भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका की विवेचना करें।

भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका की विवेचना करें।

अथवा

भारतीय राजनीति में जाति की सकारात्मक एवं नकारात्मक भूमिका लिखें, नकारात्मक भूमिका पर विशेष बल देते हुए लिखें ।
उत्तर – प्राचीन काल से ही भारतीय समाज अनेक जातियों में बंटा था। कालांतर में अनेक आक्रमणों एवं विदेशियों के भारत आगमन से इन जातियों की संख्या अत्यधिक बढ़ गई । यद्यपि भारतीय राजनीति में जातीय प्रभाव आजादी के पहले भी स्पष्ट रूप से दिखते थे, परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति एवं ‘लोकतंत्र’ स्थापना के बाद भारत में जातीय प्रभाव काफी बढ़ गया विशेषतः राजनीति में। सामान्यतः एक जाति के लोग एक-दूसरे से कई अर्थों में समानता रखते हैं। उनमें से ज्यादातर लोग परंपरागत पारिवारिक व्यवसाय को अपनाते हैं जिससे उनका सामाजिक एवं आर्थिक स्तर एक होता है और वे भावनात्मक स्तर पर भी एक-दूसरे के करीब होते हैं। इन बातों का प्रभाव चुनावों में दिखता है। राजनीतिक पार्टियां इन बातों को भुनाने का प्रया करती हैं। वे अपने उम्मीदवार चुनाव क्षेत्र के जाति बहुलता के आधार पर खड़े करती हैं। पार्टियों द्वारा क्षेत्र की जाति आधारित जनसंख्या के आधार पर उम्मीदवारों को खड़ा करने का काम केवल क्षेत्रीय पार्टियां ही नहीं, बल्कि लगभग सभी राष्ट्रीय पार्टियाँ भी करती हैं। बिहार एवं यू.पी. में तो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियाँ जाति के आधार पर ही जीत की योजनाएं बनाती हैं और उनकी योजनाएं सफल भी होती हैं। यू.पी. में बसपा तथा सपा तथा बिहार में राजद, लोजपा आदि ऐसी ही पार्टियां हैं। ऐसी प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। चुनाव के अपराधीकरण के लिए ऐसी प्रवृत्तियां ही जिम्मेदार हैं। राजनीतिक पार्टियां जाति के आधार पर अपराधियों को संरक्षण देती हैं और चुनाव के दौरान उनका उपयोग अपने हित में करती हैं।
आज आरक्षण राजनीतिक दलों के लिए केवल वोट बैंक का साधन मात्र बनकर रह गया है। वी. पी. सिंह की सरकार ने ‘मंडल आयोग’ की सिफारिशों को लागू करते हुए केन्द्रीय सेवाओं में पिछड़े वर्ग के जातियों को आरक्षण दिया था। यह एक सार्थक प्रयास था परंतु यह आज राजनीतिक दलों के हथकंडे के रूप में सामने आ गया है। कुछ दूसरी जातियों के लोग भी आरक्षण की मांग बुलंद कर रहे हैं। जाटों ने पिछड़े श्रेणी में आरक्षण की मांग को लेकर कई दिनों तक रेलमार्ग जाम रखा लेकिन राजनीतिक स्वार्थों के कारण किसी दल ने विरोध में एक शब्द नहीं कहे।
इस प्रकार भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका प्रभावी है तथा कुछ राज्यों में तो यह निर्णायक रूप में मौजूद है। यद्यपि इसके कुछ सकारात्मक बिन्दु हैं परन्तु इसके अनेक नकारात्मक प्रभाव और लक्षण हैं जो हमारे राजनीतिक जीवन को प्रदूषित कर रहे हैं। फलतः राजनीति अपने मूल उद्देश्यों से भटक गई है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *