जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) – टिप्पणी लिखें |

जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) – टिप्पणी लिखें |

(40वीं BPSC/1995 )
उत्तर – जेनेटिक इंजीनियरिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके सहयोग से किसी एक प्रजाति के जीव-जंतुओं के आनुवंशिक गुणों के वाहक जीन का संलयन अथवा प्रत्यारोपण अन्य प्रजाति के जीव-जंतुओं में किया जाता है। इस प्रकार पुनः संयोजित D.N.A. (Recombinant D.N.A.) के रूप में इच्छित जीन प्राप्त होता है। पुनः संयोजित D.N.A. तकनीक के द्वारा एक या एक से अधिक जीनों से युक्त D.N.A. को एक कोशिका से निकालकर दूसरी कोशिका के D.N.A. में जोड़ दिया जाता है। जेनेटिक अभियांत्रिकी द्वारा जीवों के जेनेटिक आधार में परिवर्तन अथवा संशोधन कर जीवों के गुणों, जैसे- उनके आकार, रूप, रंग आदि में भी परिवर्तन लाया जा सकता है। इस तकनीक का विकास कर मानव पूर्णतः नवीन प्रकार के जीवों के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में भी किया जा रहा है। भारत में भी जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रयोग कर एड्स, हीमोफीलिया, मलेरिया आदि के टीके विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
कई बीमारियों का कारण जीन के स्तर पर होने वाली खराबियां हैं। इनका उपचार परंपरागत चिकित्सा पद्धति से करना संभव नहीं होता है। अतः इस दिशा में जेनेटिक इंजीनियरिंग के प्रयोग के लिए अनुसंधान चल रहे हैं। पुनः संयोजित D.N.A. तकनीक से अनेक लाभकारी अनुसंधान को बल मिला है। इंटरफेरोन, इन्सुलिन, हारमोन आदि जैसे चिकित्सीय प्रोटीनों का उत्पादन करने की दिशा में पुनः संयोजित D.N.A. विधि प्रभावकारी हो सकती है।
> जेनेटिक इंजीनियरिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके सहयोग से किसी एक प्रजाति के जीव-जंतुओं के जीन का संलयन अथवा प्रत्यारोपण अन्य प्रजातियों के जीव-जंतुओं में किया जाता है।
> जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा जीवों के जेनेटिक आधार में परिवर्तन अथवा संशोधन कर जीवों के गुणों-आकार, रूप, रंग आदि में भी परिवर्तन लाया जा सकता है।
> इसका प्रयोग एड्स, हीमोफीलिया, मलेरिया आदि के टीके विकसित करने के लिए किया जा रहा है।
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