हाइड्रोजन और इसके यौगिक (Hydrogen and Its Compounds)

हाइड्रोजन और इसके यौगिक (Hydrogen and Its Compounds)

हाइड्रोजन और इसके यौगिक (Hydrogen and Its Compounds)

हाइड्रोजन (Hydrogen)
हाइड्रोजन (प्रतीक-H) का परमाणु क्रमांक और द्रव्यमान संख्या 1 है। इसकी खोज हेनरी कैवेंडश (Henry Cavendish) ने सन् 1766 में की थी लेकिन हाइड्रोजन नाम इसे एण्टोनी लेवॉइजर (Antoine Lavoisier) ने दिया। प्रकृति में ज्ञात सभी तत्वों में इसकी परमाणु संरचना सरलतम् है। परमाण्विक रूप में यह केवल एक प्रोटॉन और एक इलेक्ट्रॉन से बनी होती है लेकिन इसमें न्यूट्रॉन नहीं होता है। यद्यपि तत्व रूप में यह द्विपरमाण्विक (H2) अणु के रूप में पाई जाती है और साधारणतया इसे डाइहाइड्रोजन (dihydrogen) कहा जाता है। यह अन्य तत्वों की तुलना में अधिक यौगिक बनाती है।
प्राप्ति (Occurrence)
डाइहाइड्रोजन ब्रह्माण्ड में अतिबाहुल्य तत्व (ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण द्रव्यमान का 70%) है। यह सौर मण्डल का प्रमुख तत्व है। बड़े ग्रहों जैसे ब्रहस्पति तथा शनि में अधिकांशतः हाइड्रोजन होती है। यद्यपि हल्का होने के कारण यह पृथ्वी के वायुमण्डल में कम (द्रव्यमान के अनुसार 0.15%) मात्रा में पाया जाता है। पृथ्वी की सतह पर अतिबहुलता के क्रम में यह तीसरे स्थान पर है।
आवर्त सारणी में हाइड्रोजन का स्थान (Position of Hydrogen in the Periodic Table)
यह आवर्त सारणी का प्रथम तत्व है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s1 है। यह क्षार धातुओं (alkali metals) एवं हैलोजनों से समानता दर्शाने के बावजूद इनसे असमानताएँ भी दर्शाता है। अतः इसके अद्वितीय व्यवहार के कारण इसे आवर्त सारणी में अलग रखा गया है।
हाइड्रोजन के समस्थानिक (Isotopes of Hydrogen)
हाइड्रोजन के विशिष्ट रूप ( Special Forms of Hydrogen)
(i) नवजात हाइड्रोजन (Nascent Hydrogen) रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप किसी यौगिक से तुरन्त निकली हाइड्रोजन गैस को नवजात हाइड्रोजन कहते हैं। यह आण्विक हाइड्रोजन से अधिक क्रियाशील तथा प्रबल अपचायक होती है।
(ii) परमाण्विक हाइड्रोजन (Atomic Hydrogen) विद्युत आर्क या पराबैंगनी विकिरणों द्वारा उच्च ताप पर डाइहाइड्रोजन के विघटन से इसे प्राप्त किया जाता है। इसकी अपचायक क्षमता नवजात हाइड्रोजन की अपेक्षा अधिक होती है।
(iii) सामान्य हाइड्रोजन (Ordinary Hydrogen) यह दो रूपों ऑर्थो (ortho) और पैरा (para) का मिश्रण है। ऑर्थो हाइड्रोजन में प्रोटॉनों या नाभिकों के चक्रण एक ही दिशा में होते हैं जबकि पैरा हाइड्रोजन में प्रोटॉनों या नाभिकों के चक्रण विपरीत दिशा में होते हैं।
(iv) अधिशोषित हाइड्रोजन (Adsorbed Hydrogen) Pt, Pd, Ni, आदि की सतह पर H2 बुद-बुद (bubbling) करने पर यह अधिशोषित हो जाती है। सामान्य ताप पर ये धातुएँ H2 गैस की बृहद् मात्रा को अधिशोषित कर लेती हैं तथा उच्च ताप इसे मुक्त कर देती हैं। इन धातुओं पर H2 के अधिशोषण की प्रक्रिया को हाइड्रोजन का अधिशोषण (occlusion of hydrogen) कहलाता है।
बनाने की विधियाँ (Methods of Preparation ) 
डाइहाइड्रोजन बनाने के लिए निम्न विधियाँ प्रयोग की जाती हैं
(i) प्रयोगशाला में यह दानेदार जिंक की तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से अभिक्रिया करके बनाई जाती है।
(ii) व्यापारिक स्तर पर इसे प्लैटिन इलेक्ट्रोड का उपयोग कर अम्लीय जल के विद्युत अपघटन से बनाया जाता है अथवा हाइड्रोकार्बन या कोक की उच्च ताप पर एवं उत्प्रेरक की उपस्थिति में भाप से अभिक्रिया कराने पर प्राप्त किया जाता है।
(iii) इसे लाल तप्त लोहे पर भाप प्रवाहित कराके भी बनाया जाता है अथवा सोडियम या हाइड्रोलिथ की जल के साथ अभिक्रिया द्वारा भी इसे बनाया जाता है।
◆ Mg की तनु H2SO4 की जल के साथ अभिक्रिया या NaH शुद्ध हाइड्रोजन से प्राप्त होती है।
◆ आजकल डाईहाइड्रोजन के उत्पादन के मुख्य स्रोत इस प्रकार है; 77% पैट्रोकेमिकल, 18% कोयला 4% विद्युत अपघटनी प्रक्रम व 1%
हाइड्रोजन के गुणधर्म (Properties of Hydrogen) 
हाइड्रोजन के भौतिक और रासायनिक गुणधर्म इस प्रकार हैं
भौतिक गुणधर्म (Physical Properties)
(i) यह रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन दहनशील गैस है।
(ii) यह वायु से हल्की तथा जल में अघुलनशील है।
(iii) इसका गलनांक 13.96 K तथा क्वथनांक 20.39 K है
(iv) इसका घनत्व 0.09 g L-1 है।
रासायनिक गुणधर्म (Chemical Properties)
(i) उच्च H—H आबन्ध ऊर्जा के कारण कक्ष ताप पर डाइहाइड्रोजन अपेक्षाकृत निष्क्रिय है। यह हैलोजनों (X2) के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोजन हैलाइड (HX) देती है।
( उच्च ताप पर) H2 (g) + X2 (g) → 2 HX ( g ) ( X = F, Cl, Br, I)
(ii) यह उच्च ताप पर ऑक्सीजन (या वायु) के साथ अभिक्रिया करके जल बनाती है। यह अभिक्रिया प्रबल ऊष्माक्षेपी है।
हाइड्रोजनीकरण का वाणिज्यिक महत्त्व (Commercial Importance of Hydrogenation)
निकैल उत्प्रेरक का उपयोग करके वनस्पति तेलों (असंतृप्त वसा) के हाइड्रोजनीकरण द्वारा खाद्य वसा (वनस्पति घी या संतृप्त वसा ) प्राप्त किया जाता है।
ओलिफीन का हाइड्रोफॉर्मिलीकरण कराने पर ऐल्डिहाइड प्राप्त होता है जो अपचयित होकर ऐल्कोहॉल देता है।
हाइड्रोजन के उपयोग (Uses of Hydrogen)
(i) इसका एकल बृहद् अनुप्रयोग अमोनिया के संश्लेषण में होता है, जो नाइट्रिक अम्ल तथा नाइट्रोजनी उर्वरक उत्पादन में काम आती है।
(ii) इसका उपयोग बहुअसंतृप्त वनस्पति तेलों जैसे सोयाबीन, बिनौला (cotton seeds) से हाइड्रोजनीकरण द्वारा वनस्पति वसा के उत्पादन में होता है।
(iii) इसका उपयोग अनेक अति उपयोगी कार्बनिक रसायनों मुख्यतः मेथेनॉल के उत्पादन में होता है।
(iv) इसका उपयोग धात्विक हाइड्राइड, हाइड्रोजन क्लोराइड के निर्माण में होता है।
(v) धातुकर्म प्रक्रमों में इसका उपयोग भारी धातु ऑक्साइडों को धातुओ अपचयित करने में होता है।
(vi) परमाण्विक हाइड्रोजन तथा ऑक्सी हाइड्रोजन टॉर्च का उपयोग कर्तन (cutting) तथा वेल्डिंग में होता है।
(vii) इसका उपयोग अन्तरिक्ष अनुसन्धान में रॉकेट ईंधन के रूप में किया जाता है।
(viii) इसका उपयोग ईंधन सेलों में विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है तथा इसे भविष्य का ईंधन भी कहा जाता है।
(ix) हीलियम और हाइड्रोजन का मिश्रण (He = 85% ; H = 15% ) का उपयोग गुब्बारे भरने में किया जाता है।
◆ आजकल गुब्बारे भरने के लिए हाइड्रोजन का प्रयोग प्रतिबन्धित है, क्योंकि यह वाष्पशील और ज्वलनशील प्रकृति की गैस है।
◆ माना जाता है कि तीन तत्वों हाइड्रोजन, हीलियम और लीथियम का निर्माण बिग बैंग (Big Bang) में हुआ था।
◆ सूर्य की सौर ऊर्जा का कारण हाइड्रोजन का हीलियम में परिवर्तित होना है।
◆ प्रतिहाइड्रोजन प्रति द्रव्य तत्व (anti-matter element) है, जो ऑक्सीजन, क्लोरीन और फलुओरीन तत्वों से विस्फोटनीय अभिक्रिया करती है।
◆ हाइड्रोजन बहुत हल्की गैस है तथा पृथ्वी के गुरुत्व द्वारा यह नहीं थमती । इस प्रकार पृथ्वी पर मुक्त हाइड्रोजन उपस्थित नहीं है।
◆ हाइड्रोजन अकेला ऐसा तत्व है, जो बिना न्यूट्रॉन के पाया जाता है।
जल (Water), H2O
सभी सजीवों का बृहद् भाग जल द्वारा निर्मित है। मानव शरीर में लगभग 65% एवं कुछ पौधों में लगभग 95% जल होता है। सम्पूर्ण जल का 97% भाग महासागरों में तथा शेष शुद्ध रूप में उपस्थित है। वर्षा जल, जल का शुद्धतम रूप है।
जल के गुणधर्म (Properties of Water)
(i) यह रंगहीन तथा स्वादहीन द्रव है। शुद्ध रूप में यह उदासीन है। इसका pH 7 है।
(ii) शुद्ध जल विद्युत का कुचालक है यद्यपि इसकी चालकता कुछ प्रबल विद्युत अपघट्य मिलाकर बढ़ाई जा सकती है।
(iii) 4°C पर जल का घनत्व अधिकतम तथा आयतन निम्नतम होता है।
(iv) 0°C पर जल अपनी ठोस अवस्था में परिवर्तित होता है जिसे बर्फ कहते हैं।
(v) H2S तथा H2Se की तुलना में जल का उच्च हिमांक, उच्च क्वथनांक, उच्च वाष्पन ऊष्मा, उच्च संलयन ऊष्मा का कारण विस्तृत H-आबन्धन का होना है। जल अणुओं के मध्य H-आबन्धों के कारण ही यह द्रव अवस्था में पाया जाता है।
(vi) अन्य द्रवों की तुलना में जल की विशिष्ट ऊष्मा, तापीय चालकता, पृष्ठ तनाव, द्विध्रुव आघूर्ण तथा परावैद्युतांक के मान उच्च होते हैं। अपनी उच्च विशिष्ट ऊष्मा के कारण यह एक अच्छा शीतलक (coolant) है तथा यह कारों, बसों व ट्रकों के इंजनों को ठण्डा करने में प्रयुक्त किया जाता है।
(vii) वनस्पतियों एवं प्राणियों के उपापचय (metabolism) में अणुओं के अभिगमन के लिए जल अपने उच्च परावैद्युतांक (dielectric constant) के कारण एक उत्तम विलायक है।
(viii) जल ध्रुवीय अणुओं के साथ H-आबन्धन बनाता है जिससे सहसंयोजक यौगिक, जैसे ऐल्कोहॉल तथा कार्बोहाइड्रेट यौगिक जल में विलेय होते हैं।
जल अणु की संरचना (Structure of Water Molecule)
गैस प्रावस्था में जल एक बंकित अणु (bent molecule) है। आबन्ध कोण तथा O— H आबन्ध दूरी के मान क्रमशः 104.5° तथा 95.7 pm हैं। बर्फ में प्रत्येक ऑक्सीजन परमाणु चार अन्य हाइड्रोजन परमाणुओं से चतुष्फलकीय रूप से घिरा होता है। हाइड्रोजन आबन्ध बर्फ में बृहद छिद्रयुक्त एक प्रकार की खुली संरचना बनाते हैं। यही कारण है कि बर्फ का घनत्व द्रव जल की अपेक्षा कम होता है यद्यपि बर्फ एक ठोस है तथा जल द्रव है।
यदि उबले जल को अधिक समय तक रखा जाए, तो पात्र की आन्तरिक सतह कैल्सियम और मैग्नीशियम के कार्बोनेटों की सफेद परत से ढक जाती है।
कठोर जल (Hard Water)
जल में हाइड्रोजन कार्बोनेट, क्लोराइड और सल्फेट के रूप में कैल्सियम और मैग्नीशियम के लवणों (मुख्यता) तथा आयरन के लवणों की उपस्थिति जल को कठोर बनाती है। कठोर जल साबुन के साथ झाग नहीं देता है। कठोर जल साबुन के साथ मलफेन/अवक्षेप (scum/precipitate) देता है। अतः यह धुलाई के लिए उपयुक्त नहीं है। यह भाप क्वथित्र ( steam boilers) के लिए भी हानिकारक है क्योंकि पपड़ी (scales) के रूप में इसमें लवण जम जाते हैं।
मृदु जल (Soft Water)
वर्षा का जल प्रायः शुद्ध होता है। विलयशील कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवण से मुक्त जल को मृदु जल कहते हैं। यह साबुन के से साथ झाग देता है।
◆ अपमार्जक के प्रयोग द्वारा कठोर और मृदु जल में विभेद नहीं किया जा सकता है।
◆ भारानुसार जल के प्रति मिलियन ( 106 ) अणु में उपस्थित CaCO3 के की अणु संख्या कठोरता की मात्रा (degree of hardness) कहलाती है।
◆ कैल्सियम या मैग्नीशियम या आयरन के लवणों को दूर करने की प्रक्रिया मृदुकरण (softening) कहलाती है।
◆ यदि पेय जल में कुछ गामा उत्सर्जक समस्थानिक उपस्थित होते हैं तो इनकी पहचान एक युक्ति स्फुरण गणित्र (scintillation counter) जोकि रेडियोसक्रिय समस्थानिक की पहचान करने में प्रयोग किया जाता है द्वारा की जाती है।
अस्थाई कठोरता ( Temporary Hardness)
यह जल में कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के हाइड्रोजन कार्बोनेट की उपस्थिति के कारण होती है।
इसे निम्न प्रकार दूर किया जा सकता है
(i) उबालना (Boiling) उबालने की प्रक्रिया में विलेय मैग्नीशियम हाइड्रोजन कार्बोनेट अविलेय मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड में तथा विलेय कैल्सियम हाइड्रोजन कार्बोनेट अविलेय कैल्सियम कार्बोनेट में परिवर्तित हो जाते हैं। ये अविलेय अवक्षेप छानकर अलग कर लिए जाते हैं।
(ii) ‘क्लार्क विधि (Clark’s Method) बुझे चूने की परिकलित मात्रा को कठोर जल में मिलाने पर विलेयशील लवण कैल्सियम कार्बोनेट और मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं जिन्हें छानकर अलग कर दिया जाता है।
स्थाई कठोरता (Permanent Hardness)
यह जल में विलेयशील कैल्सियम और मैग्नीशियम के क्लोराइड और सल्फेट के कारण होती है। स्थाई कठोरता निम्न विधियों द्वारा दूर की जा सकती है
(i) धावन सोडा (Na2CO3 या सोडियम कार्बोनेट) के उपचार से (Treatment with Washing Soda) धावन सोडा कठोर जल में विलेयशील कैल्सियम एवं मैग्नीशियम क्लोराइड तथा सल्फेट के साथ क्रिया करके अविलेयशील कार्बोनेट बनाता है।
(ii) केलगॉन विधि (Calgon’s Method) सोडियम हेक्सामेटाफॉस्फेट (sodium hexametaphosphate) Na2P6O18 को व्यापारिक रूप में ‘केलगॉन’ कहते हैं। जब यह कठोर जल में मिलाया जाता है तो संकुल ऋणायन (complex anions) बनते हैं। ये संकुल ऋणायन Ca2+ और Mg2+ आयनों को विलयन में ही रहने देते हैं।
(iii) आयन विनिमय विधि (Ion Exchange Method) इस विधि को जीयोलाइट / परम्यूटिट (zeolite/permutit) प्रक्रिया भी कहते हैं। जलयुक्त सोडियम ऐलुमिनोसिलिकेट (NaAlSiO4 3H2O) को जीयोलाइट कहते हैं। कठोर जल में इसे मिलाने पर विनिमय अभिक्रिया होती हैं। जिसके परिणामस्वरूप जल का मृदुकरण होता है।
(iv)संश्लेषित रेजिन विधि (Synthetic Resin Method) आजकल कठोर जल का मृदुकरण मुख्य रूप से संश्लेषित धनायन विनिमयक द्वारा किया जाता है, यह विधि जीयोलाइट की तुलना में अधिक दक्ष है।
भारी जल (Heavy Water), D2O
इसकी खोज सन् 1932 में यूरे तथा वाशबर्न (Urey and Washburn) ने की थी। इसे भारी जल कहते हैं क्योंकि यह भारी हाइड्रोजन अर्थात् ड्यूटीरियम का ऑक्साइड है। इसे ड्यूटीरेटिड जल (deuterated water) भी कहा जाता है। इसका उत्पादन जल के वैद्युत अपघटन द्वारा तथा उवर्रक उद्योगों में सह-उत्पाद (by-products) के रूप में होता है। यह विस्तृत रूप से नाभिकीय रिऐक्टरों में न्यूट्रॉन मंदक के रूप में तथा विनिमय अभिक्रियाओं की क्रियाविधियों के अध्ययन में काम आता है। इसका उपयोग ड्यूटीरियम के अनेक यौगिक जैसे CD4, D2SO4, आदि बनाने में किया जाता है। इसका घनत्व सामान्य जल से अधिक होता है।
हाइड्रोजन परॉक्साइड (Hydrogen Peroxide), H2O2
इसकी खोज थेनॉर्ड (Thenard) ने सन् 1818 में की थी। शुद्ध अवस्था में यह गन्धहीन तथा लगभग रंगहीन (अति हल्का नीला) द्रव है। यह जल में सभी अनुपातों में विलेय है। इसे ऑक्सीजन युक्त जल ( oxygenated water) भी कहते हैं।
यह बेरियम परॉक्साइड को सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा अम्लीकृत करके या जल वाष्प की उपस्थिति में ऑक्सीजन को अल्ट्रावायलेट किरणें दिखाकर प्राप्त किया जाता है। विस्तृत H-आबन्धन के कारण यह सामान्यता द्रव रूप में पाया जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड ऑक्सीकारक तथा अपचायक दोनों कार्य करता है।
हाइड्रोजन परॉक्साइड के उपयोग (Uses of Hydrogen Peroxide) 
(i) दैनिक जीवन में इसका उपयोग मंद कीटनाशी तथा बालों के विरंजन के रूप में किया जाता है। इसका विरंजन गुण इसकी ऑक्सीकारक प्रकृति के कारण होता है।
(ii) पूतिरोधी (antiseptic) के रूप में यह बाजार में परहाइड्रॉल (perhydrol) के नाम से बेचा जाता है।
(iii) इसका उपयोग सोडियम परबोरेट तथा सोडियम परकार्बोनेट के निर्माण में किया जाता है, जो उच्च कोटि के अपमार्जकों के लिए उपयोगी है।
(iv) उद्योगों में इसका उपयोग वस्त्रों (textiles), कागज की लुगदी चमड़ा, तेल, वसा, आदि के विरंजन कारक (bleaching agent) के रूप में किया जाता है।
(v) इसका उपयोग दूध और वाइन के परीक्षण में किया जाता है।
(vi) यह पुराने तैलीय चित्रों को चमकाने तथा इनको इनके मूल रंगों में लाने में प्रयुक्त किया जाता है।
(vii) इसका उपयोग हाइड्रोक्विनॉन, टार्टरिक अम्ल, खाद्य उत्पादों तथा औषधियों (सिफैलोस्पोरिन) के संश्लेषण में किया जाता है।
(viii) आजकल H2O2 का उपयोग पर्यावरणीय (हरित) रसायन जैसे पर्यावरण नियन्त्रण में घरेलू तथा औद्योगिक बहिस्राव (effluents) उपचार में, सायनाइड के ऑक्सीकरण में, वाहित मल के लिए वायुजीवी दशाओं पुनः स्थापन, आदि में किया जाता है।
(ix) ऑक्सीजन मुक्त करने की प्रवृत्ति के कारण यह रॉकेट तथा पनडुब्बी में ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
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