भारत का उपग्रह प्रक्षेपण विकास कार्यक्रम (Satellite Launch Development Programme of India)

भारत का उपग्रह प्रक्षेपण विकास कार्यक्रम (Satellite Launch Development Programme of India)

भारत में प्रक्षेपण यानों के विकास के कार्यक्रम की शुरुआत 1970 के दशक के प्रारंभ में हुई। प्रथम प्रायोगिक प्रक्षेपण यान ‘एसएलवी-3’ को वर्ष 1979 में प्रक्षेपित किया गया। इसके एक संवर्धित संस्करण, एएसएलवी-डी3 का प्रमोचन 1992 में सफलतापूर्वक किया गया। उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) और भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) के संचालन के साथ भारत ने प्रमोचन यान प्रौद्योगिकी में शानदार प्रगति की है। ध्यातव्य है कि ‘इसरो’ वायुमंडलीय अनुसंधान और अन्य वैज्ञानिक खोजों के लिये भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय के सहयोग से ‘पेलोड’ के प्रक्षेपण के लिये प्रयुक्त रोहिणी श्रृंखला के साउंडिंग रॉकेटों का भी निर्माण करता है।
भारत के उपग्रह प्रक्षेपण अभियान के मुख्यतः दो दौर थे। वर्ष 1979-80 में आरंभ हुआ पहला दौर एक्सपेरिमेंटल था, जिसमें एसएलवी-3 और एएसएलवी कार्यक्रम की मदद संपूर्ण रॉकेट डिज़ाइन, मिशन डिज़ाइन, ठोस प्रणोदन प्रौद्योगिकी, हार्डवेयर आदि क्षमताओं का विकास हुआ, जबकि दूसरा दौर ऑपरेशनल था। इस दौर में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) तथा भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) का विकास किया गया।
भारत के उपग्रह प्रक्षेपण अभियान (Satellite Launch Missions of India)
उपग्रह प्रक्षेपण यान (Satellite Launch Vehicle-SLV)
भारत में उपग्रह प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास का कार्यक्रम वर्ष 1979 में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निर्देशन में आरंभ हुआ। उपग्रह प्रक्षेपण यान-3 (एसएलवी-3) भारत का पहला प्रायोगिक उपग्रह प्रक्षेपण यान था। इसे 18 जुलाई, 1980 को सफलतापूर्वक शार केंद्र, श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित कर रोहिणी उपग्रह, आरएस-1 को कक्षा में स्थापित किया गया। इससे पहले अगस्त 1979 में वी-3 की पहली प्रयोगात्मक उड़ान केवल आंशिक रूप से सफल हुई थी। एसएलवी-3, 22 मी. ऊँचा, 17 टन वज़न का चार चरण वाला प्रक्षेपण यान था तथा इसके चारों चरणों में ठोस ईंधन का प्रयोग होता था। यह 40 किग्रा. भार वाली श्रेणी के पेलोड को पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित करने में सक्षम था।
संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (Augmented Satellite Launch Vehicle-ASLV)
एएसएलवी-3 के प्रक्षेपण के बाद भारत ने संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित करने की कोशिशें प्रारंभ की। इसके अंतर्गत चार विकासात्मक उड़ानें आयोजित की गईं।
पहली विकासात्मक उड़ान 24 मार्च, 1987 को और दूसरी 13 जुलाई, 1988 को संपन्न की गई, जो विफल रहीं।
20 मई, 1992 को एएसएलवी-D3 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर SROSS-C (106 किग्रा.) को अंतरिक्ष कक्षा में स्थापित किया गया।
यह पाँच चरणों वाला प्रक्षेपण यान था, जो ठोस ईंधन से चलता था। 4 मई, 1994 को प्रक्षेपित एएसएलवी-D4 ने SROSS-C2 को कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया।
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV)
उपग्रह प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास का उच्च स्तर पीएसएलवी के साथ शुरू हुआ। इसके प्रक्षेपण का पहला प्रयास वर्ष 1993 में पीएसएलवी-D1 के रूप में हुआ, लेकिन चौथे चरण में खराबी आने के कारण यह प्रयोग विफल रहा। अंततः वर्ष 1994 में पीएसएलवी-D2 द्वारा आईआरएस-P2 को सफलतापूर्वक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया।
यह चार चरण वाला रॉकेट होता है जिसके पहले तथा तीसरे चरण में ठोस तथा दूसरे व चौथे चरण में द्रव ईंधन का प्रयोग किया जाता है। ‘तरल नोदन प्रणाली’, इसे किसी भी बिंदु पर नियंत्रित करने में सहायक होती है।
पीएसएलवी 1750 किग्रा. भार तक के उपग्रहों को 600 किमी. की ऊँचाई पर सूर्य तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा में प्रक्षेपित करने में सक्षम है। इसके अलावा यह 1425 किग्रा. तक भार के उपग्रहों को भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में प्रमोचित करने में भी सक्षम है। पीएसएलवी की विश्वसनीयता उत्कृष्ट है और इसरो वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियों में इस है प्रक्षेपण यान के मामले में विशेषज्ञ का दर्जा हासिल कर चुका है।
नोट: PSLV को सतत रूप से आई.आर.एस. सीरीज़ के विभिन्न उपग्रहों को निम्न भू-कक्षा में स्थापित करने के कारण ‘वर्कहॉर्स ऑफ इसरो’ का खिताब दिया गया है।
PSLV के संस्करण (Versions of PSLV)
PSLV-G (Generic): यह PSLV का स्टैंडर्ड संस्करण है, जिसमें 4 चरण होते हैं। पहले तथा तीसरे चरण में ठोस, जबकि दूसरे व चौथे चरण में द्रव ईंधन का प्रयोग किया जाता है। साथ ही साथ इसमें 6 Strap-on Boosters भी लगे होते हैं। यह 1550 किग्रा. के नीतभार (Payload) को 600 किमी. की ऊँचाई पर सूर्य तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित कर सकता है।
PSLV-CA(Core-Alone): PSLV के स्टैंडर्ड संस्करण के समान इसमें 6 Strap-on Boosters नहीं लगे होते हैं। प्रथम चरण अधिक शक्तिशाली होता है, जबकि चौथे चरण में स्टैंडर्ड संस्करण से 400 किग्रा. कम द्रव ईंधन होता है। यह 1100 किग्रा. के पेलोड को 600 किमी. की ऊँचाई पर सूर्य तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित कर सकता है।
PSLV-XL(Extra-Large): इसमें स्टैंडर्ड वर्जन की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली 6 Strap-on Boosters लगे होते हैं, ताकि भारी पेलोड के वज़न को सहन किया जा सके। इस कारण इसे ‘PSOM-XL’ (PSLV With Strap-on Motors-XL) भी कहा जाता है। चंद्रयान-1, मंगलयान तथा अन्य भारी उपग्रहों के लिये इसी यान का उपयोग किया गया है। यह 1750 किग्रा. तक के नीतभार को 600 किमी. की ऊँचाई पर सूर्य तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित कर सकता है। साथ ही 1425 किग्रा. के नीतभार को जीटीओ में स्थापित करने में भी सक्षम है।

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