Bihar Board Class 9Th Non – Hindi chapter 18 हुएनत्सांग की भारत यात्रा Solutions | Bseb class 9Th Chapter 18 हुएनत्सांग की भारत यात्रा Notes

Bihar Board Class 9Th Non – Hindi chapter 18 हुएनत्सांग की भारत यात्रा Solutions | Bseb class 9Th Chapter 18 हुएनत्सांग की भारत यात्रा Notes

प्रश्न- हुएनत्सांग भारत क्यों आना चाहते थे ?
उत्तर— हुएनत्सांग भारत के नालंदा नामक महाविद्यालय के वृद्ध भिक्षुक शीलभद्र के साथ योगशास्त्र पर चर्चा करने के उद्देश्य से भारत आना चाहते थे। साथ ही, उन्हें बौद्ध एवं ब्राह्मण ग्रंथों के अध्ययन की उत्कट अभिलाषा थी। उस समय नालंदा विश्वप्रसिद्व शिक्षा का केन्द्र था। यहाँ का धर्म, ज्ञान एवं दर्शन की पुस्तकें विश्वविख्यात थीं। इन्हीं विशेषताओं को जानने-समझने के लिए हुएनत्सांग भारत आना चाहते थे।
प्रश्न- भारत आने में हुएनत्सांग को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर— भारत आने में हुएनत्सांग को ऊँचे-ऊँचे पर्वत, सागर की भयंकर लहरों तथा चीनी नियमों का सामना करना पड़ा। क्योंकि उस समय चीन के कानून के मुताबिक लोगों को देश छोड़ने का आज्ञा नहीं थी। इसलिए हुएनत्सांग ने छिपे रूप में भारत की यात्रा की। इसके साथ ही, यहाँ के रास्ते के बारे में जानकारों ने कहा- पश्चिमी रास्ते मुश्किल ओर खतरनाक हैं। कभी रेत के तूफान रास्ता रोक देते हैं तो नर-पिशाचों तथा लू-लपट से भरे आँधी-तूफान का खतरा भी हैं। इस प्रकार हुएनत्सांग को अनेक प्रकार के मानवीय एवं प्राकृतिक कठिनाइयों का सामना करा पड़ा।
प्रश्न- हुएनत्सांग और शीलभद्र के मिलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर— हुएनत्सांग जब शीलभद्र के सामने आए तो उन्होंने घुटनों के बल बैठकर श्रद्धापूर्वक उनके चरणों का चुम्बन किया और भूमि पर सिर रख दिया। इसके बाद वे नाम्रतापूर्वक बोले- मैंने आपके निर्देश में शिक्षा ग्रहण करने के लिए चीन से यहाँ आया हूँ। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे अपना शिष्य बना लें। यह सुनते ही शीलाभद्र की आँखें भर आई। उन्होंने कहा- हमारा गुरू-शिष्य का संबंध देव निधारित है। दुःखदायी बीमारी के कारण अपनी जीवन लीला समाप्त करने की मैंने इच्छा प्रकट की थी, किंतु तीन देवों के आग्रह पर मुझे मरने की इच्छा वापस लेनी पड़ी। देवों का आदेश था कि चीनी भिक्षुक को भली-भाँति शिक्षित करना। इन दोनों का मिलन अति आहह्लादकारी था।
प्रश्न- नालंदा का वर्णन हुएनत्सांग ने किन शब्दों में किया ? 
उत्तर— नालंदा के विषय में हुएनत्सांग ने लिखा है कि मठ के चारों ओर ईंटों की दीवारें थी। वहाँ आठ बड़े कक्ष थे। एक द्वार महाविद्यालय के रास्ते में खुलता था। भवन कलात्मक एवं बुर्जो से सुसज्जित था | वेधशालाएँ सुबह में कुहासे में छिप जाती थीं ओर ऊपरी कमरे बादलों में खोए प्रतीत होते थे। तालाबों के स्वच्छ जल में नील कमल खिले हुए थें। आम्रकुंजों से आम के बौर खुशबू बिखेर रहे थे। बाहरी सभी आँगनों में चार मंजिल कक्ष पुजारियों के लिए थे। लाल-मुगिया खंभों पर बेल-बूटे उकेर गये थे। जगह-जगह रोशनदान बहने थे। फर्श चमकदार ईटों की बनी हुई थी। राजा पुजारियों का सम्मान करता था। सौ गाँवों के लगान को इन संस्थान को धर्मार्थ दिया करता था। यहाँ के भिक्षु विद्वान एवं दक्ष थें। मठ के कठोर नियम थें, जिनका पालन करना आवश्यकय था। दिनभर अध्ययन-अध्ययन का कार्य होता था। दर्शनार्थी एवं शास्त्रार्थ करनेवालों को द्वारपाल के प्रश्नों का उत्तर देने के बाद ही प्रवेश करने की आज्ञा मिलती
थी।
प्रश्न- निम्नलिखित अंश ‘हुएनसांग’ के किस पक्ष को दर्शाता है ? ‘जब तक मैं बुद्ध के देश में नहीं पहुँच जाता, मैं कभी चीन की तरफ ‘मुड़कर भी नहीं देखूँगा। ऐसा करने में यदि रास्ते में मेरी मृत्यु हो जाए तो उसकी भी चिन्ता नहीं।”
उत्तर— दिया गया अंश हुएनत्सांग के उस पक्ष को दर्शाता है, जो उन्हें बुद्ध के देश में आने को बेचैन करकता था। बुद्ध के देश में पहुँचने में वे अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करते। वे किसी भी तरह बौद्ध ओर ब्राह्मण ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहते थे। शीलाभद्र जैसे बौद्ध विद्वान से मिलना एक अन्य पक्ष था।
प्रश्न- आप अपने आस-पास के किसी धर्मिक, ऐतिहासिक स्थल पर जाइए और उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर— संकेत: छात्र शिक्षक के साथ किसी धार्मिक या ऐतिहासिक स्थल की यात्रा का कार्यक्रम बनावे ओर उस यात्रा में देखे गए स्थलों की विशेषताओं को लिखें।
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