टिप्पणी (प्रत्येक 200 शब्दों में ) – (i) भारत में क्षेत्रीयतावाद (ii) पोटा

टिप्पणी (प्रत्येक 200 शब्दों में ) – (i) भारत में क्षेत्रीयतावाद (ii) पोटा

अथवा

क्षेत्रीयतावाद को समझाते हुए इसके व्यापक नकारात्मक पक्ष एवं प्रभाव को दिखाएं।
उत्तर -(i) भारत में क्षेत्रीयतावाद
भाषा, धर्म, जाति आदि के आधार पर अपने क्षेत्र के प्रति विशेष लगाव तथा दूसरे क्षेत्र को अपने से अलग समझने की प्रवृत्ति जिससे राष्ट्रीय भावना प्रभावित होती हो क्षेत्रवाद है। भारत एक विविधतापूर्ण देश है। यह धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक आदि दृष्टिकोण से बंटा हुआ है। अतः कभी-कभी कुछ राजनीतिक पार्टियां तथा संगठन अपने फायदे के लिए क्षेत्रीयता जैसी संकीर्ण भावनाओं को हवा देते हैं जिससे देश की एकता एवं अखंडता पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
आजादी के पहले अंग्रेजों की नीति के कारण लोगों में क्षेत्रीयता की भावना प्रबल थी। उन्होंने सेना में रेजीमेंटों का निर्माण भी क्षेत्रीयता के आधार पर किया । जैसे- बंगाल रेजिमेंट, सिक्ख रेजिमेंट, मराठा रेजिमेंट आदि। आजादी के बाद दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों ने उत्तर भारत तथा हिन्दी का विरोध कर क्षेत्रीयता की भावना को प्रबल किया। पूर्वोत्तर के राज्यों में क्षेत्रीयता की भावना को प्रबल करने में उल्फा जैसे संगठन काम कर रहे हैं। कश्मीर में कुछ अलगाववादी पार्टियां क्षेत्रीयता की भावना को हवा दे रही हैं। महाराष्ट्र में क्षेत्रीयता की भावना के कारण ही बिहार, उत्तर प्रदेश के लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता रहा है ।
कुछ पार्टियों का गठन क्षेत्रीयता के आधार पर हो रहा है जो निम्नस्तरीय राजनीति कर राष्ट्रीय एकता, अखण्डता एवं इसके बहुआयामी स्वरूप को चोट पहुंचा रहे हैं। भारत में क्षेत्रीयवाद की प्रवृत्ति तेज होती जा रही है। इसका प्रभाव देश की राजनीति तथा आर्थिक विकास पर पड़ रहा है। क्षेत्रीय पार्टियों के प्रभाव के कारण गठबंधन की राजनीति का दौर प्रारंभ हो चुका है जिससे केन्द्र सरकार की कार्य प्रणाली पर असर पड़ा है तथा वह कमजोर एवं भ्रष्ट होती जा रही है।
> क्षेत्रीयता का अर्थ
> देश व सरकार पर प्रभाव
>  इसके विकास के उत्तरदायी
उत्तर – (ii) पोटा
आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधि निरोधक कानून ( टाडा) के स्थान पर केन्द्र की एन.डी.ए. सरकार द्वारा 2001 में पोटा (POTA- Prevention of Terrorism Act.) लाया गया। इसके अंतर्गत सख्त आतंकवाद विरोधी कानून बनाया गया। 23 आतंकवादी गुटों को प्रतिबंधित किया गया तथा आतंकवादी और आतंकवादियों से संबंधित सूचना को छिपाने वालों को भी दंडित करने का प्रावधान किया गया। संदेह के आधार पर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी हो सकती थी तथा बिना आरोप-पत्र के 3 माह से अधिक दिनों तक पुलिस हिरासत में रख सकती थी। पोटा के अन्तर्गत गिरफ्तार व्यक्ति तीन माह बाद ही कोर्ट में अपील कर सकता था। यूपीए (UPA) सरकार ने पोटा को रद्द कर दिया।
यद्यपि पोटा आतंकवाद से सख्ती से निबटने के लिए सरकार का एक प्रभावकारी कदम था। परंतु इसके दुरुपयोग तथा इससे मानवाधिकार उल्लंघन की संभावना काफी ज्यादा थी। इससे किसी निर्दोष व्यक्ति या संस्था को भी इस कानून के दुरुपयोग के द्वारा आतंकवादी या आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता था। इस कानून के अनुसार आतंकवादी की सूचना न देने पर भी सजा का प्रावधान था जिससे निर्दोष लोगों, यथा – पत्रकार, डॉक्टर, समाजसेवी आदि इस कानून के शिकंजे में आ सकते थे। अतः आतंकवाद से संबंधित अन्य कानूनों को मजबूत कर इसे रद्द कर दिया गया।
> ‘टाडा’ के स्थान पर एन.डी.ए. सरकार ने 2001 में आतंकवाद विरोधी कानून पोटा (POTA – Prevention of Terrorism Act.) लाया।
> आतंकवाद से निबटने का यह एक प्रभावकारी एवं कठोर कदम था परंतु इसके दुरुपयोग की संभावना कारण यूपीए सरकार ने इसे रद्द कर दिया।
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