भारतीय स्वंत्रता आन्दोलन में झारखण्ड

भारतीय स्वंत्रता आन्दोलन में झारखण्ड

> झारखण्ड राष्ट्रीय चेतना का प्रसार

> झारखण्ड में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार 1857 ई. की क्रान्ति से पूर्व हुए जन विद्रोहों से प्रारम्भ हो गया था।
> 1885 ई. में पलामू के चेरो शासक, हजारीबाग, मानभूम एवं सन्थाल परगना के भूमिज-सन्थाल व बिरसा एवं उनके समर्थकों ने अंग्रेजी सत्ता के शोषण के विरुद्ध जिस क्रान्ति को प्रारम्भ किया था, वह अब राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप धारण कर चुकी थी ।
> 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ ही राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नई दिशा मिली। कांग्रेस के आरम्भिक वर्षों में झारखण्ड के लोगों ने काफी उत्साह दिखाया।
> वर्ष 1919 में पलामू में बिन्देश्वरी पाठक व भागवत पाण्डेय के नेतृत्व में जिला कांग्रेस कमेटी की स्थापना हुई। पलामू कांग्रेस कमेटी के निर्णय के आधार पर डाल्टनगंज में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गई ।
> इसके अतिरिक्त चतरा, रांची, झरिया, लोहरदगा व गिरिडीह में भी राष्ट्रीय विद्यालय स्थापित किए गए।

> गाँधी युग का आरम्भ

> स्वतन्त्रता आन्दोलन के इस चरण की शुरुआत गाँधी जी के आन्दोलन में पदार्पण से होती है।
> श्यामजी कृष्ण सहाय के निमन्त्रण पर महात्मा गाँधी 4 जून, 1917 को रांची आए। यहाँ गाँधीजी 21 दिन रुके और चम्पारण सत्याग्रह की रूपरेखा तैयार की ।
> मौलाना अबुल कलाम आजाद वर्ष 1916 में रांची आए तथा महात्मा गाँधी के पश्चात् उन्होंने राज्य के आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई।
> मौलाना आजाद ने वर्ष 1917 में रांची में ‘अंजुमन-ए-इस्लामिया’ तथा मदरसा इस्लामिया की स्थापना भी की थी।
> वर्ष 1920 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ। इसमें छोटानागपुर क्षेत्र के अनेक लोगों ने भाग लिया।

> असहयोग आन्दोलन

> असहयोग आन्दोलन के दौरान वर्ष 1920-21 में स्वयं गाँधीजी रांची आए।
> रांची में ही गाँधीजी का ताना भगतों से सम्पर्क हुआ तथा इस दल के अनुयायी गाँधीजी के शिष्य बन गए। गाँधीजी के
> अनुसार, सत्य और अहिंसा के प्रति गहरी निष्ठा के कारण उनके सभी अनुयायियों में जातरा भगत सर्वश्रेष्ठ थे।
> छोटानागपुर में रांची के अतिरिक्त लोहरदगा, डोरण्डा, घाघरा, इटकी, सेन्हा, कोकर, ओरमाँझी, गुमला आदि में इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए अनेक सभाएँ हुईं तथा इनमें गुलाब तिवारी, मौलवी उस्मान, टहल ब्रह्मचारी और स्वामी शिवानन्द आदि नेताओं के भाषण हुए। इनके प्रयासों से आदिवासी भी इस आन्दोलन से काफी संख्या में जुड़े।
> जनवरी, 1922 में साहेबगंज को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया गया था।
> अप्रैल, 1923 में जब नागपुर में झण्डा सत्याग्रह हुआ, तो भारी संख्या में ताना भगत भी शामिल हुए। वर्ष 1923 के अप्रैल माह में राष्ट्रीय सप्ताह मनाया गया।
> बजरंग सहाय, कृष्ण वल्लभ सहाय, सरस्वती देवी, त्रिवेणी प्रसाद, शालिग्राम सिंह आदि हजारीबाग के नेताओं को इस आन्दोलन के समय जेल भी जाना पड़ा।
> इस दौरान छोटानागपुर में गाँधीजी के अतिरिक्त डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूल हक, मोतीलाल नेहरू, स्वामी विश्वानन्द जैसे नेताओं का आगमन भी हुआ।
> कृष्ण वल्लभ सहाय वर्ष 1923 में प्रांतीय विधानपरिषद् के सदस्य स्वराज पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में बने थे।

> सविनय अवज्ञा आन्दोलन

> 26 जनवरी, 1930 को छोटानागपुर में स्वाधीनता दिवस मनाया गया। इस क्षेत्र के हजारीबाग में कृष्ण वल्लभ सहाय ने कठिनाइयों के साथ कचहरी पर झण्डा फहराया।
> 13 अप्रैल, 1930 को लगभग 200 लोगों ने छोटानागपुर में अनेक स्थानों पर नमक बनाया।
> कृष्ण वल्लभ सहाय ने हजारीबाग स्थित खजांची तालाब के निकट नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा।
> जमशेदपुर में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व ननी गोपाल मुखर्जी ने किया ।
> सविनय अवज्ञा आन्दोलन में रांची, सिल्ली, गुमला, चुटिया तथा लोहरदगा क्षेत्र काफी प्रभावित रहा।
> रांची बार एसोसिएशन के 3 मई, 1930 की बैठक में खादी के उपयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का प्रस्ताव प किया गया ।
> हजारीबाग में सविनय अवज्ञा आन्दोलन में जनजातियों ने भी भाग लिया, जिसका नेतृत्व गोमिया थाने के बोरोगोरा ग्राम के बंगम माँझी कर रहे थे।
> डाल्टेनगंज में देवकी प्रसाद, चन्द्रिका प्रसाद, नागेश्वर प्रसाद सिंह, ज्योतिचन्द्र सरकार तथा तुलसी तिवारी के नेतृत्व में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया।
> गढ़वा में गुलाब मिस्त्री, बिहारी लाल, सीताराम ठठेरा तथा जगन्नाथ साहू के नेतृत्व में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कार्यक्रम चलाया गया।
> झारखण्ड के चक्रधरपुर में कांग्रेसियों ने जंगल काटकर सरकार के प्रति अपना विरोध प्रकट किया। विरोध प्रकट के इस तरीके को जंगल सत्याग्रह नाम दिया गया ।
> सविनय अवज्ञा आन्दोलन में सन्थालों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनका नेतृत्व बंगम माणे ने किया था।
> सितम्बर, 1930 में राँची में स्वदेशी सप्ताह तथा 16 नवम्बर, 1930 को सभी स्थानों पर जवाहर सप्ताह मनाया गया था।
> इस आन्दोलन के दौरान हजारीबाग जेल में बन्द रामवृक्ष बेनीपुर कैदी, भवानी दयाल संन्यासी तथा महामाया प्रसाद सिन्हा कारागार नामक हस्तलिखित पत्रिका निकालते थे।
> व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान वर्ष 1940 में गाँधीजी अन्तिम बार राँची आए।

> रामगढ़ का 53वाँ अधिवेशन

> 17 से 20 मार्च, 1940 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 53वें अधिवेशन का आयोजन रामगढ़ में मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में हुआ। इस सम्मेलन में सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में फॉरवर्ड ब्लॉक का जन्म हुआ।
> रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी की नींव एम. एन. राय. द्वारा यहीं रखी गई थी।

> भारत छोड़ो आन्दोलन

> वर्ष 1942 में शुरू हुए भारत छोड़ो आन्दोलन में छोटानागपुर के लोग बड़े पैमाने पर शामिल हुए।
> 9 अगस्त तथा 10 अगस्त, 1942 को क्रमशः रांची तथा जमशेदपुर में ‘हड़ताल’ आयोजित की गई ।
> हजारीबाग के दो प्रमुख नेताओं सुखलाल सिंह तथा रामनारायण सिंह को 9 अगस्त 1942 में गिरफ्तार किया गया था ।
> 14 अगस्त, 1942 को रांची जिला स्कूल के जुलूस के रूप में निकले विद्यार्थियों को बन्दी बना लिया गया। 18 अगस्त, 1942 को ताना भगतों के एक दल ने विशुनपुर थाना जला दिया, जिससे भारत छोड़ो आन्दोलन ने राज्य में उग्र रूप ले लिया।
> 22 अगस्त, 1942 को राहे में हड़ताल हुई तथा इसी दिन इटकी और टाँगरबसली के बीच रेल की पटरियों को नष्ट कर दिया गया ।
> हजारीबाग में इस आन्दोलन की शुरुआत 11 अगस्त, 1942 को हुई, जिसका नेतृत्व श्रीमती सरस्वती देवी ने किया।
> 13 अगस्त, 1942 को लोगों ने डाकघर, यूरोपियन क्लब, लाल कम्पनी तथा डिप्टी कमिश्नर की अदालत में तोड़-फोड़ की तथा गोड्डा में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया।
> टाटा नगर में मिल मजदूरों, दुकानदारों तथा आम जनता ने 10 अगस्त, 1942 को पूर्ण हड़ताल का आयोजन किया।
> जमशेदपुर में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान रामानन्द तिवारी के नेतृत्व में पुलिस ने विद्रोह किया।
> वर्ष 1943 तक भारत छोड़ो आन्दोलन लगभग समाप्त हो गया था और ऐसा माना जाता है कि झारखण्ड में 22 अगस्त, 1943 को वाचस्पति त्रिपाठी की गिरफ्तारी भारत छोड़ो आन्दोलन की अन्तिम घटना थी ।
> झारखण्ड में भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रमुख नेता

> राज्य में मजदूर आन्दोलन 

> टाटा नगर (जमशेदपुर ) में मिल मजदूरों, दुकानदारों तथा आम जनता ने 10 अगस्त, 1942 को पूर्ण हड़ताल का आयोजन किया ।
> इस आन्दोलन के प्रमुख आन्दोलनकारियों एम. जॉन, एन. एन. बनर्जी, एम. के. घोष, त्रेता सिंह व टी.पी. सिन्हा इत्यादि को गिरफ्तार किया गया, जिससे आन्दोलन उग्र हो गया ।
> 30 अगस्त को सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी के बाद 31 अगस्त को पूरे जमशेदपुर में हड़ताल की गई थी।
> इस हड़ताल के पूर्व भी राज्य में अन्य हड़तालें हुई थी। वर्ष 1920-22, 1925 तथा 1928 को टाटानगर (जमशेदपुर) में टाटा एण्ड आयरन स्टील वर्क्स एवं अन्य मिलों ने भी हड़ताल की थी ।
> वर्ष 1928 की जमशेदपुर हड़ताल को सुभाष चन्द्र बोस ने समाप्त कराया तथा मजदूरों और प्रबन्धकों के मध्य समझौता कराया ।
> वर्ष 1920 में एस. एन. हलदर एवं व्योमकेश चक्रवर्ती के नेतृत्व में जमशेदपुर वर्कर्स एसोसिएशन की स्थापना की गई ।

> राष्ट्रीय आन्दोलन में झारखण्ड की महिलाएँ

> भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में राज्य की महिलाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
> राजेश्वरी सरोजदास, सरस्वती देवी, प्रेमा देवी, शैलबाला राय, जाम्बवती देवी व उषा रानी इत्यादि जैसी प्रमुख क्रान्तिकारी महिलाओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान दिया।
> हजारीबाग में असहयोग आन्दोलन के दौरान सरस्वती देवी ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
> इन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 11 अगस्त, 1942 को हजारीबाग में विशाल जुलूस का नेतृत्व किया, जिन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया।
> वर्ष 1941 में दुमका में दुमका कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की पत्नी श्रीमती महादेवी केजरीवाल ने सत्याग्रह किया था ।
> 19 अगस्त, 1942 को श्रीमती जाम्बवती देवी तथा श्रीमती प्रेमा देवी के नेतृत्व में विशाल जुलूस निकाला गया, जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
> 28 अगस्त, 1942 को ब्रिटिश पुलिस द्वारा सन्थाल परगना की आन्दोलनकर्ता बिरजी को गोली मार दी गई ।
> पलामू में कुमारी राजेश्वरी सरोजदास के नेतृत्व में जपला सीमेण्ट कारखाना में मजदूरों व किसानों को संगठित कर आन्दोलन किए, इनके इन कार्यों से भयभीत होकर सरकारी अधिकारियों ने दास के विरुद्ध भारत रक्षा कानून के तहत कार्यवाही की।

> ईसाई मिशनरियाँ और झारखण्ड

> राज्य में ईसाइयों का सर्वप्रथम आगमन 1845 ई. में हुआ था। राज्य में गॉस्सनर मिशन पहला ईसाई मिशन था। राज्य में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए सर्वप्रथम चार प्रचारक कैल्सर अगस्ट ब्रांट, थियोडोर जैक, एमिलो स्कॉच तथा फ्रेडरिक वाच आए थे।
> राज्य में ये प्रचारक छोटानागपुर के कमिश्नर कर्नल आउस्ले व डिप्टी कमिश्नर हेन्निगंटन के सहयोग से राज्य गॉस्सनर मिशन की स्थापना की।
> 1 दिसम्बर, 1845 को इस मिशन द्वारा ‘बेथे सदा’ (दया / पवित्रता का घर ) की स्थापना रांची में की गई, जिसमें विधवाओं, अनाथों व गरीबों को शामिल किया गया ।
> इस मिशन के द्वारा 9 जून, 1845 को चार कबीरपंथी आदिवासियों नवीन, बन्धु, घुरन और केशव को ईसाई धर्म में शामिल कर इनका ‘बपतिस्मा’ किया गया ।
> 1850 ई. में गोविन्दपुर में, 1851 ई. में चाईबासा में, 1854 ई. में हजारीबाग में एवं 1855 ई. में पिठौरिया में गॉस्सनर मिशन की स्थापना की गई तथा 18 नवम्बर, 1855 को राज्य में लूथेरिन चर्च की स्थापना की गई ।
> गॉस्सनर मिशन का 1869 ई. में विघटन हुआ तथा इसका मूल मिशन एस. पी. जी. मिशन रखा गया और इसका प्रमुख रेक्टर जे. सी. व्हिटली को बनाया गया ।
> 1869 ई. में ही राज्य में रोमन कैथोलिक मिशन का आगमन हुआ, इस मिशन के फादर जॉन बापटिस्ट हौफमेन तथा फादर लिवेंस जैसे धर्मप्रचारकों का झारखण्ड में आगमन हुआ।
> 1871 ई. में पंचबा में डॉक्टरों ने मिलकर द यूनाइटेड फ्री चर्च ऑफ स्कॉटलैण्ड नामक मिशन की शुरुआत की।
> सन्थालों के बीच उत्कृष्ट सेवा करने के लिए डॉ. कैम्पबेल को कैसर-ए-हिन्द की उपाधि से विभूषित किया गया तथा इन्हें सन्थालों ने देवदूत की उपाधि प्रदान की।
> वर्ष 1929 में द यूनाइटेड फ्री चर्च ऑफ स्कॉटलैण्ड का नाम परिवर्तन कर सन्थाल मिशन ऑफ चर्च ऑफ स्कॉटलैण्ड कर दिया गया।
> झारखण्ड में शैक्षिक प्रगति में मिशनरियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। जी. ई. एल. मिशन, मिशन चर्च ऑफ इण्डिया एवं रोमन कैथोलिक चर्च ने यहाँ पर आधुनिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार जोर-शोर से किया ।

> झारखण्ड के प्रमुख क्रान्तिकारी

> झारखण्ड के ` क्रान्तिकारियों का वर्णन प्रमुख निम्न है
> तिलका माँझी
> इनका जन्म 11 फरवरी, 1750 में सुल्तानगंज में हुआ था। सन्थाल जाति से सम्बन्धित तिलका माँझी एक योग्य वक्ता व कुशल तीरंदाज थे।
> तिलका माँझी ने देश में अंग्रेजों की शोषण व्यवस्था तथा फूट डालो राज करो नीति का विरोध किया और लोगों को संगठित करना आरम्भ किया।
> तिलका माँझी ने अपने संगठित दल का नेतृत्व कर 1771 ई. में सन्थाल क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ भागलपुर के वनचरी जोर स्थान से विद्रोह की शुरुआत की।
> 13 जनवरी, 1784 को तिलका ने ऑगस्टस क्लीवलैण्ड की (अपने तीरों से निशाना बनाकर) हत्या कर दी थी।
> तिलका माँझी को 1785 ई. में अंग्रेजों द्वारा भागलपुर में फाँसी दी गई थी ।
> तिलका माँझी राज्य के ऐसे पहले शहीद क्रान्तिकारी थे, जिन्हें अंग्रेजों ने फाँसी पर लटकाया था। ये अंग्रेजों से लड़ने वाले पहले सन्थाली नेता थे।
> बुद्धो भगत
> ये उराँव जाति के थे । इनका जन्म 17 फरवरी, 1792 को रांची में चान्हों के सिल्ली गाँव में हुआ था। ये कोल आन्दोलन के नायक थे।
> इन्होंने अंग्रेजों एवं ठेकेदारों के विरुद्ध भूमि पर परम्परागत अधिकार अर्थात् खूँटकट्टीदार एवं मुईहरी भूमि व्यवस्था तथा कर नहीं देने के लिए विद्रोह किया।
> इन्होंने 1828-32 ई. के कोल विद्रोह का नेतृत्व किया। ये छोटानागपुर के प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन्हें पकड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ₹1,000 इनाम की राशि की घोषणा की थी ।
> 14 फरवरी, 1832 को सिलांगा में ये शहीद हो गए।
> वीर तेलंगा खड़िया
> वीर तेलंगा खड़िया का जन्म 9 सितम्बर, 1806 को मुर्ग गाँव (गुमला) में हुआ था, गुमला में उनके शवों को दफनाएँ गए स्थान को ‘तेलंगा तोपा टाण्ड’ कहा जाता है ।
> इन्होंने 1850 ई. में खड़िया आन्दोलन का नेतृत्व किया तथा 1831-32 ई. के कोल विद्रोह में भी भाग लिया था ।
> 1880 ई. में 74 वर्ष की आयु में बोधन सिंह ने गोली मारकर इनकी हत्या कर दी।
> पाण्डेय गणपत राय
> 17 जनवरी, 1809 को जन्मे गणपत राय छोटानागपुर के दीवान सदाशिव राय की मृत्यु के बाद दीवान बन गए।
> अंग्रेजों की प्रिवी कॉउन्सिल ने महाराज के विरुद्ध फैसला देकर 1870 ई. को एडम ह्यूम को छोटानागपुर का प्रशासक नियुक्त किया, जिसके कारण गणपत राय ने विद्रोह कर दिया।
> इन्होंने हजारीबाग के विद्रोही सैनिकों के साथ सेनापति की भूमिका निभाई तथा डोरण्डा, रांची व चतरा में विद्रोह की कमान सँभाली।
> अंग्रेजों ने महाराज एवं गणपत राय को पकड़कर 21 अप्रैल, 1858 को शहीद चौक (रांची) पर फाँसी दे दी।
> सिद्धू-कान्हू
> सिद्धू का जन्म 1815 ई. में तथा कान्हू का जन्म 1820 ई. में भोगनाडीह नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम चुन्नी माँझी था ।
> सिद्धू और कान्हू दो भाई थे, जिन्होंने सन्थाल आन्दोलन (1855-1856 ई.) में अंग्रेजों के विरुद्ध “लोहा लिया था। इन्हें दो भाइयों चाँद और भैरव ने सन्थाल आन्दोलन में समर्थन दिया था ।
> सिद्धू-कान्हू ने आह्वान किया अंग्रेजों, हमारा राज्य वापस करो।
> बरहाइत की लड़ाई में दोनों भाई शहीद हो थे। गए
> ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
> 12 अगस्त, 1817 को बरकागढ़ की राजधानी सतरंजी में नागवंशी कुल में इनका जन्म हुआ। 23 वर्ष की अवस्था में इन्होंने जागीरदारी का कार्य सँभाला।
> इन्होंने अपनी राजधानी सतरंजी से हटाकर हटिया स्थानान्तरित की तथा इन्होंने कर नहीं देने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया।
> इन्होंने हजारीबाग के विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व किया, किन्तु चतरा की लड़ाई में इन्हें अंग्रेजों से पराजित होकर लोहरदंगा के जंगलों में छिपना पड़ा और वहीं से इन्होंने छापामार युद्ध चलाया।
> 16 अप्रैल, 1858 को इन्हें फाँसी दे दी गई।
> टिकैत उमराव सिंह
> इनका जन्म ओरमाँझी प्रखण्ड के खटंगा पातर गाँव में हुआ था। इन्होंने 1857 ई. के विद्रोह में हिस्सा लिया। 175-78
> 1857 ई. के विद्रोह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण अंग्रेजों ने इन्हें रांची लाकर मोहराबादी में टैगोर हिल के पास 8 जनवरी, 1858 को फाँसी दे दी।
> शेख भिखारी
> शेख भिखारी, खटंगा के राजा टिकैत उमराव सिंह के दीवान थे, इन्होंने 31 जुलाई, 1857 को स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया।
> सन्थाल विद्रोहियों सहित स्वतन्त्रता प्रेमी शेख भिखारी के नेतृत्व में हजारीबाग में उग्र विद्रोह किया गया। इस विद्रोह में अंग्रेज अधिकारियों द्वारा लगभग 200 विद्रोहियों को woman फाँसी की सजा दी गई तथा शेख भिखारी को गिरफ्तार कर 8 जनवरी को फाँसी पर लटका दिया गया।
> नीलाम्बर-पीताम्बर
> इन दोनों वीर भाइयों ने खरवार व चेरो जनजाति को एकत्रित कर 1857 ई. में पलामू क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध नेतृत्व किया। इन दोनों भाइयों को छापेमारी युद्ध में विशेषता हासिल थी।
> अंग्रेजों ने शीघ्र ही दण्ड प्रक्रिया के तहत गिरफ्तार कर अप्रैल, 1858 ई. में इन्हें लेस्लीगंज में पेड़ के नीचे फाँसी पर लटका दिया।
> भागीरथ माँझी
> ये खरवार जनजाति के महान् नेता थे। इन्होंने 1855-56 ई. के सन्थाल हूल में भाग लिया था ।
> 1874 ई. में इन्होंने स्वयं को (बौसी सम्मेलन में) राजा घोषित किया व खरवार आन्दोलन का नेतृत्व किया तथा सरकार को कर नहीं देने का आह्वान किया।
> भागीरथ माँझी आदिवासियों में बाबा के नाम से प्रसिद्ध थे। इनके नेतृत्व में खरवार आन्दोलन ने जोर पकड़ा। 1879 ई. में इनकी मृत्यु हो गई ।
> बिरसा मुण्डा
> इनका जन्म 15 नवम्बर, 1875 में उलिहातु खूँटी में हुआ था। इनका बचपन का नाम में दाऊद मुण्डा था ।
> आदिवासी नेता एवं लोक नायक बिरसा मुण्डा जनजाति से सम्बन्ध रखते थे। इन्हें धरती आबा के नाम से भी जाना जाता ।
> इनके जीवन का प्रारम्भिक काल (1886-94 ई.) चाईबासा में व्यतीत हुआ। इन्होंने सामाजिक जागरण के लिए, जागीरदारों एवं अंग्रेजों से मुक्ति के लिए आन्दोलन चलाया।
> बिरसा मुण्डा को लोग भगवान बिरसा कहकर पुकारते थे। इन्होंने महान् ‘उलगुलान विद्रोह’, जिसे ‘बिरसा मुण्डा आन्दोलन’ भी कहा जाता था (1895-90 ई.) का नेतृत्व किया। 1895 ई. में बिरसा को अंग्रेज सरकार द्वारा षड्यन्त्र रचने के आरोप में 2 वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया।
> 1895 ई. में इन्होंने अपने आप को सिंगबोंगा का (पैगम्बर के दूत समतुल्य) घोषित किया और एक नए पन्थ, बिरसाइट पन्थ की शुरुआत की।
> 9 जून, 1900 को हैजा रोग (रहस्यमय परिस्थितियों में) से इनकी मृत्यु रांची जेल में हो गई थी ।
> रामनारायण सिंह
> रामनारायण सिंह का जन्म चतरा जिले के तेतरिया नामक गाँव में 19 दिसम्बर, 1885 को हुआ था। उन्होंने वर्ष 1911 में हजारीबाग में पढ़ाई पूरी करने के बाद लॉ की डिग्री के लिए कलकत्ता के रिपन कॉलेज
में प्रवेश लिया। वर्ष 1919 में ये क जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। वर्ष 1927 में रामनारायण सिंह को गाँधी जी का सान्निध्य मिला, जब गाँधी जी सेण्ट कोलम्बा कॉलेज (हजारीबाग) में खादी प्रदर्शनी में आए थे। वे 1925 से 1947 वर्ष तक हजारीबाग जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तथा वर्ष 1927 में विधानसभा के सदस्य भी चुने गए थे। इन्हें राजेन्द्र प्रसाद ने ‘छोटानागपुर केसरी’ की उपाधि दी थी।
> जतरा भगत
> इनका जन्म सितम्बर, 1888 ई. में गुमला जिले के चिंगरी नवाटोली में हुआ था।
> अप्रैल, 1914 में जतरा भगत ने ताना भगत आन्दोलन की शुरुआत की थी। यह आन्दोलन उराँव जनजाति की एक शाखा से सम्बन्धित था ।
> वर्ष 1921 में जतरा भगत की गाँधीजी से मुलाकात हुई तथा वर्ष 1927 में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध में शामिल हुए।
> कृष्ण वल्लभ सहाय
> इनका जन्म 31 दिसम्बर 1898 को पटना में हुआ था।
> वे स्वतन्त्रता सेनानी थे, जिन्होंने कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन 1940 को सम्पन्न कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान हजारीबाग से छोटानागपुर सन्देश नामक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन भी किया था ।
> कृष्ण वल्लभ सहाय बिहार के दूसरे झारखण्डी मुख्यमन्त्री (पहला विनोदानन्द झा ) थे ।
> वर्ष 1952 में इन्होंने गिरिडीह से पहला विधानसभा चुनाव जीता। वर्ष 1963 में इन्होंने हजारीबाग में महिला कॉलेज की स्थापना की। इनकी मृत्यु 3 जून 1974 को हुई थी ।
> विनोदानन्द झा
> इनका जन्म 17 अप्रैल, 1900 में देवघर में हुआ था।
> वे झारखण्ड के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी थे। जिन्होंने असहयोग आन्दोलन के दौरान देवघर में हिन्दी विद्यापीठ नामक विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। वे बिहार के प्रथम झारखण्डी मुख्यमन्त्री थे । इनकी मृत्यु वर्ष 1971 में हुई थी ।
> सिमोन उराँव
> इनका जन्म वर्ष 1932 में रांची के निकट एक खाकसी नामक गाँव में हुआ था ।
> इन्होंने जल संरक्षण एवं पर्यावरण की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, इसलिए ये जलपुरुष के नाम से भी प्रसिद्ध हुए उनका प्रसिद्ध नारा है ‘आदमी बनना है, तो जमीन से लड़ो’ अर्थात् जमीन में मेहनत करो ।
> उन्होंने गाय घाट तथा देशाउली बाँध का निर्माण कराया, जिससे खेतों को सिंचाई के लिए पानी मिलता रहे । सिमोन उराँव को पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्ष 2016 में पद्मश्री सम्मान दिया गया।
> अल्बर्ट एक्का
> एक्का का जन्म 27 दिसम्बर, 1942 को गुमला जिले की डुमरी तहसील के जरी गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम जूलियस एक्का था। ये क्रिश्चियन उराँव समुदाय से सम्बन्ध रखते थे ।
> अल्बर्ट एक्का ने वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में भी अतुलनीय वीरता एवं साहस का परिचय दिया, जिससे वे लांस नायक के पद पर पहुँचे थे। उन्हें मरणोपरान्त भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया ।
> चौदह दिनों तक चले भारत-पाक युद्ध (वर्ष 1971) के पहले दिन लांस नायक अल्बर्ट एक्का को त्रिपुरा में अखौरा के निकट गंगासागर में पाकिस्तानी पोजिशन पर कब्जा करने का कार्य मिला ।
> शिबू सोरेन
> शिबू सोरेन का जन्म वर्ष 1942 में नेमरा (रामगढ़) में हुआ। शिबू सोरेन ने वर्ष 1970 में सोनोत (शुद्ध) सन्थाल समाज का गठन किया ।
> ये वर्ष 1973 में गठित झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे।
> वर्ष 1980 में निर्मल महतो के साथ मिलकर इन्होंने ऑल झारखण्ड स्टूडेण्ट्स यूनियन (आजसू) का गठन किया ।
> शिबू सोरेन द्वारा संचालित आन्दोलन के दबाव में केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 1989 में झारखण्ड विषयक समिति का गठन किया गया ।
> ये तीन बार झारखण्ड के मुख्यमन्त्री रह चुके हैं। इन्हें दिशोम गुरु तथा गुरुजी के नाम से भी जाना जाता है।
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