Bihar Board Class 9Th Non – Hindi chapter 16 पृथ्वी का दुख (निर्मला पुतुल)  Solutions | Bseb class 9Th Chapter 16 पृथ्वी का दुख (निर्मला पुतुल) Notes

Bihar Board Class 9Th Non – Hindi chapter 16 पृथ्वी का दुख (निर्मला पुतुल)  Solutions | Bseb class 9Th Chapter 16 पृथ्वी का दुख (निर्मला पुतुल) Notes

प्रश्न- निम्नलिखित पंक्तियों के अर्थ स्वष्ट कीजिए। 
(क) इस घाट अपने कपड़े और मवेशियाँ धोते सोचा है कभी कि उस घाट पी रहा होगा कोई प्यासा पानी ” या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी। किसी देवता को अर्ध्य ?
(ख) अगर नहीं तो क्षमा करना ।  मुझे तुम्हारे आदमी होने पर संदेह है!
उत्तर— (क) कवयित्री को वैसे लोगों के व्यवहार पर दुख हो रहा है जो जल को गंदा कर रहे हैं। जल ही जीवन है, ऐसी बात हर के मुँह से सुनने को तो मिलती है, लेकिन कपड़े धोकर, मवेशियों को नहलाकर, कूड़े-कचड़े फेंककर, मृत्त पशुओं को बहाकर तथा कारखाने एवं नालियों के गंदे जल को बहाकर अमृत तुल्य जल में विष घोल रहे हैं। वे यह भूल जाते है कि इसी जल को पीकर प्राणी प्यास बुझाते हैं तो भक्त अर्घ्य देते हैं। कवयित्री को ऐसे ही अविवेकशील मानव की दुर्बुद्धि पर खीझ होती है।
(ख) कवयित्री वैसे लोगों पर तरस खाती है जो स्वरूप से तो मानव जैसे हैं लेकिन उनका आचरण पशुओं से भी बदतर है। पशु भी अपने हित-अनहित को समझता है, जिसमें सोचने-समझने की शक्ति नहीं होती। किन्तु ईश्वर ने जिस मानव को अच्छे-बुरे की समझ दी है, वह मानव अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पेड़ो को काट कर, पहाड़ों को ढाहकर, नदियों में सड़े-गले पदार्थ फेंककर तथा जमीन में रासायनिक पदार्थो का उपयोग कर भूमि, जल, हवा सबको दूषित कर रहे हैं। कवयित्री वैसे लोगों से क्षमा याचना करती हुई कहती है कि जिसे मानव में अपने जीवन की रक्षा का ख्याल नहीं है, उसे मानव कैसे माना जा सकता है।
प्रश्न- नदियों के रोने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर— नदियों के रोने से तात्पर्य है कि जिसका जल पीकर सारे प्राणी अपनी प्यास बुझाते हैं तथा देवताओं को जलदान करते हैं, उस अमृत जैसे जल को कपड़े धोकर, मवेशियों को नहला कर, कूड़े-कचड़े डालकर, मृत पशुओं को बहाकर, कारखाने तथा नालियों का गंदाजल डालकर लोगों ने दूषित बना दिया हैं। प्रदूषण के कारण वर्षा कम होने लगी है जिस कारण नदियों की धारा सिकुड़ गई है और उसकी कल-कल ध्वनि मे शिथीलता आ गई है। नदियों की धारा भी इसी संकुचनता तथा जल की अस्वच्छता को कवयित्री ने नदियों का रोना कहा है।
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