बिरसा आन्दोलन की विशेषताओं की समीक्षा कीजिए।

बिरसा आन्दोलन की विशेषताओं की समीक्षा कीजिए।
(66वीं BPSC/2021 )
अथवा
जनजातीय संघर्ष एवं इनके कारणों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए बिरसा आंदोलन के तौर-तरीकों का वर्णन करें, इसमें बिरसा की भूमिका एवं खुद को भगवान का दूत घोषित करने से आंदोलन पर पड़े प्रभावों का उल्लेख करें।
> बिरसा आंदोलन (1899-1900)
> 1899 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर विद्रोह का ऐलान
> नेतृत्व में धार्मिक आस्था एवं विश्वास का प्रभाव
>  दिकुओं (गैर-आदिवासियों) की हत्याएं
> फरवरी 1900 में बिरसा गिरफ्तार एवं जेल में मृत्यु
> 1908 में ‘छोटानागपुर रैयतवाड़ी कानून’ पास
उत्तर– बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा जनजाति ने एक तीव्र विद्रोह 1899-1900 में किया। अन्य जनजातीय विद्रोहों की तरह ही यह पूर्णतः हिंसक आंदोलन था। बिरसा ने 1899 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर मुंडा जाति का शासन स्थापित करने के लिए विद्रोह का ऐलान किया एवं उसने ठेकेदारों, जागीरदारों, राजाओं, हाकिमों और ईसाइयों को कत्ल करने का भी आह्वान किया। बिरसा ने घोषणा की कि “दिकुओं (गैर आदिवासी) से अब हमारी लड़ाई होगी और उनके खून से जमीन इस तरह लाल होगी जैसे लाल झंडा ।” इसके बाद जमींदारों, अधिकारियों, व्यापारियों की हत्याएं की गईं, उनके परिवार के बच्चों एवं महिलाओं को भी निशाना बनाया गया।
बिरसा आंदोलन की खास विशेषता थी कि बिरसा ने आंदोलन की सफलता के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं का सहारा लिया। उसने अपने आप को ‘भगवान का दूत’ कहा एवं भगवान से प्राप्त चमत्कारिक शक्ति की खूब चर्चा की। हजारों आदिवासी उसे देखने-सुनने आने लगे और उसके अनुयायी बन गए। उसके औषधिक योग्यताओं के कारण भी लोगों का उसके प्रति विश्वास एवं सम्मान बढ़ गया । बिरसा ने महाप्रलय एवं नवयुग की भविष्यवाणियां की। ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासी अपने मूल धर्म में वापस लौटने लगे। धार्मिक नेतृत्व के कारण उनका विश्वास एवं साहस बढ़ा और वे दुगने साहस के साथ अंग्रेजों से लड़े। लेकिन सिर्फ आस्था एवं साहस के बल पर तकनीकी अथवा आधुनिक हथियारों से लैस दुश्मन से ज्यादा दिनों तक लड़ना संभव नहीं था। विद्रोह कुचल दिया गया एवं फरवरी 1900 ई. में बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया, जहां जेल में ही हैजा बीमारी से बिरसा की मृत्यु हो गई। इस आंदोलन का सकारात्मक प्रभाव यह रहा कि 1908 में ‘छोटानागपुर रैयतवाड़ी कानून’ पास हुआ जिससे जनजातियों को कुछ छूट एवं भूमि संबंधी अधिकार प्राप्त हुए। संयुक्त काश्तकारी व्यवस्था मान्य हो गई एवं बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित कर दिया गया। यह ध्यान रखा गया कि जनजातियों का शोषण न हो। ये लोग भी काफी प्रबुद्ध एवं अपने अधिकारों को लेकर सचेत हो गए। जनजातीय क्षेत्रों में आज भी बिरसा एक वीर योद्धा, देशभक्त एवं भगवान के रूप में प्रसिद्ध हैं और आदिवासियों के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
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