प्रमुख मृदा प्रदेशों की विशेषताओं तथा महत्वपूर्ण फसलों के लिए उनकी उपयुक्तता की विवेचना कीजिए |
भारत के प्रमुख मृदा प्रदेशों की विशेषताओं तथा महत्वपूर्ण फसलों के लिए उनकी उपयुक्तता की विवेचना कीजिए |
( 42वीं BPSC/1999 )
उत्तर– भारत को मुख्यतः छह मृदा प्रदेशों में बांटा गया है- (1) जलोढ़ मृदा – प्रदेश, (2) काली मृदा – प्रदेश, (3) लाल और पीली मृदा-प्रदेश, (4) लैटेराइट मृदा-प्रदेश, (5) शुष्क मृदा – प्रदेश, (6) वन मृदा – प्रदेश।
1. जलोढ़ मृदा-प्रदेश- जलोढ़ मृदाएं भारत के उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पाई जाती हैं। ये मृदाएं देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40% भाग को ढंके हुए हैं। ये निक्षेपण मृदाएं हैं जिन्हें नदियों ने वाहित तथा निक्षेपित किया है। जलोढ़ मृदाएं गठन में बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति वाली पाई जाती हैं। सामान्यः इनमें पोटाश की मात्रा अधिक और फॉस्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है। निम्न तथा मध्य गंगा के मैदान और ब्रह्मपुत्र घाटी में ये मृदाएं अधिक दोमटी और मृण्मय हैं। पश्चिम से पूर्व की ओर इनमें बालू की मात्रा घटती जाती है। इस मिट्टी में उत्तरी भारत में सिंचाई के माध्यम से गन्ना, गेहूं, चावल, जूट, तम्बाकू, तिलहनी फसलों तथा सब्जियों का उत्पादन किया जाता है।
2. काली मृदा – प्रदेश – काली मृदाएं दक्कन के पठार के अधिकतर भाग में पाई जाती है। इसमें महाराष्ट्र के कुछ भाग, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल हैं। इन मृदाओं को रैगर तथा कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है। नमी की धीमे अवशोषण की प्रवृत्ति जैसी विशेषता के कारण काली मृदा में एक लंबी अवधि तक नमी बनी रहती है। रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूना, लौह, मैग्नीशिया, ऐलुमिना के तत्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इनमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और जैव पदार्थों की कमी होती है। काली मिट्टी वाले प्रदेश कपास की खेती के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
3. लाल और पीली मृदा – प्रदेश – लाल-पीली मृदा का विस्तार छोटानागपुर पठार, उड़ीसा, पूर्वी मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु में हैं। इस मृदा का लाल रंग रवेदार तथा कायांतरित चट्टानों में लोहे के व्यापक विसरण के कारण होता है। जलयोजित होने के कारण यह पीली दिखाई देती है। महीन कणों वाली लाल-पीली मृदाएं सामान्यतः उर्वर होती हैं। इसके विपरीत मोटे कणों वाली उच्च भूमियों की मृदाएं अनुर्वर होती हैं। इनमें सामान्यत: नाइट्रोजन, फॉस्फोररस और ह्यूमस की कमी होती है। यह प्रदेश रागी, तम्बाकू, सब्जियों व चावल की खेती के लिए उपयुक्त है।
4. लैटेराइट मृदा – प्रदेश – लैटेराइट एक लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ ईट होता है। लैटेराइट मृदाएं उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं। उच्च तापमानों में आसानी से पनपने वाले जीवाणु ह्यूमस की मात्रा को तेजी से नष्ट कर देते हैं। इन मृदाओं में जैव पदार्थ नाइट्रोजन, फॉस्फेट और कैल्शियम की कमी होती है तथा लौह ऑक्साइड और पोटाश की अधिकता होती है। परिणामस्वरूप लैटेराइट मृदाएं कृषि के लिए पर्याप्त उपजाऊ नहीं हैं। फसलों को उपजाऊ बनाने के लिए इन मृदाओं में खाद और उर्वरकों की भारी मात्रा डालनी पड़ती है। तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और केरल में काजू जैसे वृक्षों वाली फसलों की खेती के लिए लाल लैटेराइट मृदाएं अधिक उपयुक्त हैं। ये कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश तथा उड़ीसा और असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
5. शुष्क मृदा – प्रदेश – शुष्क मृदाएं विशिष्ट शुष्क स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान में अभिलाक्षणिक रूप से विकसित हुई हैं। इसकी संरचना बलुई और प्रकृति लवणीय होती है। शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और तीव्र गति से वाष्पीकरण के कारण इन मृदाओं में नमी और ह्यूमस कम होते हैं। इनमें नाइट्रोजन अपर्याप्त और फॉस्फेट सामान्य मात्रा में होती है। ये अनुर्वर हैं, क्योंकि इनमें ह्यूमस और जैव पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं।
6. वन मृदा – प्रदेश – वन मृदा पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्रों में बनती है। पर्यावरण में परिवर्तन के अनुसार इन मृदाओं का गठन और संरचना बदलती रहती है। घाटियों में ये दोमट प्रकृति वाली होती हैं। वन मृदा हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है। यह मृदा फल, मसाले, कॉफी, चाय की खेती के लिए उपयुक्त है।
• भारत के मृदा-प्रदेश ( 6 ) –
(i) जलोढ़ मृदा – प्रदेश
> क्षेत्र – उत्तरी मैदान, नदी घाटियों के विस्तृत भाग में ( 40% )
> रासायनिक संगठन – पोटाश की मात्रा अधिक एवं फास्फोरस की मात्रा कम
> फसल – गन्ना, गेहूं, चावल, जूट, तम्बाकू, तिलहन
(ii) काली मृदा – प्रदेश
> क्षेत्र – दक्कन का पठार (महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु के कुछ प्रदेश )
> रासायनिक संगठन- चूना, लौह, मैग्नीशिया, ऐलूमिना की उच्च मात्रा, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, जैव पदार्थों की कमी
> फसल- कपास
(iii) लाल और पीली मृदा – प्रदेश –
> क्षेत्र – छोटानागपुर पठार, उड़ीसा, पूर्वी मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु
> रासायनिक संगठन – लोहे की उच्च मात्रा, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, एवं ह्यूमस की कमी
> फसल – रागी, तंबाकू, सब्जियां, चावल
(iv) लैटेराइट मृदा-प्रदेश
> क्षेत्र – कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, असम के पहाड़ी क्षेत्र
> रासायनिक संगठन – लौह-ऑक्साइड एवं पोटाश की अधिकता, जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, कैल्शियम की कमी
> फसल- काजू
(v) शुष्क मृदा – प्रदेश
> क्षेत्र – पश्चिमी राजस्थान
> रासायनिक संगठन संरचना बलुई, प्रकृति लवणीय, नाइट्रोजन की कमी, फॉस्फेट सामान्य
> फसल – अनुर्वर
(vi) वन मृदा – प्रदेश
> क्षेत्र – हिमालयी क्षेत्र
> रासायनिक संगठन – पर्यावरण परिवर्तन के कारण मृदा संगठन में भिन्नता ।
> फसल-फल, मसाले, कॉफी, चाय
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