भारत में मोदी सरकार के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों में से प्रमुख है, “गंगा नदी की सफाई, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन तथा घटती जा रही कृषिभूमि और स्वास्थ्य के बढ़ते हुए खतरे।” इन समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक प्रयासों की विवेचना कीजिए, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे।
भारत में मोदी सरकार के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों में से प्रमुख है, “गंगा नदी की सफाई, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन तथा घटती जा रही कृषिभूमि और स्वास्थ्य के बढ़ते हुए खतरे।” इन समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक प्रयासों की विवेचना कीजिए, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे।
अथवा
वर्तमान सरकार के सम्मुख गंगा नदी की सफाई की समस्या, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन तथा घटती जा रही कृषिभूमि एवं स्वास्थ्य के खतरे की चुनौतियों एवं इन समस्याओं से निपटने हेतु वैज्ञानिक प्रयास की चर्चा कीजिए।
उत्तर – स्वास्थ्य, प्राकृतिक संसाधन तथा घटती जा रही कृषिभूमि पर पूर्व प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) ने यद्यपि चर्चा की थी, परन्तु यह चुनौती आज भी बनी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर विस्तृत चर्चा करते हुए इसके लिए कुछ वैज्ञानिक प्रयासों को नियमन किया है ।
1. गंगा नदी की सफाई- गंगा नदी का न सिर्फ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है, बल्कि देश की 40% आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। 2014 में न्यूयार्क में मेडिसन स्क्वायर गार्डेन में भारतीय समुदाय को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, “अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40% आबादी के लिए बड़ी मदद साबित होगी।” इस सोच को कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए “नमामि गंगे” नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया है।
> 2019-2020 तक नदी की सफाई के लिए 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने की केन्द्र की योजना है।
> इस पर विभिन्न मंत्रालयों के बीच एवं केन्द्र-राज्यों के बीच समन्वय को बेहतर करने एवं योजना की तैयारी में सभी की भागीदारी बढ़ाने के साथ केन्द्र एवं राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर करने के प्रयास किए गए हैं।
> प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पहले से ही तैयारी कर चुका है और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद सभी श्रेणी के उद्योगों को एक समय-सीमा दे दी गई है। सभी उद्योगों के गंदे पानी का बहाव के लिए रियल टाइम ऑनलाइन निगरानी केन्द्र की स्थापित करने की बात कही गई है।
‘नमामि गंगे योजना’ के तहत गंगा नदी की सफाई पर वैज्ञानिक तकनीक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। परियोजना को नियत समय-सीमा के भीतर कार्यान्वित करना भी एक चुनौती है। सर्वप्रथम जन-जागरूकता एक कारगर हथियार हो सकता है। शवों को जलाना, कूड़े-कचरे को बहते पानी में विसर्जित करना प्रदूषण का महत्वपूर्ण कारण है। इस पर विद्युत शवादान एवं कूड़े-कचरे का रि-साइक्लिंग होना अति आवश्यक है। नदियों में रासायनिक पदार्थ एवं उद्योग-धन्धे के अपशिष्ट जल को प्रदूषित कर रहे हैं। इस पर सुनियोजित कार्य योजना भी तय करना होगा जिससे इनका वैज्ञानिक निपटान हो सके।
2. स्वास्थ्य के बढ़ते खतरे / वैज्ञानिक प्रयास
> वर्तमान समय में मानव समाज का सबसे बड़ा शत्रु प्रदूषण है। प्रदूषित जल और प्रदूषित आहार-शृंखला मानव स्वास्थ्य हेतु गंभीर खतरा है। स्वास्थ्य की समस्या भी एक गंभीर चुनौती है। ऐसे में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता तथा जैविक कृषि की ओर विशेष रूप से ध्यान देना होगा।
> टेलीमेडिसिन की सुविधा एवं PHC तक पहुंच सभी ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या को सुनिश्चित करना होगा।
> अनेक घातक बीमारियां, जैसे- एड्स, कैंसर, टीबी आदि के बारे में व्यापक जागरूकता बहुत जरूरी है। साथ ही साथ सफाई का ज्ञान भी अति आवश्यक कड़ी में से एक है। इसके बिना अनजाने में ही लोग गंभीर बीमारियों के चपेट में आ जाते हैं ।
> योग भी एक कारगर उपाय है, इसे अपना कर भी स्वास्थ्य के समक्ष उत्पन्न खतरों को कम किया जा सकता है।
3. घटते प्राकृतिक संसाधन के प्रति वैज्ञानिक प्रयास
> भौतिकता के दौर में प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन विश्व के सम्मुख आसन्न संकट को आमंत्रित करता है। संकट करने हेतु ‘धारणीय विकास’ की अवधारणा की ओर बढ़ना होगा।
> ऊर्जा के क्षेत्र में गैर-परंपरागत ऊर्जा, स्रोतों यथा – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा ज्वारीय ऊर्जा आदि का उपयोग पर जोर।
> क्लोनिंग या टिश्यूकल्चर के द्वारा लुप्तप्राय जीवों, पौधों, पशुओं आदि का संरक्षण
> सामाजिक वानिकी एवं कृषि वानिकी पर जोर ।
4. घटती जा रही कृषिभूमि के प्रति वैज्ञानिक प्रयास – मानवीय क्रिया-कलापों यथा- नदी जल परियोजना, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र एवं आवासीय क्षेत्रों हेतु कृषिगत् भूमि का निरन्तर घटना भी वर्तमान सरकार के सम्मुख एक समस्या है। इस हेतु –
> मृदा अपरदन पर रोक के लिए फसल चक्र पद्धति, जैविक कृषि जैसे उपायों पर जोर ।
> शुष्क कृषि, ड्रिप सिंचाई तथा सूखा रोधी बीजों का उपयोग कर शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों एवं रेगिस्तानी इलाकों को कृषि के दायरे में लाना।
> मरुस्थलीकरण की रोकथाम हेतु मरुस्थलों की सीमाओं पर व्यापक वनीकरण को बढ़ावा देना।
निष्कर्षतः इन उपायों को अमल में लाकर प्रश्नांकित समस्याओं से निपटना आसान होगा। आवश्यक है सरकारी उपायों के साथ जनभागीदारी की । विकास होना आवश्यंभावी है, परन्तु भविष्य के आसन्न संकट को ध्यान में रखकर ही। यदि इन संकटों से वर्तमान में नहीं निपटा गया तो संपूर्ण सभ्यता को एक दिन भयानक आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
> स्वास्थ्य के बढ़ते खतरे / वैज्ञानिक प्रयास
> घटते प्राकृतिक संसाधन / के प्रति वैज्ञानिक प्रयास
> घटती जा रही कृषि भूमि / चुनौतियां / के प्रति वैज्ञानिक प्रयास
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