झारखण्ड की की जलवायु

झारखण्ड की की जलवायु

> झारखण्ड क्षेत्र को अधिक वर्षा एवं पर्याप्त आर्द्रता वाला राज्य माना जाता है। राज्य की जलवायु उष्णकटिबन्धीय मानसूनी प्रकार की है।
> राज्य की जलवायु अक्षांशीय स्थिति व कर्क रेखा की स्थिति के साथ-साथ अन्य भौगोलिक कारणों; जैसे—उच्चावच व समुद्र से निकटता आदि के द्वारा निर्धारित होती है।
> सम्पूर्ण राज्य का औसत वार्षिक तापमान 25°C रहता है तथा सम्पूर्ण राज्य में औसत वार्षिक वर्षा 1430 मिमी होती है।
> राज्य के पाट क्षेत्र का औसत वार्षिक तापमान 23°C से कम रहता है, जबकि गढ़वा, पलामू, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सन्थाल परगना के पूर्वी भाग व चतरा के उत्तरी भाग में औसत वार्षिक तापमान 26°C से अधिक पाया जाता है ।

> झारखण्ड में ऋतुएँ

> झारखण्ड में मुख्यतः निम्न तीन प्रकार की ऋतुएँ पाई जाती हैं
> ग्रीष्मकाल
> झारखण्ड में ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत मार्च के महीने से होती है और यह मध्य जून तक रहती है।
> ग्रीष्म ऋतु में यहाँ का औसत तापमान 29° से 459C के बीच रहता है।
> राज्य में सर्वाधिक गर्मी मई में होती है। इस समय राज्य का औसत तापमान 32°C तक हो जाता है। राज्य का सबसे गर्म स्थल जमशेदपुर है।
> उच्च तापमान के कारण प्रदेश के अधिकांश भागों में वायुदाब निम्न हो जाता है ।
> ग्रीष्म ऋतु में पठार के उत्तर-पूर्वी भाग में निम्न दाब उत्पन्न होने के कारण पछुआ पवनें बन्द हो जाती हैं और वातावरण शान्त हो जाता है ।
> बोकारो और धनबाद भी राज्य के गर्म क्षेत्रों में से एक है। कोयला खानों के कारण भी यहाँ गर्मी अधिक रहती है ।
> राज्य का अधिकांश भाग पठारी होने के कारण यहाँ लू का प्रभाव कम रहता है हालाँकि दक्षिणी छोटानागपुर (कोल्हान क्षेत्र) में तापमान में वृद्धि होने के कारण गर्म हवाएँ चलती हैं।
> राज्य का उत्तर-पूर्वी भाग गर्म हवाओं के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त रहता है। ग्रीष्मकाल में शाम के समय पछुआ हवा के प्रभाव से रांची, हजारीबाग तथा देवघर अन्य स्थलों की अपेक्षा थोड़ा ठण्डा रहता है ।
> राज्य के कुछ भागों में मानसून पूर्व वर्षा होती है। सामान्यतः इस वर्षा की मात्रा 100 मिमी तक होती है।
> मानसून पूर्व वर्षा को आम्रवृष्टि कहते हैं, जो नार्वेस्टर का ही एक भाग है। नार्वेस्टर राज्य की स्थानीय वर्षा है, जिसे कालबैसाखी भी कहते हैं ।
> वर्षाकाल
> राज्य में मध्य जून से अक्टूबर तक का महीना वर्षाकाल का होता है।
> राज्य में वर्षा का कुल 80% से अधिक भाग इसी समय अवधि में प्राप्त होता है। इसे मानसून का विस्फोट कहा जाता है।
> राज्य का पूर्वी भाग प्रमुखतः बंगाल की खाड़ी से, जबकि मध्यवर्ती एवं पश्चिमी भाग अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से वर्षा प्राप्त करता है ।
> राज्य में अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है।
> राज्य में वर्षा की मात्रा दक्षिण से उत्तर की ओर एवं पूर्व से पश्चिम की ओर जाती है।
> राज्यं के पाट क्षेत्र में स्थित नेतरहाट में सर्वाधिक वर्षा (1800 मिमी से अधिक) होती है।
> सागरीय तल से काफी कम ऊँचाई होने के कारण चाईबासा के मैदानी क्षेत्र में सबसे कम वर्षा होती है।
> झारखण्ड राज्य में शीतकालीन वर्षा का प्रमुख कारण भूमध्य सागर से आने वाला चक्रवात है।
> राज्य के गढ़वा, पलामू, चतरा का उत्तरी भाग, कोडरमा, हजारीबाग, गिरिडीह के उत्तरी भाग, गोड्डा आदि क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 1200 मिमी से भी कम होती है ।
> दक्षिणी हजारीबाग, बोकारो, सरायकेला, देवघर, दक्षिणी गिरिडीह में 1200-1400 मिमी औसत वर्षा प्राप्त होती है।
> गुमला, पश्चिमी एवं पूर्वी सिंहभूम, सिमडेगा तथा रांची के अधिकांश क्षेत्रों में 1400-1600 मिमी वर्षा प्राप्त होती है ।
> लौटते मानसून का काल
हिन्द महासागर एवं आस-पास के क्षेत्रों में निम्न दाब और उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तर के विस्तृत मैदान में अपेक्षाकृत उच्च दाब के विकसित होने से मानसून पवनें सितम्बर के मध्य में इस क्षेत्र से लौटती हैं। लौटते हुए मानसून के प्रभाव में बंगाल की खाड़ी में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस चक्रवात से राज्य में तीव्र वर्षा होती है।
> शीतकाल
> राज्य में मध्य नवम्बर से फरवरी तक शीतकालीन ऋतु होती है। सर्वाधिक शीतग्रस्त महीना दिसम्बर माना जाता है, परन्तु वास्तविक न्यूनतम तापमान 15 दिसम्बर से 15 जनवरी के बीच पाया जाता है।
> शीत ऋतु में झारखण्ड का औसत तापमान 15°C से 21°C तक होता है तथा मौसम साफ और सुहावना होता है।
> शीतकाल में यहाँ उच्च वायुदाब का क्षेत्र स्थापित हो जाता है तथा पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से और लौटते हुए मानसून के कारण यहाँ अल्पमात्रा में वर्षा भी होती है। वर्षा 5% से 10% के मध्य होती है ।
> राज्य का नेतरहाट सर्वाधिक ठण्डा स्थान है ।
> यहाँ शीतकाल में भी वर्षा होती है, जिस कारण इसे शीत वर्षा जलवायु प्रदेश भी माना जाता है। इसके प्रभाव के कारण यहाँ का तापमान 5°C से नीचे चला जाता है।
> इस ऋतु में राज्य के पश्चिमी भाग का तापमान 16°C से कम, पूर्वी भाग का 17°C-19°C, मध्यवर्ती भाग का 16°C-17°C तथा दक्षिण-पूर्वी भाग का तापमान 19°C से अधिक रहता है।

> झारखण्ड के जलवायु प्रदेश

> झारखण्ड के जलवायु प्रदेश को आर्द्रता, वर्षा एवं तापमान के आधार पर सात जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया गया है। जिनका विवरण इस प्रकार है
> उत्तरी एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र
> उत्तरी एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र की जलवायु को महाद्वीपीय प्रकार की जलवायु कहा जाता है। इस क्षेत्र का विस्तार पलामू, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग जिले के मध्यवर्ती भाग, गिरिडीह जिले के मध्यवर्ती भाग तथा सन्थाल परगना क्षेत्र के पश्चिमी भाग (देवघर, उत्तरी दुमका, गोड्डा) है।
> ग्रीष्मकाल में यहाँ गर्म हवाएँ चलती हैं।
> यह क्षेत्र झारखण्ड का सबसे कम वर्षा वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र के दक्षिणी भाग में 1270 मिमी तथा दक्षिण-पूर्व में 1140 मिमी से कम वर्षा होती है।
> इस प्रदेश के उत्तर एवं उत्तर पश्चिम भागों में वर्षा सबसे कम होती है, क्योंकि नमीयुक्त हवाएँ इस क्षेत्र में पहुँचते ही शुष्क हो जाती हैं।
> मध्यवर्ती क्षेत्र
> इस जलवायु प्रदेश का विस्तार दक्षिणी हजारीबाग, बोकारो और धनबाद, पूर्वी लातेहार, दक्षिणी चतरा, जामताड़ा, दक्षिणी-पश्चिमी दुमका एवं देवघर के दक्षिणी क्षेत्र तक हुआ है।
> यह उपमहाद्वीपीय जलवायु का क्षेत्र है । इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 1270 से 1650 मिमी के बीच होती है।
> लू एवं आँधी तूफान का प्रभाव इस क्षेत्र में कम होता है।
> दक्षिण हजारीबाग में तापमान की कमी के कारण गर्मी का प्रभाव कम है।
> पूर्वी सन्थाल परगना क्षेत्र
> यह जलोढ़ उच्च भूमि एवं पूर्वी राजमहल पहाड़ी ढाल क्षेत्र है।
> यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1525 मिमी है। यहाँ सर्वाधिक वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है। इस क्षेत्र का विस्तार साहेबगंज तथा पाकुड़ जिले तक है।
> यह क्षेत्र उच्च सापेक्ष आर्द्रता वाला माना जाता है तथा पूर्णतया लू से मुक्त रहता है।
> पूर्वी सिंहभूम क्षेत्र
> इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी सिंहभूम सरायकेला खरसावाँ एवं पश्चिमी सिंहभूम जिले के पूर्वी क्षेत्रों में है।
> यह समुद्र के निकटतम है तथा नार्वेस्टर प्रभावित क्षेत्र में स्थित है। यहाँ की वार्षिक औसत वर्षा 1400 मिमी से 1500 मिमी होती है। यह झारखण्ड का सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है। ग्रीष्मकाल में यह क्षेत्र तड़ित झंझा (Thunderstorm) से प्रभावित रहता है ।
> इसे सागरीय प्रभावित जलवायु क्षेत्र भी कहा जाता है।
> यह जलवायु प्रदेश लू एवं धूलयुक्त आँधियों के प्रभाव से मुक्त है, परन्तु जमशेदपुर में अप्रैल व मई के महीने में लू एवं धूलभरी आँधी चलती हैं ।
> पश्चिमी सिंहभूम का मध्य व पश्चिमी भाग
> यह जलवायु प्रदेश शंख एवं कोयल नदी घाटी के उन क्षेत्रों में विस्तृत है, जो पश्चिमी सिंहभूम क्षेत्र का हिस्सा है।
> इस क्षेत्र में मानसून की दोनों शाखाओं द्वारा वर्षा होती है।
> इस क्षेत्र का उच्चावच, यहाँ की जलवायु स्थानीय भिन्नता उपस्थित करता है । विषम भौगोलिक स्थिति एवं पहाड़ों की उपस्थिति के कारण इस क्षेत्र में आर्द्रयुक्त सागरीय हवाएँ नहीं पहुँच पाती हैं।
> पोरहाट व सारण्डा का विशाल वन क्षेत्र इसी जलवायु क्षेत्र में अवस्थित है।
> शुष्क वायु एवं आधिक्य वनस्पति के कारण गर्मी का प्रभाव कम रहता है।
> रांची- हजारीबाग पठारी क्षेत्र
> इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार राँची एवं हजारीबाग के पठारी भागों में पाया जाता है।
> सामान्य से अधिक ऊँचाई होने के कारण समान रूप से इस पठारी क्षेत्र के चारों ओर निम्न तापमान रिकॉर्ड किया जाता है ।
> मैदानी क्षेत्र उष्ण पछुआ पवन के प्रभाव से मुक्त रहता है । हजारीबाग में औसत वार्षिक वर्षा 1485 मिमी होती है।
> ग्रीष्मकाल में दिन के समय तीव्र गर्मी पड़ती है, परन्तु रात में मौसम शीतल होता है।
> यह क्षेत्र ‘लू’ तथा धूल भरी आँधी से मुक्त रहता है।
> यहाँ की जलवायु यूरोपीय प्रकार जलवायु से साम्यता रखती है, जिससे वातावरण सुखद है।
> पाट क्षेत्र
> इस जलवायु क्षेत्र का विस्तार लोहरदगा एवं
गुमला जिलों में है। इसे राज्य का सर्वाधिक ऊँचा भाग माना जाता है। यहाँ पर वर्षा शीत ऋतु में भी होती है।
> जंगलों की अधिकता एवं उष्णार्द्ध जलवायु के कारण यहाँ वर्षा अधिक होती है ।
> यह क्षेत्र रांची पठार की ठण्डा है। तुलना म में अधिक
> यहाँ तापमान हिमांक से भी नीचे चला जाता है।
> यहाँ की जलवायु की प्रमुख विशेषता अधिक शीतकाल में वर्षा के कारण शीतलता का बढ़ना है।
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