बालकों के विकास में परिवार के योगदान को समझाइये ।

बालकों के विकास में परिवार के योगदान को समझाइये ।

उत्तर– बालकों के विकास में परिवार का योगदान – बालक के सामाजिक विकास में परिवार का बहुत महत्त्व होता है। मानव शिशु ही सभी प्राणियों में ऐसा प्राणी है जो अपने विकास के लिए सबसे अधिक और सबसे लम्बे समय तक परिवार पर निर्भर रहता है। अन्य प्राणी कुछ घण्टों या कुछ दिनों में ही चलना-फिरना आदि अनेक क्रियाएँ स्वतः करना शुरू कर देता है, लेकिन मानव शिशु को चलने-फिरने व अपना कार्य करने में बहुत लम्बा समय लगता है। मानव शिशु के विकास में परिवार का अपना महत्त्व होता है। जैसा कि बालक के विकास के सन्दर्भ में वंशानुक्रम को महत्त्व देने वाले मनोवैज्ञानिक कहते हैं । यह विश्वास बहुत लम्बे समय से चला आ रहा है कि बीज के अनुसार फल और वृक्ष होते है। अर्थात् माता-पिता के अनुसार ही उनकी सन्तान होती है। बालक के विकास में माता-पिता द्वारा सिखाई गई आदतें, मूल्य, विचार, भावनाएँ बहुत अधिक महत्त्व रखती है। परिवार का वातावरण परिवार के सदस्यों के परस्पर सम्बन्ध, परिवार की क्रियाएँ ये सब बालक पर प्रभाव डालती है। इसलिए बालक के विकास में परिवार का बहुत महत्त्व है। वातावरण की दृष्टि से भी जिन मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है उनमें यह पाया गया है कि बालक को जैसा पारिवारिक वातावरण मिलेगा उसका विकास, रुचि, आदत, बुद्धि वैसी ही होगी। माता-पिता का ही यह प्रभाव दिखता है कि बालक की क्रियाएँ उन जैसी ही होती है। अपराधी व दुराचारी माता-पिता की सन्तान भी प्राय: वैसी ही निकली और अच्छे परिवारों की सन्तानें वैसे ही विकसित हुई । यह प्रभाव मातापिता का ही होता है। दोषपूर्ण बालकों के विकास में उनके माता-पिता का योगदान ही ज्यादा होता है ।
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