भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में रवीन्द्रनाथ टैगोर की भूमिका का वर्णन कीजिए। यह कांग्रेस से किस प्रकार भिन्न थी ?

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में रवीन्द्रनाथ टैगोर की भूमिका का वर्णन कीजिए। यह कांग्रेस से किस प्रकार भिन्न थी ?

(39वीं BPSC/1993)
अथवा
टैगोर ने अपने साहित्य एवं विचारों से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित किया। उनके लिखे गीत आंदोलनों में जोश भरने का कार्य करते थे। टैगोर के विश्वबंधुत्व एवं अन्य महान विचार राजनीति के स्तर से ऊंचे थे जो कांग्रेस के विचार से भिन्नता रखते थे, का वर्णन करें।
>  टैगोर ने अपने साहित्य, कला तथा विचारों के माध्यम से अप्रत्यक्षतः भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
> बंग-भंग आंदोलन का उन्होंने समर्थन किया एवं ‘आमार – सोनार बांग्ला’ की रचना की जो आंदोलन के दौरान काफी प्रसिद्ध रहा।
> उनके गीत ‘जन-गण-मन’ को संपूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाया गया एवं यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का ‘प्रतीक-गीत’ बन गया।
> टैगोर के विचार संकीर्ण राजनीति से ऊपर मानवता एवं प्रेम के धरातल पर थे। उनके विचार ‘उग्र राष्ट्रवाद’ के विरोधी थे, वे विश्वबंधुत्व की भावना के प्रणेता थे। लेकिन कांग्रेस के लिए ऐसे विचारों की सराहना करना संभव था परंतु अपनाना मुश्किल, क्योंकि उसे तो अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ लड़ना था।
उत्तर- रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, उपन्यासकार, शिक्षाविद्, चित्रकार एवं विचारक थे। वे राष्ट्रीय आंदोलन से प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़े हुए थे। लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति उनके पास एक समग्र विचार थे जो संकीर्ण राजनीति से उपर मानवतावाद एवं प्रेम की धरातल पर स्थित थे। उनके अनुसार देशवासियों की सुख-समृद्धि ही किसी भी आंदोलन का आधार होना चाहिए। देशवासी स्वयं में इतने समर्थ बनें कि उन्हें किसी के सहारे आवश्यकता न पड़े, अर्थात् वे स्वावलंबी हों। बंगाल विभाजन आंदोलन के बाद इसीलिए उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को समर्थन दिया। वास्तव में स्वदेशी आंदोलन टैगोर के विचारों से ही प्रेरित था। बंग-भंग आंदोलन को उन्होंने पूर्वी बंगाल एवं पश्चिमी बंगाल के लोगों को प्रेम प्रदर्शित कर
मनाने की सलाह दी। उन्होंने इसे रक्षाबंधन दिवस मनाकर लोगों को विरोध करने को कहा। इससे यह दिखता है कि टैगोर विरोध एवं आंदोलन जैसी चीजों को भी अहिंसा एवं प्रेम के मार्ग पर चलकर करना चाहते थे। बंग-भंग आंदोलन के दौरान उन्होंने ‘आमर सोनार बांग्ला’ नामक गीत लिखा, जो इस आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शन का एक प्रमुख हथियार बन गया। “
अपनी कविताओं एवं लेखों के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। उनके द्वारा रचित ‘जन-गण-मन’ आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादी विचारों को फैलाने वाला एवं देशभक्ति की भावना को बढ़ाने वाला गीत साबित हुआ। इसे 1911 के कांग्रेस अधिवेशन में सर्वप्रथम गाया गया एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया गया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ‘उग्र राष्ट्रवाद’ के खिलाफ थे, जिसके उन्माद में संघर्ष, राजनीतिक संकीर्णता आदि को बढ़ावा मिलता हो। विदेशी कपड़ों की होली जलाने के कांग्रेस के आह्वान की उन्होंने निंदा की एवं इसे संपत्ति अथवा संसाधनों की बर्बादी एवं हानि माना। इसलिए उन्होंने असहयोग आंदोलन का समर्थन नहीं किया। जलियांवालाबाग हत्याकांड की उन्होंने तीव्र आलोचना की एवं विरोध स्वरूप नाईटहुड की उपाधि सरकार को लौटा दी।
टैगोर ‘उग्र राष्ट्रवाद’ को मानवतावाद के विकास में बाधा मानते थे। उन्होंने मानवतावाद को राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति से उपर माना लेकिन ये विचार उत्कृष्ट होते हुए भी उस समय की परिस्थिति के अनुसार संभव नहीं थे क्योंकि अंग्रेज शोषक थे और यदि उनका उग्र विरोध न किया जाता तो उनके शोषण का अंत असंभव था। इसलिए कांग्रेस के विचारों से उनके विचारों में मतभेद था। गांधी जी से भी उनके मतभेद कई बार सार्वजनिक रूप से दिखे। टैगोर की दृष्टि में संपूर्ण विश्व के लोग एक हैं, उनमें एक आत्मा है और वे प्रेम से एक साथ रह सकते हैं। उनके विचार राष्ट्र की सीमा एवं राजनीति से ऊपर थे। उनके अनुसार सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता मात्र से वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होगी। उनके अनुसार “यदि हम राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर लेते हैं तो यह अत्युत्तम परंतु यदि हम राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने सफल नहीं हो पाते हैं, तो हमें राजनीतिक लुटेरों से जो हमारी महान स्वतंत्रता ( आत्मा की स्वतंत्रता ) के मार्ग में बाधक हैं, उन्हें सहयोग नहीं करना चाहिए । “
इस प्रकार रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यद्यपि राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान अपने साहित्य, कविताओं एवं विचारों से काफी योगदान दिया। लेकिन उनकी देशभक्ति में राजनीतिक संकीर्णता, जातीय भेदभाव, हिंसा, क्षेत्रीय भेदभाव एवं उग्र राष्ट्रवाद का कोई स्थान नहीं था। उन्होंने मानवाधिकारों एवं विश्वबंधुत्व की बात कही जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी किसी देश, जाति या समुदाय के लिए नितांत आवश्यक है। इस प्रकार कांग्रेस से उनके विचार थोड़े अलग थे, क्योंकि कांग्रेस एक राजनीतिक पार्टी थी जिसका तात्कालिक उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति था। परंतु आज के संदर्भ में उनके विचार काफी सार्थक प्रतीत होते हैं और लगभग हर देश आज उग्र राष्ट्रवाद की भावना को त्याग मानवाधिकार एवं विश्वबंधुत्व की बातों को स्वीकार रहे हैं।
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